सोमवार, 24 सितंबर 2018

सुप्रभातम्


श्री गणेशाय नमः।

व्यक्ताव्यक्तं जगदाधारं सृजन मोक्ष प्रदायकम्।
"अम्ब अक्क अल्ला ह्रंरच:" पाणिनि सूत्रानुशासनम्।।
ऊँ गौड (God) नमस्तुभ्यं सर्व कल्याणकारकम्।
समर्थं, सर्वव्यापी, सर्वज्ञं, पूर्णं, सर्वधर्म प्रवर्तकम् ।।

सुप्रभात की सुमंगल वेला में रश्मिरथी भगवान् भास्कर के अभिनन्दन तथा लौकिक-पारलौकिक कार्यक्रम की सिद्धि हेतु सादर आमंत्रण एवं हिन्दी साहित्य के छायावाद के अविस्मरणीय स्तम्भ महाकवि जयशंकर प्रसाद के शब्दों में आप सबों से जागरण समारोह में शामिल होने हेतु इस अकिंचन "शैलज" का विनीत आग्रह :-

"बीती विभावरी जाग री,
अम्बर पनघट में डुबो रही,
ताराघट उषा नागरी,
बीती विभावरी जाग री।

खगकुल कुल कुल सा बोल रहा,
किसलय का अंचल डोल रहा,
लो यह लतिका भी भर लाई,
मधु मुकुल नवल रस गागरी,
बीती विभावरी जाग री।"

हार्दिक शुभकामनाओं के साथ :-

भवदीय:-
अवधेश कुमार "शैलज",पचम्बा, बेगूसराय।

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