रविवार, 19 अगस्त 2018

राष्ट्र गान

Kofi Annan का महाप्रयाण

According to Kofi Annan's twitter account, according to Kofi Annan foundation and Annan family, Kofi Annan's work was done on August 18. Nobel Prize awarded to world peace; The world has lost a creative personality, due to the sudden demise of Kofi Annan, who favored the creative objectives of Amnesty International, influenced by the views of Nelson Mandela and who played a key role in the United Nations, believing in the preservation of world peace and human values. God blesses his wife, children, relatives and elders with the strength to bear patience in their hour of grief and their soul.
अर्थात्
Kofi Annan के twitter account से ज्ञात् हुआ कि Kofi Annan foundation and Annan family के अनुसार Kofi Annan का.निधन 18 अगस्त को हो गया। विश्व शान्ति के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित ; विश्व शान्ति एवं मानवीय मूल्यों की रक्षा में विश्वास करनेवाले, नेल्सन मंडेला के विचारों से प्रभावित तथा संयुक्त राष्ट्र संघ में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले , एमनेस्टी इंटरनेशनल के रचनात्मक उद्देश्यों के पक्षधर Kofi Annan के आकस्मिक निधन से विश्व ने एक रचनात्मक व्यक्तित्व खो दिया। भगवान् उनके पत्नी, बच्चे, परिजनों एवं पुरजनों को इस दु:ख की घड़ी में धैर्य धारण करने की शक्ति तथा उनकी आत्मा को शान्ति दें ।

प्रो० अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय।

गुरुवार, 2 अगस्त 2018

शुभ हो तुम्हारा.....

यादों में तुम्हारे दिन रात बीतते हैं।
तू हो कहाँ? हर रोज खोजते हैं ।।
वह कौन सा समय है जो आप छूटते हैं।
कैसे बताऊँ जग को? जो आप रूठते हैं।।
जाता जहाँ जहाँ में, बस आप दीखते हैं।
हो रूप जो जहाँ भी,हर ओर दीखते हैं।।
बन-बाग, पर्वतों में; नद, झील, निर्झरों में।
शहर गाँव खेतों में,मिलते हो झाड़ियों में ।।
कड़ी धूप दिन की या रात चाँदनी हो।
मिलोगे तुम मुझको आखिर विवश हो।।
भटकता गमों में, यादों में ढ़ूँढ़ता हूँ।
बाहर में खोजता हूँ, अन्तस् में ढ़ूँढ़ता हूँ।।
जंगल में बन पशुओं का शोर हो रहा है।
देखो तो सिंह गर्जन घनघोर हो रहा है।।    
चिग्घाड़ते हैं हाथी,मद मस्त होकर बन में।
लिपटे भुजंग चन्दन बिष छोड़ सुधा बन में।।
ऋषि-मुनि अप्सरा के संग हैं कहीं मगन होकर।
लिपटी तरु लतायें सब लोक लाज तज कर।।
कुसुमाकर आखेट में हैं निज पुष्प वाण लेकर।
सखा बसन्त संग में हैं सर्वस्व निज का देकर।।
पशुपति कृपा से रति काम रीझते हैं।
होकर अनंग जग में चहुँ ओर दीखते हैं।
फिकर बस हमारी तुमको नहीं है।
मिलने की कोई वेकरारी नहीं है।।
स्नेह से प्रेम पादप को दिल में हूँ रोपा।
दिल एक था जिसे मैंने तुझको है सौंपा।
मेरे तुम्हीं एक, पर हजारों हैं तेरे।
लेकिन हमारे तो तू ही हो मेरे।।
किसे मैं जगत में कथा यह सुनाऊँ।
तुम्हें कैसे अपनी व्यथा यह सुनाऊँ।।
सुबह-शाम, दिन-रात शुभ हो तुम्हारा।
इसी सोच में हर क्षण बीतता हमारा।।

प्रो० अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय।