बुधवार, 26 सितंबर 2018

पक्षपात ( Favoritism /Participant ) की परिभाषा

पक्षपात् की परिभाषा:-


 पक्षपात् किसी वस्तु,व्यक्ति,स्थान या घटना के प्रति अपने मनोशारीरिक हितों के दृष्टि कोण से उनके पक्ष या विपक्ष में लिये गये उचित या अनुचित किसी भी निर्णय से प्रभावित सोच, अनुभूति या क्रिया कलाप की अभिव्यक्ति है।
 
 :- प्रो० अवधेश कुमार .
प्राचार्य सह विभागाध्यक्ष मनोविज्ञान,
मधैपुरा जवाहर ज्योति महाविद्यालय,
ममारकपुर / ममारखपुर, बनवारीपुर,बेगूसराय ।
कालेज कोड : 84014.

Definition of favoritism: -

Participant is an expression of thought, cognition or activity influenced by any decision of appropriate or inappropriate decision taken in their favor or opposition from the point of view of their psychic interests towards any object, person, place or event.

: - Prof. Awadhesh Kumar

Principal Head of Department of Psychology,

Madhyapura Jawahar Jyoti College,

Mankarpur / Marmakhpur, Banwaripur, Begusarai

College Code: 84014


राष्ट्र कवि! फिर जागो। (संशोधित संस्करण)

राष्ट्र कवि ! फिर जागो ।
("राष्ट्र कवि ! फिर जागो ।" का संशोधित संस्करण)

राष्ट्र कवि ! फिर जागो ।
जागो, कविवर जागो।
जन-जन में राष्ट्रीय चेतना,
कविवर पुनः जगाओ।।

भारत भारती विकल हो रही,
खुद की रक्षा में विफल हो रही,
कविवर ! बोलो क्यों देर हो रही ?
हिन्दी साहित्य अधीर हो रही,
जागो दिनकर ! जागो कविवर!
राष्ट्रीय चेतना को पुनः जगाओ।
राष्ट्र कवि! फिर जागो।
रूठो मत, कविवर ! आँखें खोलो।

राष्ट्र कवि! फिर जागो।
राष्ट्र कवि! फिर जागो।
जागो, कवि वर जागो।
जागो, कवि वर जागो।

राष्ट्र कवि! दिनकर !
कैसे मैं श्रद्धा सुमन चढ़ाऊँ ?
अश्रुपूरित आँखों से कैसे
आज तुझे हर्षाऊँ ?

भारतेंदु ने सच ही कहा
जो आज समझ में आई ।
भाषा संस्कृति है रुग्ण त्रस्त,
विपदा दुनिया में छाई ।।

भारतेन्दु को जब भारत की
आवाज समझ में आई ।
भारत हित में भारतेन्दु ने,
भारत से गुहार लगाई।।

"आवहुँ सब मिलि रोवहुँ भारत भाई ।
हा ! हा ! भारत दुर्दशा देखि न जाई।। "
"आवहुुँ सब मिलि रोवहुँ भारत भाई ।
हा ! हा ! भारत दुर्दशा देखि न जाई।। "

युग द्रष्टा भारतेंदु नहीं थे
केवल कविता प्रेमी ।
हिन्दी-हिन्दुस्थान भारत के
थे अन्तरतम से सेवी ।।

सत्ता है मदमस्त, स्वार्थ में
लीन विपक्षी गण हैं।
दोषी निर्दोषी दोनों मानो
एक भाव जैसे हैं।

राजनीति व्याध साहित्यिक
छल बल से भरे हुए हैं ।
स्वार्थी,अपराधी, आराजक
तत्वों से हम घिरे हुए हैं ।।

अवसरवादी, शरणागत हो,
माथे पर चढ़े हुए हैं ।
मानवता त्रसित हो रही,
आतंकित सारी धरती है ।।

धर्म-कर्म हो रहे तिरोहित,
दुष्ट भाव फैला है ।
देश द्रोहियों का भारत में
महाजाल फैला है ।।

विश्व गुरु भारत की कुटिया,
लूट रहे जग वाले ।
पोथी-पतरा सभी ले गए,
जो बचा जला वे डाले ।।

तप, कर्म, संकल्प, साधना,
ईश बल बचा हुआ है ।
गीता का उपदेश कृष्ण का,
अब भी गूँज रहा है ।।

अर्धनारीश्वर रुप हमारा,
इसे तोड़ते जो हैं ।
प्रकृति-पुरुष की दिव्य शक्ति
को नहीं जानते वे है ?

एक सनातन धर्म हमारा,
सब जीवों की सेवा है ।
दया धर्म का मूल हमारा,
क्षणभर मेरा तेरा है ।।

हम अगुण सगुण को भजते,
सबको अपना ही समझते हैं ।
वे दया धर्म से पतित हमें,
कायर काफिर तक कहते हैं ।।

हम शान्ति, न्याय, आदर्श, अहिंसा,
सत् पथ पर चलते हैं ।
वे ज्योति बुझा कर हमें कुमार्ग
पथ पर चलने को कहते हैं ।।

तोड़ रहे सांस्कृतिक एकता,
आपस में हमें लड़ाकर ।
पूर्वाग्रह ग्रसित प्रतिशोध की
ज्वाला को भड़का कर ।।

जाति-धर्म की राजनीति
हरदम करते रहते हैं ।
ऊँच-नीच का पाठ पढ़ा कर
ये हमको ठगते हैं ।।

भटक रहे जो खुद भ्रमित हो,
औरों को राह दिखाते हैं ।
नद निर्झर की धारा को वे
शिखरों की ओर बहाते हैं ।।

आर्ष ज्ञान से भटका कर
पाश्चात्य जगत ले जाते हैं ।
आधुनिक विज्ञान ज्ञान से,
वे हमको भरमाते हैं ।।

" सोने की चिड़ियाँ " का
अद्भुत रुप नहीं देखा है ।
वरदा भारत भारती माँ से
वेकार उलझ बैठा है ।।

रण चण्डी को बुला रहा है,
रोज निमन्त्रण देकर ।
भगवा धारी प्रकट हुई हैं,
आज तिरंगा लेकर ।।

राष्ट्रकवि! इनके वन्दन का,
समय पुनः आया है ।
जागें बन मुचुकुन्द कविवर,
राक्षसी प्रवृत्ति छाया हैं ।।

भस्म करें निज ज्ञान नेत्र से,
अन्तर के असुर दलों को ।
अमृत का उपहार सुरों को,
दें फिर मोहिनी बन के ।।

काल कूट तू ही पी सकते,
औरों में शौर्य कहाँ है ?
रहते शांत, असीम धैर्य की
शक्ति यहाँ कहाँ है ?

कविवर ! उठो,जगो हे दिनकर !
तम को दूर भगाओ ।
श्रम जीवी, बुद्धि जीवी को,
सत् पथ राह दिखाओ ।।

बाट जोहती खड़ी भारती
कब से हिन्द जन मन में ।
देर हो रही रणचंडी के,
पावन अभिनन्दन में ।।

" हिन्द उन्नायक " खोज रही हैं,
कब से भारत माता ।
वरण करो रचनात्मकता का,
अवसर न हरदम आता ।।

अपने और पराये अर्जुन,
इन्हें अभी पहचानो ।
अन्तस्थल के विराट को,
दिव्य-दृष्टि से जानो ।।

माता रही पुकार राष्ट्रकवि !
जागो और जगाओ ।
भूषण, गुप्त, सुभद्रा, प्रसाद को
फिर से आज जगाओ ।।

विखरे अपने अंगों को
आज पुनः अपनाओ ।
सत्तर वर्षों की निद्रा से,
वीरों को पुनः जगाओ ।।

भारत की सभ्यता-संस्कृतिक,
संकट में पड़ी हुई है ।
रक्त बीज,जय चन्द, शकुनि से
धरती भरी हुई है ।।

अर्जुन को ही नहीं युधिष्ठिर को
भी रण में लड़ना होगा ।
पाने को अधिकार विवेक से
कर्त्तव्य पूर्ण करना होगा ।।

रण में जो आड़े आयेंगें,
उनको हम सबक सिखायेंगे ।
हम विदुर और चाणक्य सूत्र से
सारे जग को हम जीतेगे ।।

"शैलज" मिथिला की सीमा पर
" दिनकर " की सिमरिया नगरी है ।
हिन्दी साहित्य भाषा शैली की
अवशेष अशेष यह गगरी है ।।

इस पुण्य भूमि को नमस्कार
जिसने तुम-सा सुत जन्म दिया ।
भारत माता की सेवा में निष्ठा से
जीवन भर अपना कर्म किया ।।

देव- दनुज हेतु जहाँ अमृत प्रकटे,
प्राकृत संस्कृत वेद वचन प्रभु से निकले ।
रुप मोहिनी,हरि,राम,विष्णु आये,
सुरसरि हित अवतरित हुए प्रभु रुक पाये ।।

कविवर जागो! हे राष्ट्र कवि !
दिनकर ! तू आँखें खोलो ।
गंगा जल से आँखें धोलो ।
पावन 'रेणु' का 'मैला आँचल' धोलो ।।

प्रगतिशील कहलाने वाले
सोच नहीं कुछ पाते ।
माँ की ममता समझ न पाते,
मुझको ही हैं समझाते।।

हे राष्ट्रकवि! दिनकर ! कवि वर !
जन गण मन बोल रहा है ।
जन्म दिवस पर आज तुम्हें ये
अन्तस् की पीड़ा बता रहे हैं ।।

राष्ट्र कवि! दिनकर !
कैसे मैं श्रद्धा सुमन चढ़ाऊँ ?
अश्रुपूरित नेत्रों से कैसे,
आज तुझे हर्षाऊँ ?

राष्ट्र धर्म हो नहीं कलंकित
ऐसा राष्ट्र बनाऊँ ।
एक राष्ट्र ही नहीं विश्व में
यह परचम लहराऊँ ।।

भारत माता की सेवा में
जीवन शेष बिताऊँ ।
जनता की सच्ची सेवा कर
जन सेवक कहलाऊँ ।।

मांग रहा बलिदान राष्ट्र जब
कभी नहीं घबराऊँ ।
ज्ञान- विज्ञान, कला ,अध्यात्म
का जग को पाठ पढ़ाऊँ ।।

अहंकार में भटके जन को
कैसे राह दिखाऊँ ?
पीड़ित मन से कैसे कविवर,
आज तुझे हर्षाऊँ ?

राष्ट्र कवि हृदय की पीड़ा,
कैसे तुम्हें बताऊँ ?
राष्ट्र कवि ! दिनकर !
कैसे मैं श्रद्धा सुमन चढाऊँ ?

प्रो० अवधेश कुमार " शैलज "‛
पचम्बा, बेगूसराय ।

सोमवार, 24 सितंबर 2018

सुप्रभातम्


श्री गणेशाय नमः।

व्यक्ताव्यक्तं जगदाधारं सृजन मोक्ष प्रदायकम्।
"अम्ब अक्क अल्ला ह्रंरच:" पाणिनि सूत्रानुशासनम्।।
ऊँ गौड (God) नमस्तुभ्यं सर्व कल्याणकारकम्।
समर्थं, सर्वव्यापी, सर्वज्ञं, पूर्णं, सर्वधर्म प्रवर्तकम् ।।

सुप्रभात की सुमंगल वेला में रश्मिरथी भगवान् भास्कर के अभिनन्दन तथा लौकिक-पारलौकिक कार्यक्रम की सिद्धि हेतु सादर आमंत्रण एवं हिन्दी साहित्य के छायावाद के अविस्मरणीय स्तम्भ महाकवि जयशंकर प्रसाद के शब्दों में आप सबों से जागरण समारोह में शामिल होने हेतु इस अकिंचन "शैलज" का विनीत आग्रह :-

"बीती विभावरी जाग री,
अम्बर पनघट में डुबो रही,
ताराघट उषा नागरी,
बीती विभावरी जाग री।

खगकुल कुल कुल सा बोल रहा,
किसलय का अंचल डोल रहा,
लो यह लतिका भी भर लाई,
मधु मुकुल नवल रस गागरी,
बीती विभावरी जाग री।"

हार्दिक शुभकामनाओं के साथ :-

भवदीय:-
अवधेश कुमार "शैलज",पचम्बा, बेगूसराय।

शनिवार, 22 सितंबर 2018

वोट, प्रजातंत्र, नागरिक अधिकार एवं कर्त्तव्य :

Vote ( मत) :-

Vote is an opinion of a person towards given subject / situation / any two or more persons or groups through written,verbal or symbolic process. अर्थात्
मत किसी व्यक्ति / वस्तु / उद्देश्य या परिस्थिति अथवा किन्हीं दो या अधिक व्यक्तियों या समूहों के प्रति लिखित, वाचिक / शाब्दिक या सांकेतिक / प्रतीकात्मक राय / विचार /अभिप्राय है।(६/१/२०१७ को जारी)
Democracy is an ideal social adjustment process & relatively the best administrative approach for multi-dimensional  development of human being. अर्थात्
प्रजातंत्र मानव के बहु-आयामी विकास के निमित्त एक आदर्श सामाजिक समायोजनात्मक प्रक्रिया एवं तुलनात्मक / अपेक्षाकृत सर्वोत्तम प्रशासनिक व्यवस्था है।
(दिनांक 16/05/2014  की रात्रि में सोशल मीडिया पर प्रसारित)
किसी भी प्रजातान्त्रिक देश में वहाँ के नागरिकों का बहुमत प्राप्त व्यक्ति,उनका दल और उनके नेता द्वारा ही देश के जन,धन,ज्ञान-विज्ञान एवं सम्मान की सुरक्षा, विकास तथा प्रशासनिक कार्य होता है,जिसके लिए उसे वोट देने वाली या नहीं देने वाली जनता अपने नेता के रूप में स्वीकार कर चुकी होती है, वैसी सरकार या उसके नेता यदि पक्षपात एवं पूर्वाग्रह से प्रभावित कार्य करते हैं या निर्णय लेते हैं तो जनता द्वारा उनका वहिष्कार अनिवार्य है और इसके लिए प्रबुद्धजनों का नेतृत्व जरूरी है।

प्रो० अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय।

शुक्रवार, 21 सितंबर 2018

Definition of homosexuality :

Homosexuality is sometimes the natural affinity or relationship of two women (lesbian) or any two men (gay) on the voice of the mutual consent or partners, or the voice of the soul to establish sexual relation for a permanent romantic partnership / matrimonial relationship.

समलैंगिकता कभी-कभी या स्थायी रोमांटिक साझेदारी / मेट्रीमोनियल रिश्ते के लिए यौन संबंध स्थापित करने के लिए आपसी सहमति या भागीदारों की आवाज़ या आत्मा की आवाज़ पर दो महिलाओं (लैसिबियन) या किसी भी दो पुरुष (समलैंगिक) का प्राकृतिक आकर्षण या संबंध है।

Homosexuality (समलैंगिकता) की परिभाषा :

समलैंगिकता सामयिक (कभी-कभी) या स्थायी रोमांटिक साझेदारी / वैवाहिक रिश्ते के लिए यौन संबंध स्थापित करने हेतु आपसी सहमति या भागीदारों की आवाज़ या आत्मा की आवाज़ पर दो महिलाओं (लैसिबियन) या किसी भी दो पुरुष (गे) का प्राकृतिक आकर्षण या संबंध है।

अथवा

समलैंगिकता मानव में एक प्राकृतिक संबंध या आकर्षण  किसी भी दो स्त्री (लेस्बियन) या किसी भी दो पुरुष (गे) में आपसी सहमति या सहमति के भागीदारों या आत्मा की आवाज स्थापित करने के लिए, यौन संबंधों के लिए सामयिक या स्थायी साझेदारी या metrimonial रिश्ता है ।

Friday, September 21, 2018

Definition of homosexuality:

Homosexuality is sometimes the natural affinity or relationship of two women (lesbian) or any two men (gay) on the voice of the mutual consent or partners, or the voice of the soul to establish sexual relation for a permanent romantic partnership / matrimonial relationship.

Or

Homosexuality A natural affinity or attraction in humans to establish the voice of partners or spirit of mutual consent or consent in any two female (lesbian) or any two male (gay), for a sexual or sexual relationship, or to a timely partnership or metrimonial relation is .

Definition of homosexuality:

Homosexuality, in human, is a natural attraction or relation of two women (lasbian) or any two male (gay) on the mutual consent or consent of the partners or the voice of the soul, to establish sexual relations for occasional or permanent romantic partnership or metrimonial relationship.

समलैंगिकता मानव में एक प्राकृतिक संबंध या आकर्षण के किसी भी दो स्त्री (लेस्बियन) या किसी भी दो पुरुष (गे) में आपसी सहमति या सहमति के भागीदारों या आत्मा की आवाज स्थापित करने हेतु यौन संबंधों के लिए सामयिक या स्थायी साझेदारी या metrimonial रिश्ता है ।

Causes of Homosexuality :

Homosexuality, which is different from the normal human brain and other biological causes, the specific effects of celestial bodies, the less aggressive of the father than the mother, with the opposite sex or the more in protection from the child, by its opposite sex Holding of reputable garments, female hormones in men and increase in male hormones in women, and two women or any two male on the mutual consent or consent of the people or the voice of the soul, it is a natural situation to establish sexual relations for a permanent or occasional romantic relationship.

समलैंगिकता, जो सामान्य मानव मस्तिष्क और अन्य जैविक कारणों से अलग है, खगोलीय पिंडों के विशिष्ट प्रभाव, मां के मुकाबले पिता के कम आक्रामक, विपरीत सेक्स के साथ या बच्चे से सुरक्षा में अधिक, इसके विपरीत सेक्स होल्डिंग द्वारा सम्मानित वस्त्रों, पुरुषों में मादा हार्मोन और महिलाओं में पुरुष हार्मोन में वृद्धि, और पारस्परिक सहमति या लोगों की सहमति या आत्मा की आवाज़ पर दो महिलाएं या दो पुरुष, यह एक प्राकृतिक स्थिति है जो यौन संबंध स्थापित करने के लिए है स्थायी या कभी-कभी रोमांटिक रिश्ते।

Prof. Awadhesh Kumar " Shailaj" (M.A.Psychology).

Pachamba, Begusarai.




 

शुक्रवार, 7 सितंबर 2018

The historic decision of the Supreme Court of India :-

The historic decision of the Supreme Court of India: -
  Homosexuality, which is different from the normal human brain and other biological causes, the specific effects of celestial bodies, the less aggressive of the father than the mother, with the opposite sex or the more in protection from the child, by its opposite sex Holding of reputable garments, female hormones in men and increase in male hormones in women, and two women or any two male on the mutual consent or consent of the people or the voice of the soul, it is a natural situation to establish sexual relations for a permanent or occasional romantic relationship. In this context, gay couple was given the right to establish gender relations among the gay couples by the Honorable Supreme Court of India, and rejecting the non-partisan part of the old Section 377 of the 158-year-old, arbitrary, arbitrary and out-of-the-box, rejecting homosexuals and LGBT expected A high-level humanitarian, psychological and historical decision was taken by providing rights and freedoms.

भारत के सर्वोच्च न्यायालय का ऐतिहासिक निर्णय:-―

भारत के सर्वोच्च न्यायालय का ऐतिहासिक निर्णय :-

समलैंगिकता (Homosexuality) जो मस्तिष्क की सामान्य मानव से भिन्न बनावट एवं अन्य जैविक कारणों, आकाशीय पिण्डों के विशिष्ट प्रभाव, माता की तुलना में पिता का कम आक्रामक होना, बचपन से ही विपरीत लिंगियों के साथ या संरक्षण में अधिक रहना, अपने विपरीत लिंग द्वारा धारणीय वस्त्रों को धारण करना, पुरुषों में स्त्री हार्मोन एवं स्त्रियों में पुरुष हार्मोन की वृद्धि होना, तथा दो स्त्रियों या किन्हीं दो पुरुषों की आपसी सहमति या रजामंदी या आत्मा की आवाज पर स्थायी या सामयिक प्रेममय सम्बन्ध हेतु लैंगिक सम्बन्धों को स्थापित करने की प्राकृतिक स्थिति है। इस सन्दर्भ में भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा समलैंगिक जोड़ों को आपस में लैंगिक सम्बन्ध स्थापित करने का अधिकार प्रदान किया गया और 158 वर्ष की पुरानी धारा 377 के अमानवतावदी हिस्से को अतार्किक,मनमाना एवं समझ से बाहर बताते हुए निरस्त कर समलैंगिकों तथा LGBT को अपेक्षित अधिकार एवं स्वतंत्रता प्रदान कर एक उच्च स्तरीय, मानवतावादी , मनोवैज्ञानिक एवं ऐतिहासिक निर्णय लिया गया।

बुधवार, 5 सितंबर 2018

Teacher's day :

On the occasion of 'Teacher's Day' on September 5, the birthday of the former President and teacher Dr. Sarvapalli Radha Krishnan, India urged the people of the world to follow their 'creative thinking' and from every person you have asked parents and gurus Expecting the Honor.
भारत के भूत पूर्व राष्ट्रपति एवं शिक्षक डॉ० सर्वे पल्ली राधा कृष्णन् के जन्म दिवस 'शिक्षक दिवस' दिनांक ५ सितम्बर के अवसर पर उनके 'रचनात्मक सोच' के अनुशीलन हेतु विश्व के जन-जन से आग्रह और हर व्यक्ति से आपने माता-पिता एवं गुरु जनों के सम्मान की अपेक्षा।

Teacher's day

Read my thoughts on YourQuote app at https://yq.app.link/sExiaRy5XP

Guru Govind Dao standing, Kako lago Paa. Believer guru, you, Govind Dio, tell me.
Any organism originates from the union of father's seed (Venus) and mother's field (Raj). Therefore, in the children, the qualities of both parents are found in the religion.
At the time of birth, the presence of a father is ever present, there is an absence, but the mother gives birth, so the mother is more with her, consequently the children learn much more from the mother. That is the reason that the mother is the first of her family life. The school has been called. Therefore, mother is called the first guru. After that, father or other family members or other gurus, from childhood to the last moment of life, give the devotee the temporal or transcendent education and called the guru, through which the life of a person is ignorant Darkness ends.
So parents and Guru Brahma, like Vishnu and Shiva, are great.
Shri Ganesh ji orbited the parents and consequently the first revered.

गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काको लागूँ पाय।

बलिहारी गुरु आपनो, गोविन्द दियो बताय।।


किसी भी जीव की उत्पत्ति पिता के बीज (शुक्र) तथा माता के क्षेत्र (रज) के मिलन से होता है। अतः सन्तान में माता-पिता दोनों का गुण धर्म पाया जाता है।
जन्म के समय पिता की उपस्थिति कभी होती है, तो कभी अनुपस्थिति भी रहती है,लेकिन माँ तो जन्म देती है,अतः माँ का साथ अधिक रहता है, फलस्वरूप बच्चे माँ से बहुत अधिक सीखते हैं।यही कारण कि माँ को पारिवारिक जीवन की प्रथम पाठशाला कहा गया है। अतः माँ को ही प्रथम गुरु कहा गया है।उसके बाद पिता या परिवार के अन्य सदस्य या अन्य गुरु जन बचपन से जीवन के अन्तिम क्षण तक में प्राणी को लौकिक या पारलौकिक शिक्षा देते हैं और गुरु कहलाते हैं, जिससे प्राणी के जीवन में अज्ञान का अन्धकार समाप्त हो जाता है।
अतः माता-पिता और गुरु ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव के समान महान हैं।
श्री गणेश जी ने माता-पिता की परिक्रमा किया फलस्वरूप प्रथम पूज्य हुए।