शुक्रवार, 22 मई 2020

भूल तुम कब तक करोगे ?

शुक्रवार, 22 मई 2022
भूल तुम कब तक करोगे ?

प्रत्यक्ष को पहचानने की भूल तुम कब तक करोगे ?
काल-क्रम में एक दिन तुम सत्य का दर्शन करोगे।।
प्रकृति, गुरु, आध्यात्म, शिक्षा, विज्ञान, वेदों से जुड़ोगे।
पूर्वजों के प्राकृतिक चिह्नों को संग में लेकर जब बढ़ोगे।।
आधुनिकता अर्वाचीनता को साथ लेकर जब चलोगे।
रूप अन्तर्ध्यान होना, तुम मेरा खोना, सिमटना कहोगे ।
जब मुझे तुम खो चुकोगे, विश्वास मुझ पर तब करोगे।
प्रत्यक्ष को पहचानने की भूल तुम कब तक करोगे ?
काल-क्रम में एक दिन तुम सत्य का दर्शन करोगे।।

अग्नि का मैं ताप, जल का शीत हूँ मैं।
इस जगत् की सृष्टि का असल में बीज हूँ मैं।।
है अटल यह सत्य, मेरे अंग हो तुम।
वेदना समझो, समझ के संग हो तुम।।
वत्स अन्त:ज्योति तेरी कब जलेगी ?
भीड़ से अलग पहचान तेरी कब बनेगी ?
साधना की ज्योति तुममें कब जगेगी ?
है सनातन सत्य मुझ से दूर हो कभी क्या रह सकोगे?
जब मुझे तुम खो चुकोगे, विश्वास मुझ पर तब करोगे ?
प्रत्यक्ष को पहचानने की भूल तुम कब तक करोगे ?
काल-क्रम में एक दिन तुम सत्य का दर्शन करोगे।।

लिया जब अवतार मैंने,आर्त्तों की पीड़ हरने।
झेल झंझावात सारे,हर हृदय में प्रेम भरने।
प्राणियों के त्रिविध तापों को सहज ही दूर करने।
कार्य कारण की समझ स्थापना विधि मान्य करने।
पर, नहीं विश्वास, अमर फल स्वाद तुम कैसे चखोगे ?
जब मुझे तुम खो चुकोगे,विश्वास मुझ पर तब करोगे ?
प्रत्यक्ष को पहचानने की भूल तुम कब तक करोगे ?
काल-क्रम में एक दिन तुम सत्य का दर्शन करोगे।।

प्रणव ऊँ स्वरूप मेरा, त्रिगुण त्रिविमीय आयाम गोचर।
पंच तत्वों में परस्पर व्याप्त चराचर अनन्त स्वरूप मेरा।।
वेद वाणी, सर्वज्ञ, सम्प्रभु, आद्यान्त, सगुणागुण नियन्ता।
मैं प्रकृति पुरुषात्मक जगत् स्रष्टा, पालन, संहार कर्त्ता।।
पर, बिना श्रद्धा समर्पण पहचान तुम कैसे सकोगे ?
जब मुझे तुम खो चुकोगे, विश्वास मुझ पर तब करोगे ?
प्रत्यक्ष को पहचानने की भूल तुम कब तक करोगे ?
काल-क्रम में एक दिन तुम सत्य का दर्शन करोगे।।

मूल जड़ चैतन्यता, अहं, उदगार प्रकृति समरूपता का।
है जगत् नि:सार शैलज, मोह भ्रम क्या तज सकोगे ?
सत्य पर विश्वास करने, अग्नि पथ पर चल सकोगे ?
योग या फिर भोग में सम भाव में मुझसे मिलोगे।
प्रवृत्ति व्यूह में यों घूमते या निवृत्ति कर्म पथ पर चलोगे ?
जब मुझे तुम खो चुकोगे, विश्वास मुझ पर तब करोगे ?
प्रत्यक्ष को पहचानने की भूल तुम कब तक करोगे ?
काल-क्रम में एक दिन तुम सत्य का दर्शन करोगे।।

मन्दिरों, मस्जिदों, गह्वरों में, या कि फिर गिरिजाघरों में।
चींख कर दम तोड़ दोगे, या कि साधना रत रहोगे ?
कष्ट देकर क्या किसी को, लक्ष्य तक तुम चल सकोगे ?
प्रेम को जाने बिना तू, एक पग क्या बढ़ सकोगे ?
रूप अन्तर्ध्यान होना, तुम मेरा खोना, सिमटना कहोगे ।
जब मुझे तुम खो चुकोगे, विश्वास मुझ पर तब करोगे ?
प्रत्यक्ष को पहचानने की भूल तुम कब तक करोगे ?
काल-क्रम में एक दिन तुम सत्य का दर्शन करोगे।।

इस तरह निज में सिमटने को तुम मेरा खोना कहोगे।
जब मुझे तुम खो चुकोगे, विश्वास मुझ पर तब करोगे।
प्रत्यक्ष को पहचानने की भूल तुम कब तक करोगे ?
काल-क्रम में एक दिन तुम सत्य का दर्शन करोगे।।

प्रो० ए० के० शैलज,पचम्बा,बेगूसराय
(डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय।)

Prof. Awadhesh Kumar पर 1:20 pm

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