शनिवार, 30 मई 2020

Vito प्रयोग की उपादेयता

किसी भी व्यक्ति, शक्ति, विचार, नीति, व्यवस्था या सरकार के सन्दर्भ में उनके सम्यक्, रचनात्मक, सकारात्मक, आध्यात्मिक एवं सर्वांगीण विकास के हित में विशेष या अनिवार्य परिस्थिति में Vito प्रयोग लोकहित में एक आदर्श मित्र का दायित्व है।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय।

In the interests of any person, power, idea, policy, system or government in the interest of their equitable, constructive, positive, spiritual and all-round development, the use of Vito is the responsibility of an ideal friend in the public interest.

Dr. Prof. Awadhesh Kumar Shailaj, Pachamba, Begusarai.

शनिवार, 23 मई 2020

रचनात्मक राष्ट्रवाद वर्ष 2019

रचनात्मक सेवा केन्द्र, पचम्बा, बेगूसराय द्वारा वर्ष 2019 को राष्ट्रहित एवं लोकहित में " रचनात्मक राष्ट्रवाद वर्ष " घोषित किया गया।

रचनात्मक शताब्दी (21 वीं शताब्दी)

रचनात्मक सेवा केंद्र, पचम्बा, बेगूसराय द्वारा 21 वीं शताब्दी की पूर्व संध्या पर दिनांक 31/12/2000 को संस्था हित एवं लोकहित में "21 वीं शताब्दी : रचनात्मक शताब्दी" घोषित किया गया।

शुक्रवार, 22 मई 2020

भूल तुम कब तक करोगे ?

शुक्रवार, 22 मई 2022
भूल तुम कब तक करोगे ?

प्रत्यक्ष को पहचानने की भूल तुम कब तक करोगे ?
काल-क्रम में एक दिन तुम सत्य का दर्शन करोगे।।
प्रकृति, गुरु, आध्यात्म, शिक्षा, विज्ञान, वेदों से जुड़ोगे।
पूर्वजों के प्राकृतिक चिह्नों को संग में लेकर जब बढ़ोगे।।
आधुनिकता अर्वाचीनता को साथ लेकर जब चलोगे।
रूप अन्तर्ध्यान होना, तुम मेरा खोना, सिमटना कहोगे ।
जब मुझे तुम खो चुकोगे, विश्वास मुझ पर तब करोगे।
प्रत्यक्ष को पहचानने की भूल तुम कब तक करोगे ?
काल-क्रम में एक दिन तुम सत्य का दर्शन करोगे।।

अग्नि का मैं ताप, जल का शीत हूँ मैं।
इस जगत् की सृष्टि का असल में बीज हूँ मैं।।
है अटल यह सत्य, मेरे अंग हो तुम।
वेदना समझो, समझ के संग हो तुम।।
वत्स अन्त:ज्योति तेरी कब जलेगी ?
भीड़ से अलग पहचान तेरी कब बनेगी ?
साधना की ज्योति तुममें कब जगेगी ?
है सनातन सत्य मुझ से दूर हो कभी क्या रह सकोगे?
जब मुझे तुम खो चुकोगे, विश्वास मुझ पर तब करोगे ?
प्रत्यक्ष को पहचानने की भूल तुम कब तक करोगे ?
काल-क्रम में एक दिन तुम सत्य का दर्शन करोगे।।

लिया जब अवतार मैंने,आर्त्तों की पीड़ हरने।
झेल झंझावात सारे,हर हृदय में प्रेम भरने।
प्राणियों के त्रिविध तापों को सहज ही दूर करने।
कार्य कारण की समझ स्थापना विधि मान्य करने।
पर, नहीं विश्वास, अमर फल स्वाद तुम कैसे चखोगे ?
जब मुझे तुम खो चुकोगे,विश्वास मुझ पर तब करोगे ?
प्रत्यक्ष को पहचानने की भूल तुम कब तक करोगे ?
काल-क्रम में एक दिन तुम सत्य का दर्शन करोगे।।

प्रणव ऊँ स्वरूप मेरा, त्रिगुण त्रिविमीय आयाम गोचर।
पंच तत्वों में परस्पर व्याप्त चराचर अनन्त स्वरूप मेरा।।
वेद वाणी, सर्वज्ञ, सम्प्रभु, आद्यान्त, सगुणागुण नियन्ता।
मैं प्रकृति पुरुषात्मक जगत् स्रष्टा, पालन, संहार कर्त्ता।।
पर, बिना श्रद्धा समर्पण पहचान तुम कैसे सकोगे ?
जब मुझे तुम खो चुकोगे, विश्वास मुझ पर तब करोगे ?
प्रत्यक्ष को पहचानने की भूल तुम कब तक करोगे ?
काल-क्रम में एक दिन तुम सत्य का दर्शन करोगे।।

मूल जड़ चैतन्यता, अहं, उदगार प्रकृति समरूपता का।
है जगत् नि:सार शैलज, मोह भ्रम क्या तज सकोगे ?
सत्य पर विश्वास करने, अग्नि पथ पर चल सकोगे ?
योग या फिर भोग में सम भाव में मुझसे मिलोगे।
प्रवृत्ति व्यूह में यों घूमते या निवृत्ति कर्म पथ पर चलोगे ?
जब मुझे तुम खो चुकोगे, विश्वास मुझ पर तब करोगे ?
प्रत्यक्ष को पहचानने की भूल तुम कब तक करोगे ?
काल-क्रम में एक दिन तुम सत्य का दर्शन करोगे।।

मन्दिरों, मस्जिदों, गह्वरों में, या कि फिर गिरिजाघरों में।
चींख कर दम तोड़ दोगे, या कि साधना रत रहोगे ?
कष्ट देकर क्या किसी को, लक्ष्य तक तुम चल सकोगे ?
प्रेम को जाने बिना तू, एक पग क्या बढ़ सकोगे ?
रूप अन्तर्ध्यान होना, तुम मेरा खोना, सिमटना कहोगे ।
जब मुझे तुम खो चुकोगे, विश्वास मुझ पर तब करोगे ?
प्रत्यक्ष को पहचानने की भूल तुम कब तक करोगे ?
काल-क्रम में एक दिन तुम सत्य का दर्शन करोगे।।

इस तरह निज में सिमटने को तुम मेरा खोना कहोगे।
जब मुझे तुम खो चुकोगे, विश्वास मुझ पर तब करोगे।
प्रत्यक्ष को पहचानने की भूल तुम कब तक करोगे ?
काल-क्रम में एक दिन तुम सत्य का दर्शन करोगे।।

प्रो० ए० के० शैलज,पचम्बा,बेगूसराय
(डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय।)

Prof. Awadhesh Kumar पर 1:20 pm

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बुधवार, 13 मई 2020

आओ! देश के

आओ ! देश के कोने-कोने का दिल से हम ख्याल करें।
भारत माता के हर सपूत के बलिदानों को हम याद करें।।
जाड़ा, गर्मी, बर्षा, बसन्त सब का स्वागत सत्कार करें।
हर मौसम में बसन्त की नित अनुभूति हम स्वीकार करें।।
आओ! देश के कोने-कोने का दिल से हम ख्याल करें।
भारत माँ के हर सपूत के बलिदानों को हम याद करें।।

सत्तर वर्षों की बेड़ी से मुक्त हुई माँ, हर्षित संसार सुनो।
टूट गये सब चक्र व्यूह, भारत माँ कर रही पुकार सुनो।।
हवा हवाई है अब केवल, शुभ अवसर है, अंगीकार करो।
छोड़ो भूल, मूल को पकड़ो, सच सच है, स्वीकार करो।।
आओ! देश के कोने-कोने का दिल से हम ख्याल करें।,
भारत माँ के हर सपूत के बलिदानों को हम याद करें।।

इस मिट्टी की मूरत हैं हम, हरि ऊँ कृपा को याद करो।
मौसम है अनुकूल,अपनी विराट सीमा स्वीकार करो।।
पाक इरादा साफ नहीं,खुदगर्जी,सत्ता व्यापार कहो।
सौतेलापन, क्रूरता, मातृवत रहा कहाँ व्यवहार कहो ?
आओ! देश के कोने-कोने का दिल से हम ख्याल करें।
भारत माँ के हर सपूत के बलिदानों को हम याद करें।।

भारत माता बाट जोहती, शोकाकुल, चिन्तन में।
माँ की धड़कन है पुकारती गूंज रही जो नभ में।।
ओ मेरे सिर मौर! तुम्हारी रक्षा मेरा प्रण है।
पुत्र ! तुम्हारा हित सम्वर्धन लक्ष्य अहम् मेरा है।
धाराओं को काट अनेकों आज पास आयी हूँ।
शपथ तिरंगा,आतंकी बन्धन मुक्ति-पत्र लायी हूँ।।
आओ! देश के कोने-कोने का दिल से हम ख्याल करें।
भारत माँ के हर सपूत के बलिदानों को हम याद करें।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय।

रविवार, 10 मई 2020

होम्योपैथी एवं बायोकेमिक चिकित्सा पद्धति मेरी दृष्टि में

जर्मनी के ऐलोपैथिक चिकित्सक डॉ0 हैनीमैन होमियोपैथिक चिकित्सा के जनक थे और उनके सहयोगी एवं शिष्य डॉ0 शुस्लर के अनुसार मानव या प्राणी के शरीर में 12 तरह के नमक पाये जाते हैं जिन्हें उन्होंने बायोकेमिक तत्व कहा जाता है। ये हैं फेरम फॉस, काली फॉस, कैलकेरिया फॉस, मैग फॉस, नेट्रम फॉस, काली म्यूर, काली सल्फ, कैलकेरिया सल्फ, नेट्रम म्यूर, नेट्रम सल्फ, कैलकेरिया फ्लोर एवं साइलीशिया। वास्तव में इन 12 तत्वों में असन्तुलन से किसी भी प्रकार का मनो-शारीरिक रोग या विकार उत्पन्न हो जाता है। मेरी दृष्टि में किसी भी चिकित्सा पद्धति से जब तक इन बायोकेमिक तत्वों का सन्तुलन शरीर में नहीं होता है, तो कोई भी व्यक्ति, प्राणी स्वस्थ एवं विकसित नहीं हो सकता है। मैंने मानव, मानवेतर प्राणी तथा वनस्पतियों पर भी होम्योपैथी औषधियों के त्वरित सुप्रभाव का अध्ययन किया है। मैं एक सामान्य व्यक्ति हूँ और मनोविज्ञान का व्याख्याता रहा हूँ। साहित्य, अध्यात्म, लेखन, सम्पादन, पत्रकारिता, चिकित्सा आदि क्षेत्रों में मेरी रुचि प्रारम्भ से ही रही है। मैं होम्योपैथी और बायोकेमिक चिकित्सा पद्धति की लाक्षणिक चिकित्सा पद्धति में विश्वास करता हूँ और विगत 23 वर्षों से अवकाश के समय में मैं विधिवत् होम्योपैथी और मूलतः बायोकेमिक औषधियों के माध्यम से न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक रोगियों की चिकित्सा करने का प्रयास किया है, और उन रोगियों में लगभग 90 प्रतिशत वैसे रोगियों ने पर्याप्त लाभ पाया है, जिन्होंने सही और स्पष्ट रूप से अपने लक्षणों को मुझे वेझिझक बताया है तथा चिकित्सा सम्बन्धी निर्देशों का पालन किया है। ज्ञातव्य है कि विगत लगभग 33 वर्षों से मैं खुद अपना और अपने परिवार के सदस्यों की चिकित्सा हेतु होम्योपैथी और बायोकेमिक चिकित्सा पर ही निर्भर रहा हूँ एवं हमेशा स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करता आ रहा हूँ तथा भविष्य में भी मुझे होम्योपैथी और बायोकेमिक चिकित्सा से पर्याप्त लाभ मिलता रहेगा, ऐसा मेरा अनुभव और विश्वास है। विशेष हरि कृपा।

शुभमस्तु। ।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय।
Homoeopathic practitioner, Certificate No.38430.
State Board of Homoeopathic Medicine, Bihar.
P.G.(Psychology), L.N.M.U.Darbhanga. 

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शनिवार, 2 मई 2020

दीवार द्वन्द्व की तोड़ें

सम्यक् भाव विचार हैं जिनके, वंदनीय वे जन हैं।
काम, क्रोध, मद, लोभ रहित, लोग सभी सज्जन हैं।।
मातु-पिता से बढ़कर केवल सदगुरु एक होते हैं।
मित्र, सहायक, शत्रु से भी, हम सीख सदा लेते हैं।।
अच्छे सभी नहीं हैं जग में, हर सुन्दर चेहरे वाले।
सावधान "शैलज" उनसे भी जो लगते हैं रखवाले।।
पर, सब में अपनापन,सुन्दरता, सद्गुण यदि देख सकते हो।
शत्रु मित्र बनेंगे, प्रभु कृपा अहैतुकी अनुभव कर सकते हो।
जिसने तेरी रचना की है और जगत् में भेजा।
कर्म करो नित उन्हें याद कर, बदलेगी हर रेखा।।
धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष का चक्र अहर्निश चलता।
देश, काल औ पात्र बोध से अनुपम फल है मिलता।।
अपने पर विश्वास और श्रद्धा हो हर कण-कण में।
आत्मनियंत्रण, जीवन का सदुपयोग भाव हर क्षण में।।
भावुकता से नहीं चलेगी, जीवन की यह गाड़ी।
पर कठोरता सह न सकेगी, सपने की लाचारी।।
विटप-वेल, रति-काम महोत्सव, योग-भोग सुख दायी।
धर्म-कर्म निज निरत चराचर, सबाल वृद्ध युवा नर-नारी।।
सुख-दुःख भोग, जगत् का मेला, आवागमन यहाँ अकेले।
दुर्गम नहीं, सुगम पथ जग का, बस खेल समझ कर खेलें।।
सुन्दर सुभग अनुपम बसन्त संग प्राकृतिक छटा सुहावन।
प्रकृति पुरुषात्मकम् जगत् श्री हरि बोध हृदय मन भावन।।
जीवन पथ में हम सफर के संग दीवार द्वन्द्व की तोड़ें।
अनुकरणीय आदर्श जीवन की सदा छाप हम छोड़ें।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय।