शुक्रवार, 28 जुलाई 2017

सर्व कल्याणकारी प्रार्थना:-

' सर्व कल्याणकारी प्रार्थना '
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प्रियतम ! स्वामी ! सुन्दरतम् ! माधव ! हे सखा ! हमारे !
मिलती है , शान्ति -👌जगत में, केवल प्रभु ! तेरे सहारे ।।
तुम अमल धवल ज्योति हो, ज्योतित करते हो- जग को ।
स्रष्टा! पालक ! संहर्ता ! तुम एक नियन्ता-जग के ।।
कैसे मैं तुझे पुकारूँ, जड़ हूँ, न ज्ञान -मुझको है ।
प्रभु एक सहारा-तुम हो, रखनी प्रभु लाज -तुझे है ।।
सर्वज्ञ ! सम्प्रभु ! माधव ! तुम तो -त्रिकालदर्शी हो ।
अन्तर्यामी ! जगदीश्वर ! तम-हर ! भास्कर भास्कर हो ।।
मायापति! जन सुख दायक ! तुम व्याप्त -चराचर में हो ।
हे अगुण ! सगुण ! परमेश्वर ! सर्वस्व हमारे -तुम हो ।।
आनन्दकन्द ! करूणाकर ! शशि-सूर्य नेत्र हैं -तेरे ।
तुम बसो अहर्निश प्रतिपल, प्रभु ! अभ्यन्तर में -मेरे ।।
तेरी ही दया कृपा से, अन्न धन सर्वस्व मिला है ।
तेरी ममता इच्छा से, यह जीवन कमल खिला है ।
उपहास किया कर ते हैं, जग के प्राणी सब -मेरे ।
स्वीकार उन्हें करता हूँ, प्रेरणा मान सब -तेरे ।।
कर्त्तव्य किया न कभी मैं, प्रभु ! प्रबल पाप धोने का ।
जुट पाता नहीं मनोबल, प्रभु ! अहंकार खोने का ।।
बस, तिरस्कार पाता हूँ , यह पुरस्कार है- जग का ।
है बोध न मुझको कुछ भी, जगती का और नियति का ।।
यह जीवन चले शतायु, मंगलमय हो जग सारा ।
माधव ! चरणों में तेरे, जीवन अर्पित हो सारा ।।
हे हरि ! दयानिधि! दिनकर! सब जग के तुम्हीं -सहारे ।
हम सब को प्रेम सिखाओ, हे प्रेमी परम हमारे ।।
हो बोध हमें जीवन का, कर्त्तव्य बोध हो सारा ।
अनुकरण योग्य प्रति पल हो, जीवन आदर्श हमारा ।।
ईर्ष्या ,माया,मत्सर का लव लेश नहीं हो हममें ।
धन, बल, विकास, काया का -सुन्दर विकास हो हममें ।।
सौहार्द, प्रेम भावों का प्रभु ! उत्स हृदय में फूटे ।
उत्तम् विचार राशि को,जगती जी भर कर लूटे ।।
सार्थक हो जग में जीवन, सार्थक हो प्रेम हमारा ।
माधव ! चरणों में तेरे, जीवन अर्पित हो सारा ।।
:- प्रो० अवधेश कुमार 'शैलज', पचम्बा, बेगूसराय ।
( प्राचार्य सह विभागाध्यक्ष मनोविज्ञान, एम.जे.जे.कालेज, एम., बनवारीपुर, बेगूसराय। )
(कालेज कोड : ८४०१४)

गुरुवार, 13 जुलाई 2017

स्मरणीय सूत्र :-

१- हमें अपने शरीर की जरूरत को पूरा करना चाहिए न कि मन की प्रसन्नता हेतु शरीर विरोधी वैसे किसी निर्णय को स्वीकार करना चाहिए जो तत्काल मन को आनन्दित करनेवाला हो, शरीर के लिए हानिकारक हो ।

२- मन की बात को जबरन नहीं दबाना चाहिए, क्योंकि मन की दबी हुई इच्छा की पूर्त्ति नहीं होने पर वह व्यक्ति भविष्य में कुछ न कुछ मानसिक या मनोशारीरिक रोगों का शिकार हो सकता है ।

३- हमारा सम्यक् मनोशारीरिक विकास ही हमारे सम्यक् वैयक्तिक,समाजिक, नैतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक , व्यवसायिक,कला, ज्ञान-विज्ञान तथा आध्यात्मिक विकास का आधार हो सकता है ।

४- प्रकृति से हमारा जितना अधिक तादात्म्य रहता है, हम उसी अनुपात में पुष्पित, पल्लवित एवं विकसित होते हैं ।

५- हमें किसी भी समस्या के समाधान के लिए यथा संभव प्रयास करते रहना चाहिए।

६- हमें आतीत के अनुभव से लाभान्वित होने के लिए वर्तमान में उन अनुभवों का सदुपयोग भविष्य के लिए करना चाहिए ।

७- हमें अपने जीवन के समान ही दूसरों के जीवन को महत्वपूर्ण मानना चाहिए ।

८- हमें अपने सामर्थ्य के अनुसार दूसरों की जरूरत की पूर्ति में यथा सम्भव मदद करनी चाहिए।

९- हमें अपनी सीमाओं का ज्ञान अवश्य होना चाहिए ताकि हमारा अहंकार हमें जीवन के आनन्द और परमात्मा से दूर नहीं कर सके ।

मंगलवार, 11 जुलाई 2017

Biochemic Remedies :-

  Biochemic Remedies (केवल चिकित्सक एवं चिकित्सा विज्ञान के छात्रों हेतु ) :-
                - डॉ० प्रो० अवधेश कुमार' 'शैलज'
                     एम. ए.मनोविज्ञान, होमियोपैथ,
              पता:- पचम्बा, बेगूसराय (851218)
होमियोपैथी केअख जनक महान् एलोपैथिक चिकित्सक डॉ० सैमुअल हैनीमैन के शिष्य डॉ०शुस्लर ने महात्मा हैनीमैन द्वारा प्रमाणित दवाओं में से 12 ऐसी दवाओं को चुना जो प्राणी के रक्त एवं अस्थियों में समान रूप से एक निश्चित अनुपात में पाया जाता है, जिसे उन्होंने Twelve Tissues ( 12 नमक ) कहा । इन 12 नमकों में से यदि किसी भी कारण से किसी एक भी नमक की कमी या अधिकता हो जाती है तो शरीरस्थ अन्य लवणों और अन्य तत्वों में असन्तुलन पैदा हो जाता है, फलस्वरूप प्राणी अपने आप को अस्वस्थ महसूस करता है, अतः
उस लवण और / या आवश्यकतानुसार अन्य लवणों की क्षति पूर्ति करने से सभी लवणों में पुनः सन्तुलन पैदा हो जाता है जिससे प्राणी अपने आप को पुनः स्वस्थ अनुभव करने लगता है तथा वह रोग मुक्त हो जाता है । 
        बायोकेमिक पद्धति के इन 12 लवणों का उपयोग ठंडे या हल्के गर्म जल के साथ नहीं करके पीने लायक पूरे गर्म पानी (जल) के साथ ही किया जाता है ।
        बायोकेमिक पद्धति के इन लवणों की 3x, 6x, 12x, 30x तथा 200x में से विशिष्ट अवसरों को छोड़कर प्राय: सामान्य स्थिति में 6x शक्ति के उपयोग करने का मत अनेक विद्वानों द्वारा व्यक्त किया गया है, परन्तु किसी भी व्यक्ति को किसी भी औषधि का उपयोग या प्रयोग सुयोग्य चिकित्सक के देखरेख में या उनके परामर्श से ही करना चाहिए अन्यथा हानि या खतरे की पूरी सम्भावना रहती है । नीम हकीम से बचें।
उत्साह, खोज, प्रयोग, उपयोग, जिज्ञासा या कौतूहल के दृष्टिकोण से दवाओं का उपयोग अपने या किसी अन्य मानव या सजीव प्राणी के साथ भूलकर भी नहीं करें अन्यथा इसके लिए आप खुद जिम्मेदार होंगे।

 ये 12 लवण अधोलिखित हैं :-

1. Calcaria Flourica 
कंजूस। आर्थिक संकट का भय।
रगड़ने से आराम ।
हड्डी के बहुत नजदीक दर्द युक्त ट्युमर । 
दाँत का हिलना। 
नीले रंग का कड़े किनारे वाला घाव या फटे दरार वाली त्वचा। 
गले में कुटकुटी के साथ खाँसी। 
बबासीर एवं अण्डकोष वृद्धि।

2. Calcaria Phosphorica / Calcaria Phos.
Creeping & crowling sensation
अस्वस्थ होने की चिंता।
किसी भी बीमारी के बाद अत्यधिक कमजोरी। दूध पचने में कठिनाई । 
दाँतों का सड़ना या खोंढ़र ।
दाँत दर्द में ठंडा और गर्म पानी दोनों से कष्ट ।
मौसम परिवर्तन से कष्ट ।
खट्टा एवं दही अधिक पसन्द।
लेटने से आराम। दबाव से कष्ट ।
आवाज के साथ पाखाना।
प्रात:कालीन प्रदर या लिकोरिया अण्डे के सफेदी जैसा लिकोरिया। 
नाक की नोक मोटी।

3. Calcaria Sulphurica / Calcaria Sulph. तलवे मेंं खुजली एवं घाव। 
पीब या पस या श्राव के साथ रक्त मिला हुआ ।
यह बायोकेमिक केलेण्डुला है।
स्मृति या चेतना का ह्वास, अचानक।
गिरने का भय।परिवर्तनशील मनोवृत्ति।
कपालावरण पर पीली पपड़ी। नेत्र की क्षति के बाद की दवा। नेत्र कोण प्रदाहित। उग्रकक्ष में धुंधली मवाद। अर्द्ध दृष्टिता। नेत्र में कील जैसी पीड़ा। मध्यकर्ण के चारों ओर फुन्सियाँ।रक्त मिश्रित श्राव। नासारन्ध्रों के किनारे वेदनापूर्ण।
हरापन लिए श्वेत मवाद। 

4. Ferrum Phosphoricum/ Ferrum Phos. यह बायोकेमिक एकोनाइट है। 
इस दवा को ठंडे जल के साथ भूलकर भी न लें।
अनिद्रा में रात में सेवन से अनिद्रा बढ़ती है ।
सूखी खांसी।
खाँसी के साथ Red Bleeding.
सामने का सरदर्द ।
किसी भी तरह के बुखार की यह बहुत अच्छी दवा है।
दायीं हथेली बायीं हथेली से प्राय:अधिक गर्म ।
सम्भोग की शुरुआत में ही योनि में दर्द ।
आँखों के चोंट एवं दर्द की अच्छी दवा है। 
इसे ठण्ढ़ा वातावरण अधिक पसन्द है।
चक्कर में आगे/सामने की ओर गिरने की प्रवृत्ति ।
सिर की ओर तीव्र रक्त प्रवाह ।
नकसीर।
निमोनिया।
जिह्वा का कैंसर।
टीवी।
ब्रेन हेमरेज।


5. Kalium Mureticum / Kali Mure. 
सफेद, भूरे रंग की गंदी जिह्वा। 
हर समय भूख। 
वसा युक्त  या पेस्टी भोजन से कष्ट वृद्धि ।
समुद्र स्नान से कष्ट वृद्धि ।
सायंकाल में जिह्वा में ठंडा पन की अनुभूति। 
कोलतार जैसा काला और थोड़ा मेन्स तथा दूध जैसा प्रदर या लिकोरिया।
दर्द विहीन और दबाने या पकड़ने पर छिंटकने वाला ट्यूमर परन्तु विद्वानों के अनुसार छाती का ट्यूमर जो दर्द युक्त होकर बायें केहुनी को पार कर जीवन पर खतरा पैदा करने की स्थिति में हो उस अवस्था में काली म्यूर जीवन रक्षक होती है। 

6. Kalium Phosphoric / Kali Phos.
लम्बी या नुकीली जिह्वा।  
सोच या मानसिक कष्ट से कष्ट बढना। 
दायीं ओर का सिर दर्द जो बायीं ओर भी जाय ।
काला दाग। 
धड़कन होना।
भूखा रह नहीं पाना। 
भोजन करने से या लोगों के साथ रहने से कष्ट घटना। 
किन्हीं दो या दो से अधिक अंगुलियों के बीच या मध्य में खुजली या घाव होना।
सीढ़ियों पर चढ़ने से या पिछले कष्ट या घटनाओं को याद करने से कष्ट बढ़ना ।
मस्तिष्क का हिल जाना । 
मानसिक रोग या कष्ट होना। 
पैरों की पिण्डलियों में ऐंठन होना। स्वपनचारिता या नींद में चलना या बोलना । चावल के धोवन सा दस्त।
मीठा कम पसन्द।
बैठना अधिक पसन्द। 
भूलना ।
पहचानने में कष्ट।
बुखार के बादऑख का घूम जाना या ऐंचापन ।
स्कूल जाने के समय का कष्ट । 
परीक्षा या इन्टरव्यू केे समय कष्ट या वीमार हो जाना। 
पेशाब से खून आना। 
ऑपरेशन के बाद की परेशानी।
 ब्लड प्रेशर ( उच्च रक्तचाप में kali Phos 12x एवं निम्न रक्त चाप में काली फॉस 3x का प्राय: उपयोग किया जाता है ) .
उड़ने, गिरने, पहाड़, भूत,विचित्र, भयानक या आग का सपना। 
काला या दुर्गन्धित घाव। 
लिंग में तनाव का अभाव। 
पीला पका सा बलगम या लिकोरिया ।
पीली योनि। 
हथेली, तलवे और / या ऑखों में जलन। 
ऊपर की ओर देखने से चक्कर। 
गर्दन झुकाने से पैर तक दर्द।
चेहरे में जलन और / या की खुजली ।

7. Kalium Sulphuricum / Kali Sulph.:- 
गर्मी से या मुख्यतया कमरे की गर्मी से कष्ट बढ़ जाना। 
सायंकाल से मध्य रात्रि तक कष्ट बढ़ना।
खुली ठंडी हवा में आराम ।

8. Magnashium Phosphoricum / Mag Phos. 
छूने से कष्ट, परन्तु दबाने से आराम।
आग, गर्मी, ताप, धूप या सेंकने से आराम। 
ठंढ़क से कष्ट में वृद्धि। 
आँखों में खुजलाहट।
 नाभि के चारों ओर घूमता हुआ दर्द। 
दायें करवट लेटने से कष्ट बढ़ता है ।
कष्टार्तव मेन्स या रज:श्राव होने पर घटना। द्विदृष्टि (एक का दो दिखाई पड़ना। 
अपनी सम्पत्ति से मोह अधिक होने से सदा अपने देखरेख में ही या पास में ही रखने की मानसिकता या इच्छा रहना।

9. Natrum Mureticum / Natrum Mure.
पानी भरा फोड़ा या श्राव ।
कमर से ऊपर दुबलपन परन्तु नीचे भारीपन ।
जाड़े में कमर से नीचें अत्यधिक ठंडापन ।
चावल / भात, नमक या मिर्च अधिक पसन्द । सूर्य की धूप मुख्यतः 9 बजे दिन से 3 बजे दिन तक वेवर्दास्त या नापसन्द ।सुबह 10 बजे से 11बजे के मध्य रोग लक्षण में विशेष वृद्धि ।
बुखार एवं सरदर्द के समय Nat-Mure का उपयोग नहीं किया जाता है।
भूखे रहना अधिक पसन्द । क्रोधी एवं चिड़चिड़ा स्वभाव । दूसरे या अनजान व्यक्ति का भी दुख स्वयं झेलना चाहता है।
सहानुभुति नापसन्द । 
जोड़ों पर दाद/ दिनाय ।
श्वेत कुष्ट ।
सिर के पिछले भाग में सिर दर्द प्रारम्भ होता है ।
सुबह से शाम तक कष्ट की वृद्धि ।
प्रेम में निराश होने या कष्ट की स्थिति में खिड़की से बाहर कूदने या मरने की इच्छा।
सायंकाल से रातभर आराम।
कुर्सी/दीवार से पीठ सटा कर बैठने से आराम।
कड़े चीजों या स्थानों या बिछावन पर पीठ के बल लेटने से आराम ।
उदास मनोभाव। उदासी के साथ हृदय की धड़कन। विनोदशीलता। नाचने तथा गाने की प्रवृत्ति। वयसन्धिकाल में विवादग्रस्त।
तीव्र ठहाके। 
कपालावरण पर उद्भेद,खुजली करते।
ग्रीवा पृष्ठ पर, केशों की सीमा पर।
अनजाने में आगे की ओर सिर का झुक जाना। 
सिर दर्द मासिक धर्म के पहले या बाद में । टहलते समय या टहलने के बाद सिरदर्द ।
मुख से अत्यधिक लार निकलना।
सिरदर्द के साथ खूब आँसू बहना।
प्रातःकाल से सिरदर्द। मन्दगति से सिरदर्द।
सिरदर्द के साथ माथा भारी।
अर्धकपाली (अधकपारी/Hemicrania).
मानो सिर खुल जायेगा। लू लगना। 
कब्ज से सिरदर्द।
पानी जैसी पतली श्लेष्मा के साथ सिरदर्द।
Ciliary neuralgia (स्नायुशूल).
नेत्रों से श्वेत श्लेष्मा का श्राव।
नेत्रों के चारों ओर पानी भरे फफोले।
आँखों के सामने कुहासा का अनुभव।
Glaucoma (काला मोतिया).
सिल्वर नाइट्रेट से अश्रुश्राव ।
कण्ठमालाग्रस्तों के Corina का अल्सर।
Cornea पर उजला दाग।पढ़ते समय अक्षरों का मिल जाना या अक्षर पर अक्षर दिखायी पड़ना।
चबाते समय कान में कड़कने की आवाज।
कान के भीतर जलन या खुजली या गरजने की आवाज होना।
नाक से पतला, स्वच्छ, पानी सा, नमकीन श्राव।
झुकने या खाँसने पर नाक से रक्तश्राव। 
परागज ज्वर। नाक पर फुन्सियाँ।
नाक के छिद्रों का पिछला हिस्सा शुष्क।
नाक के चारों ओर चेहरा सफेद।
एक पक्ष पर सुन्नता का अनुभव।
मूछों का पंक्ति छोड़ देना या अपंक्तिबद्ध होना।
दाढ़ी, मूँछ,गुप्तांगों ही नहीं वल्कि सर्वांग शरीर का बाल झड़ना।
सूजा हुआ होठ /ओठों में जलनकारी /पीड़ा पूर्ण दरार। भग/योनि शिथिल।
जिह्वा पर बुलबुले।स्वादहीनता या स्वाद का लोप। बोलना धीरे सीखना।जिह्वा के सिरे पर फफोले। व्रणयुक्त मसूढ़े। दाँत दर्द के साथ लार श्राव।लार ग्रन्थियों का प्रदाह।संवेदनशील मसूढ़े।चिरकालीन कण्ठदाह।सूखा कण्ठ।कण्ठ की अपवृद्धि।गलगंड रिसाव के साथ।काकलक शोथ।
रोटी से अरुचि, चावल,नमक,कड़वे पदार्थ या मिर्च पसन्द। मुख में पानी भर आना। अम्ल वमन।
निद्रालुता । धूम्रपान की इच्छा।
आँतों की अति निष्क्रियता।मलाभ में जलनकारी पीड़ा।आर्द्रता का अभाव।आँतों की कमजोरी।त्वचा/गुदा फटने जैसा कब्ज।अनैच्छिक अतिसार।बवासीर में स्पन्दन।
मलाभ में सूचीवेधी पीड़ा। भुरभुरा/शुष्क मल।
मूत्रत्याग के बाद जलन या काटने जैसी पीड़ा।
मृत कामेच्छा।पुर:स्थ द्रव्य का श्राव।अंडकोषों या वृषण रज्जु में खिंचाव या सूजन। पानी जैसा प्रमेह।
तप्त दाह क्षत। शिशन के बालों का लोप।शीतलता के साथ वीर्यश्राव।
गर्भाशय में जलन या काटने जैसी पीड़ा।मासिक के समय उदासी।योनि का बाल झड़ना।विलम्बित शिरोवेदना के साथ पानी जैसा अत्यधिक मासिक श्राव।
गर्भाशयच्युति में बैठने से आराम। मूत्र त्याग के बाद जलन।प्रसव या स्मवण के दौरान केशों का झड़ना।
खाँसी या भौकने के कारण मानो फाड़ देने वाली शिरोवेदना।उरोस्थि के पीछे चुनचुनी।
ठंढ़े हाथ।हृदय में संकुचन।
पंगु।ऊँगलियों में फफोलेदार व्रण।पिंडलियों में कमजोरी।कटि/कमर तथा बाह्यांगों की शीतलता।नितम्ब सन्धि शूल।बायें नितम्ब में सूचीवेधी पीड़ा।जानु मोड़ में विसर्प या कमजोरी।अंगों का सो जाना।सन्धियों के आसपास शीतपित्त/जुलपित्ती (Urticaria).
निद्रा के दौरान अनैच्छिक झटके। थकावट।
वतोन्मादी।निर्बलता के साथ हिचकी। व्याकुलता पूर्ण या अत्यधिक नींद या निरन्तर सोने की इच्छा ।सुबह जगने पर थकावट।निद्रालोप। 
शीतज्वर या होठों पर छाले। सुबह से दोपहर तक शीत।अविरामी ज्वर कुनैन सेवन के बाद।
चिरकालिक त्वचा रोग।भौहों का झड़ना।वृत्ताकार विसर्प।कीटदंश।तीव्र परिश्रम के पश्चात खुजली। सर्वांग शोथ। जलशोथ।
ठण्डे मौसम में या समुद्र के किनारे पर कष्ट।
छत की खिड़की से कूदकर मरने की इच्छा।

10. Natrum Phosphoricum / Natrum Phos. :- 
झागदार पेशाब, बलगम, पीब या पाखाना ।
कृमि।
नपुंसकता ( स्त्रियों एवं पुरुषों में बन्ध्यापन )।
वायीं कनपट्टी में दर्द। 
खट्टा डकार। 
जीभ के किनारे में सायकिल के गियर का सा दाग।
मृतक या साँप का सपना। 
जोड़ों में सूजन में अन्य स्थानों से अधिक ताप या गर्मी ।
बायें ठेहुने का कचकना ।
ठनका या बिजली कड़कने से कष्ट।

11. Natrum Sulphuricum / Natrum Sulph. जिह्वा का रंग हरा । 
मुँँह का स्वाद् तीता।
वाँयी करवट लेटने में कष्ट का बढ़ जाना। 
क्रोध के कारण जोण्डिस हो जाना। 
सिर के पिछले भाग में चोट का दर्द।
मछली और / या जलोत्पन्न वस्तुओं के सेवन से कष्ट की वृद्धि ।
मौसम परिवर्तन से आराम ।

12. Silica :- 
बालू के समान गरम ( गरम ओढ़ना पसन्द ) , परन्तु भीतर ठंढ़ा पसन्द । 
पैरों का पसीना दबने से कष्ट ।
खुली हवा से कष्ट ।
घाव में वर्फ के समान ठण्ढ़क या शीतलता का अनुभव। 
पाखाना होते समय मल या पाखाना पुन: गुदा मार्ग में वापस अंदर चला जाना। 
2 बजे रात के बाद सिर से पसीना आना या मिर्गी आना।
पूर्णिमा के समय कष्ट की वृद्धि ।



रविवार, 9 जुलाई 2017

प्रज्ञा-सूक्तं :

'प्रज्ञा-सूक्तं'
-प्रो०अवधेश कुमार 'शैलज',पचम्बा, बेगूसराय ।
ऊँ स्वयमेव प्रकटति ।। १।।
अर्थात्
परमात्मा स्वयं प्रकट होते हैं ।

प्रकटनमेव जीवस्य कारणं भवति ।।२।।
परमात्मा का प्रकट होना ही जीव का कारण होता है ।

जीव देहे तिष्ठति ।।३।।
जीव देह में रहता है ।

देहात काल ज्ञानं भवति ।।४।।
देह से समय का ज्ञान होता है ।

देहमेव देशोच्चयते ।।५।।
देह ही देश कहलाता है ।

देशकालस्य सम्यक् ज्ञानाभावं अज्ञानस्य कारणं भवति ।।६।।
देश एवं काल के सम्यक् (ठीक-ठीक एवं पूरा-पूरा) ज्ञान का अभाव अज्ञान का कारण होता है ।

अज्ञानात् भ्रमोत्पादनं भवति ।।७।।
अज्ञान् से भ्रम ( वस्तु/व्यक्ति/स्थान/घटना की उपस्थिति में भी सामान्य लोगों की दृष्टि में उसका सही ज्ञान नहीं होना)  पैदा/ उत्पादित होता है ।

भ्रमात् विभ्रमं जायते ।।८।।
भ्रम (Illusion) से विभ्रम (Hallucination) पैदा या उत्पन्न होता है ।

विभ्रमात् पतनं भवति ।।९।।
विभ्रम (विशेष भ्रम अर्थात् व्यक्ति,वस्तु या घटना के अभाव में उनका बोध या ज्ञान होना) से पतन होता है ।

पतनमेव प्रवृत्तिरुच्चयते ।।१०।।
पतन ही प्रवृत्ति कहलाती है ।

प्रवृत्ति: भौतिकी सुखं ददाति ।।११।।
प्रवृत्ति भौतकी सुख प्रदान करता है ।

भौतिकी सुखं दु:खोत्पादयति ।।१२।।
भौतिकी सुख दु:ख उत्पन्न करती है ।

सुखदु:खाभात् निवृत्ति: प्रकटति ।। १३ ।।
सुख दुःख के अभाव से निवृत्ति ( संसार से मुक्त होने की प्रवृत्ति ) प्रकट होती है ।

निवृत्ति: मार्गमेव संन्यासरुच्चयते ।।१४।।
निवृत्ति मार्ग ही संन्यास कहलाता है ।

संन्यासमेव ऊँकारस्य पथं अस्ति ।। १५।।
संन्यास ही परमात्म का पथ या मार्ग है ।

संन्यासी आत्मज्ञ: भवति ।। १६।।
संन्यासी आत्मज्ञानी होते हैं ।।

आत्मज्ञ: ब्रह्मविद् भवति ।।१७।।
आत्मज्ञानी ब्रह्म ज्ञानी होते हैं ।.

जीव ब्रह्म योग समाधिरुच्चयते ।।१८।।
जीव और ब्रह्म का योग ही वास्तव में समाधि कहलाता है ।

नोट :- ज्ञातव्य है कि थियोसोफिकल सोसायटी की अन्तर्राष्ट्रीय अध्यक्षा डॉ० राधा वर्नीयर को जब मेरी इस रचना की जानकारी हुई तो उन्होंने इस रचना का शीर्षक 'सत्य की ओर' दिया साथ ही इस रचना पर अपनी टिप्पणी देते हुए थियोसोफिकल सोसायटी की महत्वपूर्ण हिन्दी पत्रिका 'अध्यात्म ज्योति' में मुझ अवधेश कुमार 'शैलज' के नाम से इस रचना को प्रकाशित करवाया, जिसके लिए मैं  हृदय से आभारी हूँ ।