शुक्रवार, 25 जनवरी 2019

राष्ट्र-गान (संशोधित)

राष्ट्र-गान  (संशोधित)

यह गणतंत्र महान्......

हम भारत के जन-जन हेतु यह गणतन्त्र महान्।
हम भारत के सारे जन का है यह पर्व महान्।।
आओ आज करें हम सब मिल भारत का जय गान।
हम भारत के जन-जन हेतु यह गणतन्त्र महान्।।
रावी तट,आजाद हिन्द का है यह पर्व महान्।
हम भारत के जन-जन हेतु यह गणतन्त्र महान्।। टेक

राष्ट्र-पर्व पर राष्ट्र-ध्वज का घर-घर हो गुणगान।
लाल किले पर फहरे पहले ध्वज यह ससम्मान।।
भारत के अस्तित्व-अस्मिता का द्योतक-यह झंडा।
जन गण मन अधिनायक झंडा, फहरे सदा तिरंगा।।
झंडा ऊँचा रहे सदा ही , अनवरत मिले सम्मान्।
हम भारत के जन-जन हेतु यह गणतन्त्र महान्।।

केसरिया बल अध्यात्म बोध है, सादा सत् पथ गामी।
हरा उर्वरा शक्ति भारत की, चक्र विकास अनुगामी।।
इस झंडे को लेकर आगे बढ़ते सदा रहेंगे।
कला, ज्ञान, विज्ञान विश्व को बोध सर्वदा देंगे।।
योग और गार्हस्थ्य धर्म का,गीता का है ज्ञान।
हम भारत के जन-जन हेतु यह गणतन्त्र महान्।।

तोड़ गुलामी की कारा को, देकर अपनी जान।
हमें छोड़ कर गये वतन से, दे साम्राज्य महान्।।
नमन उन्हें, शत कोटि नमन, हे पूर्वज पूज्य महान्।
आज आपके बल पर भारत है स्वतंत्र अविराम।।
देश भक्त को नमन हृदय से, जिनका है बलिदान।
हम भारत के जन-जन हेतु यह गणतंत्र महान्।।

सोने की चिड़ियाँ भारत,पर शत्रु हैं घात लगाये।
फिर भी हम उनको समझाते सुपथ सुराह बताते।।
विश्व गुरु हम छल बल से काम नहीं लेते हैं।
मूर्ख और लाचार समझ पर झाँसा वे देते हैं।।
नहीं जानते शक्ति हमारी ,नहीं ज्ञान-विज्ञान।
हम भारत के जन-जन हेतु यह गणतंत्र महान्।।

हमने सबसे पहले जग को जीने का मार्ग बताया।
समझ बूझ अध्यात्म ज्ञान का अनुपम बोध कराया।।
हमनें सबसे पहले जग को सभ्यता संस्कृति सिखाया।
भाषा बोध कराया जग को दर्शन उन्हें सिखाया।।
जड़-चेतन, प्रकृति-पुरुष का मिला जहाँ सद्ज्ञान।
हम भारत के जन-जन हेतु यह गणतन्त्र महान्।।

कला,ज्ञान,विज्ञान,गणित का मौलिक पाठ पढ़ाया।
लिखना-पढ़ना,खेल-कूद का मौलिक भेद बताया।।
मानवता का पाठ आज वे हमको पढ़ा रहे हैं।
धीरे-धीरे कदम हमारी ओर वे बढ़ा रहे हैं।।
हिन्द विरोधी पतित जनों को भी मिला यहाँ सम्मान।
हम भारत के जन-जन हेतु यह गणतंत्र महान्।।

हमें एक जुट देख,आज वे ईष्या से जलते हैं।
देख विकास बहुमुखी हमारी जलभुनकर रहते हैं।।
हिन्दू,मुस्लिम,सिख,ईसाई हम सब भारत भाई।
करें आज संकल्प पुनः हममें हो नहीं जुदाई।।
हम अखण्डता और एकता का रखते हैं ध्यान।
हम भारत के जन-जन हेतु यह गणतंत्र महान्।।

हम अपनी सभ्यता-संस्कृति में रहकर एक रहेंगे।
अपनी राष्ट्र-पताका हेतु सर्वस्व त्याग हम देंगें।।
अलग-अलग है धर्म हमारा,किन्तु राष्ट्र भारत है।
राष्ट्र-धर्म है -एक, विश्व को क्या यह बोध नहीं है?
सत्य, अहिंसा, स्नेह, ज्योति, है भारत की पहचान।
हम भारत के जन-जन हेतु यह गणतंत्र महान्।।

हम स्वतंत्र भारत के जन-जन का यह गणतन्त्र महान्।
प्रथम द्वितीय सभी नागरिक विधि से हैं एक समान।।
भाषा, क्षेत्र, संस्कृति अलग है पर हममें भेद नहीं है।
लिंग, वर्ण औ जाति, वर्ग का मौलिक मतभेद नहीं है।।
व्यक्ति नहीं, है देश बड़ा, हर जन हैं एक समान।
हम भारत के जन-जन हेतु यह गणतंत्र महान्।।

प्रो० अवधेश कुमार "शैलज", पचम्बा, बेगूसराय । 

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