सोमवार, 23 सितंबर 2019

होली की शुभकामना

विश्व के जन-जन में पारस्परिक प्रेम, आनन्द एवं विश्व बन्धुत्व की भावना भरने वाले साथ ही विध्वंसात्मक प्रवृत्ति पर रचनात्मक प्रवृत्ति के विजय प्रसंग का संदेश देने वाले पावन हिन्दू पर्व ह़ोली की हार्दिक शुभकामनाएं ।

दिवा-रात्रि अभिनन्दन

सर्वोत्तम शुभ घड़ी मनोरम,लगन सुन्दरतम् ,अति अनुपम। क्षितिज नभ शोभित स्वर्णिम,मणिमय पथ,दिव्य सरलतम।। सन्मुख रवि निर्मल अन्तस्, दनुज देव नर हैं नतमस्तक। गोपद रज पीताभ गुलाबी, फैला गुलाल है नभ तक।। पुष्प फल नैवेद्य यथोचित, अमृतमय अर्ध्य सुगन्धित। हल्दी धन धान्य दूर्वादल, वस्त्र उपवीत सुसज्जित।। श्रृंगार सोलह मन भावन, कला चौंसठ मधु पावन। छटा उत्कृष्ट लुभावन, मदन रति करें चुमावन।। चतुर्दिक मंगल गायन, हो मण्डप आच्छादन। सागर कर पद प्रक्षालन, शंखजल अमृत वर्षण।। बसन्त प्रकृति कुसुमाकर, प्रहरी द्वार पर अविचल। अभिनन्दन आरती पूजन, पवन व दीपक से प्रतिपल।। झूमते झिंगुर धुनि सुन, तिमिर तारक जुगनू संग। आतिथ्य आतुर रजनीचर, व्यस्त हैं मधुकर के संग।। वेद स्वर यज्ञ मण्डप में पूजन, व्यस्त हैं ब्राह्मण बटु जन। वैश्य धन, क्षत्रिय बल से, सेवक वन्दन अभिनन्दन।। इवादत करते मुस्लिम, निर्गुण रहमान प्रभु का। ईसाई करते हैं वन्दन, सगुण निर्गुण केशव का।। नर-नारि कला कौशल से, विज्ञान शोध, साधन से। साधक गृहस्थ फल पाते, भक्ति, योग, कर्म के बल से। दिवा रात्रि का वन्दन, सकल कलि कलुष नशावन। करत शैलज अभिनन्दन, ऊँ प्रभु पुण्यप्रद पावन।। डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय।

रविवार, 22 सितंबर 2019

हिन्दू राष्ट्र भारत...........

अंग्रेजों ने जब हिन्दू और मुस्लिम के नाम पर मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान तथा हिन्दू राष्ट्र हिन्दुस्तान/भारत/India बना दिया उसके बाद भी भारत के हिन्दू विरोधी, ब्रिटिश साम्राज्य के चाटूकार, स्वार्थी, भ्रष्ट, सत्ता लोलुप, अवसरवादी तथा आजाद हिन्द सरकार विरोधी नेताओं ने भारत में मुसलमानों को न केवल जगह दिया वरन् आज तक उनकी जी हजूरी करते आ रहे हैं और उनका पृष्ठ पोषण करते आ रहे हैं तथा धर्म निरपेक्षता के नाम पर हिन्दू धर्म एवं हिन्दू संस्कृति को व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक,धार्मिक तथा आध्यात्मिक स्तर पर समाप्त करने पर लगे हुए हैं और खुद हिन्दू भी अपनी आन्तरिक कमजोरियों या विवादों को दूर करने की रचनात्मक मानसिकता एवं सकारात्मक सोच से अलग हटकर विभिन्न पूर्वाग्रहों का शिकार होकर प्रतिशोध की ज्वाला में जल रहे हैं।
मुस्लिम अपने कुरान को और उसी तरह अन्य धर्मावलंबी अपने अपने धर्म ग्रन्थों एवं उनके निर्देशों को जी जान से अधिक मानते हैं, लेकिन हिन्दू प्रायः अपने को हिन्दू कहने और मानने में शर्माते हैं तथा केवल हिन्दू वंश में जन्म लेने के कारण अपने आप को हिन्दू मानते हैं तथा अपने-अपने जाति की सत्ता और जातिगत सरकारी या गैर-सरकारी लाभों के लिए अपनी जाति और धर्म को स्वीकार करते हैं।
अतः जी न्यूज के चैनल से मुस्लिम प्रवक्ता ने हिन्दुओं के सम्बन्ध में अगर यदि कुछ टिप्पणी की तो उन्होंने हिन्दू जागरण का मन्त्र फूका है, लेकिन हिन्दू आदर्शों को जब तक हिन्दू बिना किसी भेदभाव के स्वीकार नहीं करेंगे हिन्दुओं का सम्यक्, सन्तुलित एवं सर्वांगीण विकास होना संभव नहीं है।

शुक्रवार, 20 सितंबर 2019

चन्द्र यान २ की यात्रा-कथा

चन्द्रयान २ की यात्रा-कथा

चन्द्रयान-२ रॉकेट दिनांक २२/०७/२०१९ के २/४३ बजे दिन में इसरो द्वारा चन्द्रमा के दक्षिणी भाग में अध्ययन के लिए श्रीहरिकोटा (अक्षांश १३.७३३१ डिग्री उत्तर, देशांतर ८०.२०४७ डिग्री पूर्व) से भेजा गया।
विज्ञान हलाँकि ईश्वर एवं आध्यात्मिक शक्तियों तथा उनके गोरचरागोचर या व्यक्ताव्यक्त सूक्ष्मतम और रहस्यमयी शक्तियों में साथ ही चराचर जगत में व्याप्त ज्योतिर्गणितीय प्रभावों में प्रायः विश्वास नहीं रखता है, लेकिन आधुनिकता और विज्ञान की इस प्रकार की सोच से ईश्वरीय सत्ता, अध्यात्म एवं ज्योतिर्गणित विज्ञान सम्बन्धी तथ्यों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। अतः वैज्ञानिकों को भी ईश्वरीय एवं आध्यात्मिक शक्तियों में श्रद्धा और विश्वास को विकसित
करना चाहिए।
चन्द्र यान २ श्री हरि कोटा से दिनांक २२ जुलाई २०१९ तदनुसार श्रावण कृष्ण षष्ठी सोमवार के २/४३ बजे दिन में बृश्चिक लग्न में लग्नस्थ गुरु (किं कुर्वन्ति ग्रहाः सर्वे यस्य केन्द्रे बृहस्पति:) जैसे शुभद् योग के समय में चन्द्र के लिए भेजा गया, परन्तु यान भेजते समय युवा और प्रौढ़ वक्र काल के प्रभाव वाली स्थिति थी,जो किसी भी कार्य हेतु विलम्ब और कुछ कठिनाई का भी द्योतक था, परन्तु स्मरणीय है कि श्रावण माह में वक्र काल के समय में भी किये गये कार्यों में भी सफलता मिलने की सम्भावना बहुत अधिक रहती है।  ज्योतिष शास्त्र के माध्यम से विभिन्न तरह की शुभाशुभ सम्भावनाओं का बोध होता है । शुभ सम्भावनाओं के बोध से हमारा आत्मबल एवं मनोबल बढ़ता है और हमें अपने आपको को सही मार्ग पर चलते हुए महसूस करते हैं तथा भविष्य में और भी मेहनत कर अपने को सफल बनाने का प्रयास करते हैं, इसी प्रकार अशुभ सम्भावनाओं का बोध होने पर हमें अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए किये जा रहे कार्यक्रमों की कमियों की सम्भावनाओं के शोधपूर्ण अध्ययन करने और उत्तम उपलब्धि के लिए आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराने का अवसर मिल जाता है और/या सम्यक् शास्त्रीय उपचारों से समस्याओं के सम्यक् समाधान का मार्ग प्रशस्त हो जाता है।
वास्तव में हमारा रचनात्मक एवं सकारात्मक प्रयास एवं दृष्टिकोण ही हमारी हर समस्याओं के समाधान का मूल मंत्र है।
बताया जाता है कि इसरो का सम्पर्क चन्द्रयान २ चन्द्रमा की सतह से मात्र २.१ किलोमीटर दूर रहने के पूर्व किसी कारण से सम्प्रति टूट गया है । ज्योतिर्गणित के अनुसार चन्द्रयान २ पर शनि के कारण धूल कणों और शुक्र के कारण आर्द्रता से यान का उर्जा क्षेत्र प्रभावित हुआ फलस्वरूप यान की मशीनरी प्रभावित हुई और यान से इसरो का सम्पर्क टूट गया ।
मगर वैज्ञानिकों द्वारा चन्द्रयान २ से सम्पर्क टूटने के कारणों की संभावनाओं पर यदि शोध पूर्ण अध्ययन जारी रहेगा तो चन्द्र यान २ सम्पर्क टूटने के रहस्यों का सूत्र अनुसंधानकर्ताओं को सम्पर्क टूटने के क्रमशः १ घंटा १२ मिनट के बाद तथा १, ३ एवं ७ दिन की अवधि में प्राप्त होने की सम्भावना है। इसरो द्वारा इस महत्वपूर्ण शोध कार्य में सम्यक् योगदान से एक वर्ष के अन्दर के वैज्ञानिकों को अन्तरिक्ष के क्षेत्र में विशिष्ट स्थान प्राप्त होगा।
वास्तव में विज्ञान के क्षेत्र में विशिष्ट, सतर्क एवं सही शोध- पूर्ण अध्ययन तथा संयमित प्रयोग के बाद भी यदि अपेक्षित परिणाम या उपलब्धि प्राप्त नहीं हो पाती है, तो भी हमें धैर्य पूर्वक पुनर्विचार करने की आवश्यकता है, जो भविष्य में सफलता का मार्ग अवश्य प्रशस्त करता है।
शुभमस्तु।
प्रो० अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय।
    

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शनिवार, 14 सितंबर 2019

बेचारी हिन्दी (संशोधित)

वेचारी हिन्दी (संशोधित) :-

श्रीमान् जनता जनार्दन ! हे भारत भाग्य विधाता !
वंदनीय हे आतिथेय ! हिन्दी के भाग्य विधाता ।।
करूँ अर्चना कैसे ? तेरे लायक कुछ पास नहीं है।
प्रेम भाव सेवा में अर्पित, चरणामृत हेतु खड़ी है ।।
नयनों में हैं नीर खुशी की, हिय में पीड़ भरी है।
सेवा में आवेदन लेकर अबला एक खड़ी है।।
हे भारत के संविधान! क्या मैं अपनी व्यथा सुनाऊँ ?
कैसा है भारत स्वतंत्र ? क्यों मूक बनी रह जाऊँ ?
चीर हरण हो रहा हमारा, आज हमारे घर में।
कब आओगे कृष्ण कन्हैया, द्रौपदी के आँगन में ?
दुस्सासन अंग्रेजी कौरव दल से घिरी हुई हूँ।
धृतराष्ट्र को नहीं सूझता, दल-दल में पड़ी हुई हूँ।।
शकुनि की है चाल, दुर्योधन को समझ नहीं है।
धर्मराज हैं मूक, भीष्म प्रतिज्ञा बहुत बड़ी है।।
जनता पाण्डुपुत्र बैठे है, मौन सत्ता के आगे,
कर्त्ता धर्त्ता तुम हो केशव, तुमसे संकट भागे।।
कैसे भूलें मूल्य नमक का ? सुधी जन सोच रहे हैं ।
कृष्ण तुम्हारा रूप बना कर छलिये घूम रहे हैं ।।
लेते हो अवतार, तुम्हें क्या बतलाऊँ,कहाँ पड़े हो ?
धर्म सनातन की रक्षा का प्रण क्या भूल गये हो ?
कृष्ण! द्वारिकाधीश ! श्री हरि! स्रष्टा, पालक, संहर्ता ।
रक्षक संस्कृति संस्कृत के, तुम प्राकृत के स्रष्टा ।।
राजभाषा मैं, मातृभाषा हूँ, भारत के जन-जन की।
हर भाषा का सम्मान है करना, प्रकृति मेरे जीवन की।।
मेरे समृद्धि और विकास में सब सहयोग मिला है।
हृदय कपाट सभी के हित में सब के लिए खुला है।।
सब हैं एक समान हृदय से भारत के या जग के ।
सम्यक् सर्वांगीण विकास हो जग के हर मानव के।।
भारत के जन से स्वेच्छा से जो सम्मान मिला है।
उस राष्ट्रभाषा की प्रतिष्ठा अबतक नहीं मिली है ।।
कम्प्यूटर ,आफिस ,घर में भी अंग्रेजी का पहरा है ।
दस्तावेजों, न्यायालय में ऊर्दू-फारसी का लफरा है ।।
निज अस्तित्व-अस्मिता हेतु मैं संघर्ष नित्य करती हूँ ।।
सत्ता का डर नहीं, साहित्यकारों से केवल डरती हूँ।
राजनीति के दलदल, स्वार्थी चाटुकारों का है डेरा ।।
बसती हूँ जन-मन गण में, लेकिन नारद का है फेरा ।
करती हूँ आतिथ्य सभी का, करती हूँ अभिनन्दन।
लाज आपके हाथों में है, करती हूँ मैं पद वन्दन।।
गिलवा और शिकायत कुछ भी मुझको नहीं किसी से।
फिर भी कथा व्यथा सुनाना पड़ता है मुझको अन्तस् से।।
अभी-अभी आ रही यहाँ थी,आमणत्रंण मुझे मिला था ।।
हिन्दी मैं अपने सम्मान दिवस में मन मेरा उलझा था ।
आमन्त्रित थी सारी भाषाएँ , मैं आतिथ्य में रत थी।
पर कुत्सित भावों से भर कर अंग्रेजी वहाँ खड़ी थी।।
अकस्मात् ही लगी बोलने बहुत क्रोध में भरकर।
पूज रही थी पैर, परन्तु वह कहने लगी अकड़कर।।
निकल ईडियट, कैसे तूने सन्मुख आने की ठानी,
गेट आऊट, कम्बख्त ! मैं हूँ सब भाषा की रानी।।
"हिन्दी-दिवस" तुम नहीं जानती, अंग्रेजी जीवन है ।
चले गये अंग्रेज सभी, परन्तु आत्मा अभी यहीं है ।।
नहीं जानती तुम मेरा वर्चस्व जगत भर में है।
अन्तर्राष्ट्रीय भाषा का भी रूप हमारा ही है।।
प्राकृत सभी भाषा की माता, हिन्दी मूल संस्कृत है।
पर उसकी ममता हिन्दी, तुम पर ही क्यों रहती है ?
अंग्रेजी क्रोध मान्यवर इतना पर भी न घटा है।
सब भाषा से मिलकर उसने नया प्रपंच रचा है।।
हिन्द देश की अखण्डता दीख रही खतरे में।
भाषा संस्कृति एकता अखण्डता यही हिन्द का बल है।
सत्य न्याय शान्ति सद्भावना भावना भारत का सम्बल है।।
पूज्य मान्यवर मेरी इसमें गलती कहीं नहीं है।
सारे जग की भाषा में आत्मा मेरी बसती है।।
अबला की आवाज जनार्दन कबतक आप सुनेंगे ?
अन्तर्यामी चीर-हरण को कबतक आप सहेंगें ?

प्रो० अवधेश कुमार ' शैलज ', (कवि जी),
पचम्बा, बेगूसराय ।
( क्रमशः )