गुरुवार, 16 दिसंबर 2021

सिर, मष्तिष्क एवं खोपड़ी (Head, Brain & Skull)

कैल्केरिया फास :- सिर में ठंडक की अनुभूति। सिर में दबाव की अनुभूति। सिर दर्द हड्डियों के जोड़ों में। सिर दर्द ठंडक या शीत या टोपी के दबाव या गर्मी से या ऋतु परिवर्त्तन से। सिर दर्द दात निकलते समय या पेट में वायु के साथ। खोपड़ी में फाड़ने जैसा दर्द। 

मंगलवार, 14 दिसंबर 2021

फेरम फॉस :-

फेरम फॉस :-


 मन:- सोने के बाद सुधार।  हर चीज के प्रति उदासीनता।  उन्मादी मनोदशा।  ट्रिफ़ल पहाड़ जैसा लगता है।


 सिर :- सिर में चोट लगने का दर्द।  सुस्त, दाहिनी ओर सिरदर्द।  सिर दर्द, जीभ का फड़कना।  सिरदर्द, लाल आँखें और चेहरा।  सिर दर्द, छूने के लिए सोरेनसेन।  सिर दर्द, उल्टी, अपच भोजन।  सिरदर्द, उल्टी, जम्हाई आना।  सिरदर्द, सिर हिलाने से बढ़ जाना।  सिर दर्द, रुकने से बढ़ जाना।  सिरदर्द, ठंड से कम होना।  सिरदर्द, नाक से खून बहने से ठीक हो जाता है।  आंख के ऊपर कील ठोकने जैसा सिरदर्द।  सिरदर्द, अंधा।  सिर दर्द, सुस्त भारी, ऊपर से।  सिरदर्द, ठंड से।  तेज धूप से सिरदर्द।  अत्यधिक पुरुषों के दौरान सिरदर्द, चालू।  सिर दर्द, हिलने-डुलने और रुकने से बढ़ जाना।  सिर, दर्द, मानो कोई कील ठोक रही हो। दर्द, धड़कन और ब्रश करना।  दर्द की सिलाई।  सिर से खून का रस।  खोपड़ी, फटना।  खोपड़ी, ठंड और स्पर्श के प्रति संवेदनशील।  सनसनी, धड़कन।  छूने के लिए सिर का दर्द।  सूर्य की गर्मी, के दुष्प्रभाव।  सिर का शीर्ष ठंडी हवा के प्रति संवेदनशील।  सिर की ओर खून की भीड़ के साथ चक्कर आना।  उल्टी आना, बिना पचा खाना।


 आँख :- जलन, आँख में सनसनी।  कॉर्निया, पहला चरण।  आंखें, सूजन, तेज दर्द के साथ।  आंखें, सूजन, बिना स्राव के।  आंखें, लाल।  नेत्रगोलक, दर्द, पलकों को हिलाने से बढ़ जाना।  आँख के गोले में दर्द, गति से बढ़ जाना।


 कान:- रक्ताल्पता वाले विषय, कान में परेशानी। छोटी हड्डियों का एनाकिलोसिस।  ओटिटिस का संज्ञानात्मक चरण।  कान में दर्द काटना।  आंतरिक भागों की गहरी लाली।  बहरापन, भड़काऊ क्रिया से।  फैला हुआ सूजन।  कान से निर्वहन, कोई राहत नहीं देना।  कान से स्राव, म्यूकोप्यूरुलेंट।  कान में जलन के साथ दर्द होना।  धड़कन के साथ कान का दर्द।  तेज, सिलाई दर्द के साथ कान का दर्द।  धड़कते दर्द के साथ कान का दर्द।  एनीमिक लोगों में कान, स्नेह।  कान, कान में रक्त का अत्यधिक प्रवाह।  कान, अंदर गर्मी। कान, कान में धड़कन देखी गई।  कान, तनाव और धड़कन।  ठंड से कान का दर्द।  मास्टॉयड, सूजा हुआ, पीड़ादायक।  झिल्ली, टिम्पाना, गहरा, संक्षिप्त-लाल।  झिल्ली, टाइम्पाना गाढ़ा हो गया।  ओटाल्जिया, सूजन।  दर्द, पैरॉक्सिस्मल, विकीर्ण और तेज।  कान में धड़कनों को गिना जा सकता है।  विकिरण दर्द।  रक्तस्राव की प्रवृत्ति।



 नाक :-  जुकाम, चुभन महसूस होना।  एपिस्टेक्सिस, चमकदार लाल रक्त।  एपिस्टेक्सिस, बच्चों में।  सिर में ठंड का पहला चरण।  श्लेष्मा झिल्ली जमी हुई।  सही नासिका मार्ग में चतुराई।


 चेहरा :- गाल, गर्म और पीड़ादायक।  ठंड से राहत मिलती है।  चेहरा तमतमा गया।  चेहरे में दर्द, बढ़ने पर, हिलने-डुलने पर।  चेहरे का दर्द, बदन की ठंडक के साथ।  निस्तब्धता के साथ चेहरा दर्द।  भड़काऊ नसों का दर्द।  दर्द, दबाव।  दर्द, धड़कन।  गालों में दर्द।  टिक डोलौरेक्स।


 मुँह :- मसूड़े, गर्म और सूजे हुए।


 जीभ :- जीभ में गहरे लाल रंग की सूजन।  भुरभुरी जीभ।  ग्लोसिटिस।  जीभ की सूजन।


 दांत और मसूड़े :-  गर्म खाना खाने के बाद दांत दर्द होना।  बुखार के साथ दांत।  दांत, बहुत लंबा।  दांत दर्द, ठंड से ठीक हो जाता है।  गर्म गालों के साथ दांत दर्द।


 गला :- ग्रसनी का फोड़ा।  गले में जकड़न।  डिप्थीरिया, पहला चरण।  फफोले सूज गए।  चेहरा दर्दनाक।  फुंसी लाल।  गले में गर्मी।  टॉन्सिल की सूजन।  दर्दनाक गला।  तालू सूज गया।  ग्रसनी फोड़ा।  गला जल रहा है।  गला लाल।  गला, धड़क रहा है।


 आमाशय के लक्षण :-  अम्ल से घृणा।  विमुखता, दूध।  खट्टा भोजन से परहेज।  पेट की जानलेवा बीमारी।  इच्छा, अली।  इच्छा, शराब।  इच्छा, उत्तेजक।  निस्तब्धता, निस्तब्ध, गर्म चेहरे के साथ।  अधिजठर स्पर्श करने के लिए निविदा।  इरेक्शन चिकना।  पेट फूलना, भोजन का स्वाद वापस लाता है।  गैस्ट्रिक बुखार।  पेट, धड़कन। पेट दर्द।  पेट सूज गया।  पेट निविदा।  ठंड से पेट दर्द।  चमकीले लाल रक्त की उल्टी।


 पेट और मल :- कब्ज, निचली आंत में गर्मी।  दस्त, ठंड के कारण होता है।  बवासीर, सूजन।  हर्निया, कैद और सूजन।  प्रोलैप्सस एनी, स्वभाव।  मल में दर्द होना।


 पेशाब के लक्षण :-  ब्राइट्स डिजीज, ज्वर संबंधी गड़बड़ी।  एन्यूरिसिस, दैनिक।  रक्तमेह।  मूत्राशय की गर्दन में जलन।  इसचुरिया।  गुर्दे, दर्द में। मूत्र का दमन।


 पुरुष यौन अंग :- एपिडीडिमाइटिस।  सूजाक, सूजन चरण।  वैरिकोसेले, अंडकोष में दर्द।


 स्त्री के अंग :-  भीड़भाड़, अत्यधिक, माहवारी के समय।  कष्टार्तव, एक निवारक के रूप में।  अपच भोजन की उल्टी के साथ कष्टार्तव।  बार-बार पेशाब करने की इच्छा के साथ कष्टार्तव।  मासिक धर्म, हर तीन सप्ताह में।  मासिक धर्म, भीड़भाड़ के साथ।  ओवरियन दर्द के साथ मासिक धर्म।  दर्द सुस्त और स्थिर।  योनि सूखी और गर्म।  योनि, की सूजन।


 प्रेग्नेंसी और लेबर :-


 श्वसन अंग :- छाती में जलन।  सांस लेना।  फेफड़ों का जमाव।  खांसी में दर्द।  एक्सपेक्टोरेशन, कम, खून से लथपथ।  सीने में गर्मी।  स्वरयंत्र में दर्द और दर्द होता है।  छाती, फेफड़ों में दर्द।  पक्षों में टांके।


 परिसंचरण अंग:- धमनीशोथ।  कार्डिटिस।  अन्तर्हृद्शोथ।  लिम्फैंगाइटिस।  फ्लेबिटिस।  तेलंगियाक्टेसिस।


 पीठ और हाथ-पैर :-  हाथ, हथेलियां, गर्म।  हाथ, सूजे हुए और दर्दनाक।  लंगड़ापन, ठंड से।  गठिया, गति।  गठिया, गर्मी से ठीक हो जाता है।  गठिया पेशी।  गठिया सबस्यूट।  ठंड के बाद शरीर में अकड़न।  स्नायुबंधन या tendons के तनाव।


 तंत्रिका संबंधी लक्षण:- कंजेस्टिव न्यूराल्जिया।  मिरगी, सिर पर खून की भीड़ के साथ।  भड़काऊ नसों का दर्द।  रात में घबराहट।


 नींद और सपने :-  तंद्रा, दोपहर में।  हाइपरमिया के बाद नींद न आना।


 ज्वर के लक्षण :- प्रतिदिन दोपहर 1 बजे ठंड लगना।  ज्वर ज्वर।  भोजन की उल्टी के साथ आंतरायिक बुखार।  कठोरता।


 त्वचा :- त्वचा की सूजन।  अल्सर, सूजन।


 ऊतक :- फोड़ा, सूजन।  हड्डी, कोमल भागों की सूजन के बारे में।  हड्डी, ऑस्टियोफाइट्स।  बच्चों में एपिस्टेक्सिस।  ग्रंथियां सूज गई हैं।  रक्तस्राव चमकदार-लाल।  चोट, यांत्रिक।  ओस्टिटिस।  मोच।


 तौर-तरीके:-

 वृद्धि :-

 सुधार :-

शनिवार, 4 दिसंबर 2021

घोड़ा-गाड़ी

Awadhesh kumar 'Shailaj' , Pachamba, Begusarai.

शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2017
'घोड़ा-गाड़ी' :-
घोड़ा-गाड़ी एक सवारी,
घोड़ा-गाड़ी एक सवारी।
सोचो मत, आई रथ की बारी
घोड़ा-गाड़ी एक सवारी।
टक-टक, टिक-टिक,
टक-टक,टिक-टिक,
चली जा रही घोड़ा गाड़ी,
घोड़ा-गाड़ी एक सवारी।
कच्ची-पक्की ऊवड़-खावड़
गली-कूँची, मैदान-सड़क पर
डग-मग, डग-मग हिंडोले-से ,
पैसेन्जर को झुमा-झुमा कर,
चली जा रही घोड़ा-गाड़ी,
घोड़ा-गाड़ी एक सवारी।
टक-टक, टिक-टिक,
टक-टक, टिक-टिक,
चली आ रही घोड़ा-गाड़ी
घोड़ा-गाड़ी एक सवारी।
आ जा भैया, बाबा आ जा,
मैया और बहिनियाँ आ जा,
नानी,दादी,वीवी आ जा,
एक सवारी खाली आ जा,
चाचा और भतीजा आ जा,
बकरी वाली दीदी आ जा,
टोकरी वाली चाची हट जा,
मामू आगे में तू डट जा,
बौआ थोड़ा और ठहर जा,
दादा साहेब को जाने दें,
नेता जी को भी आने दे,
एक पसिंजर और है खाली
साले कर पीछे रखवाली
घोड़ा-गाड़ी चल मतवाली,
एक्सप्रेस की मोशन वाली
घोड़ा-गाड़ी चल मतवाली
घोड़ा-गाड़ी एक सवारी।
चना चबाते सईस जा रहा,
चाबुक खा-खा घोड़ा,
यहाँ ठहर , बहाँँ चल बाबू,
चलना है बस थोड़ा।
घोड़ा गाड़ी खींच रहा है,
आगे जो कुछ दीख रहा है।
घोड़ा गाड़ी खींच रहा है।
जनता पिसा रही वेचारी,
इसकी भी है हद लाचारी,
एक-दूसरे के कंधे पर -
लदी हुई है जनता सारी।
घोड़ा-गाड़ी एक सवारी।
यहीं दीखती दुनियाँ दारी,
ढींग मारते गप्पी भैया,
बहस कर रही चाची,
रजनीति करते नेताजी,
दादा करते -रंगदारी।
इसी बीच में अटका घोड़ा,
लगा सभी को झटका,
कोई गिरा, खड़ा हो भागा,
कोई तांगे से लटका।
भूखा-प्यासा, जर्जर घोड़ा,
थककर रूका वेचारा,
किन्तु, वेरहम ने उसका खाल उघाड़ा।
लोगों ने कितना समझाया,
सईस कहाँ से माने ?
मेरा घोड़ा, मर्जी मेरी,
चले मुझे- समझाने।
फेरा हाथ पीठ पर उसके,
बाबू मेरे प्यारे-भैया,
मेरे राज दुलारे,
चलो-चलो शाबास बहादुर,
मोटर को आज पछाड़ें।
सुनकर बोली चिकनी-चुपड़ी,
घोड़ा सरपट दौड़ा।
रूका नहीं वह कहीं मार्ग में,
लेकर गाड़ी घोड़ा।
चना चबाते सईस जा रहा,
चाबुक खा-खा घोड़ा।
घोर कष्ट में भी घोड़े ने,
कभी नहीं मुँह मोड़ा।
तांगेवाला दिया ईशारा,
रोका औ पुचकारा,
कर वसूलने लगा सईस,
सुविधा को किया किनारा।
जैसे-तैसे लादा सबको,
जन-जन को समझाया,
जिसने कष्ट किया जीवन में,
वही लक्ष्य को पाया।
देखो, घोड़ा खींच रहा है,
घोड़ा गाड़ी खींच रहा है,
आगे जो कुछ दीख रहा है,
घोड़ा गाड़ी खींच रहा है।
:- प्रो० अवधेश कुमार'शैलज',पचम्बा,बेगूसराय।
Awadhesh Kumar पर 9:03 am


बुधवार, 20 अक्तूबर 2021

Democracy, Citizens and Voting

In a democracy, the citizens of a particular place (common people) form the government, in which the people's representatives who get 51 votes out of 100 votes are declared the winners and the people's representatives who are defeated in that election after getting 49 votes, in the light of the constitution of that country, in their victory.  They often congratulate and accept the authority of the government formed by them in the public interest and present themselves as opposition and in the light of the constitution of the country as a right opposition.  They work in the interest of the citizens and make every effort to save their country, their citizens and themselves from the chaotic elements.

लोकतंत्र में किसी स्थान विशेष के नागरिक (आम लोग) सरकार बनाते हैं, जिसमें 100 मतों में से 51 मत प्राप्त करने वाले जन प्रतिनिधियों को विजेता घोषित किया जाता है तथा जो जन प्रतिनिधि उस चुनाव में 49 मत पाकर हार जाते हैं, उन्हें विजेता घोषित किया जाता है।  उस देश के संविधान की रोशनी में, उनकी जीत में.  वे अक्सर जनहित में अपने द्वारा बनाई गई सरकार को बधाई देते हैं और उसके अधिकार को स्वीकार करते हैं और खुद को विपक्ष के रूप में और देश के संविधान के आलोक में एक सही विपक्ष के रूप में प्रस्तुत करते हैं।  वे नागरिकों के हित में कार्य करते हैं और अपने देश, अपने नागरिकों और खुद को अराजक तत्वों से बचाने के लिए हर संभव प्रयास करते हैं।

पक्ष-विपक्ष, सरकार, प्रजातंत्र, नागरिक और मतदान

प्रजातंत्र में किसी स्थान विशेष के नागरिक (आमलोग)  सरकार बनाते हैं, जिसमें 100 वोटों में 51 वोट पाने वाले जन प्रतिनिधि विजेता घोषित होते हैं और 49 वोट पाकर उस चुनाव में हारे हुए जन प्रतिनिधि उस देश के संविधान के आलोक में उनके जीत में जनमत का सम्मान करते हुए प्रायः बधाई भी देते हैं तथा उनके द्वारा बनाये गए सरकार की सत्ता को लोकहित में स्वीकार करते हैं एवं अपने आप को विपक्ष के रूप में प्रस्तुत करते हैं और एक सही विपक्ष के रूप में देश के संविधान के आलोक में देश और उसके नागरिकों के हित में कार्य करते हैं और अराजक तत्वों से अपने देश, वहाँ के नागरिकों और खुद को बचाने का हर संभव प्रयास करते हैं।
 
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शनिवार, 9 अक्तूबर 2021

अप्पन दही सबके मीठे लगै छै

लोक प्रचलित कहावत है "अप्पन दही सबके मीठे लगै छै " लेकिन वास्तव में हिन्दी मेरे समझ से संसार में बोली जाने वाली और/या उपयोग / प्रयोग में लायी जाने वाली संभवतः प्रथम भाषा और /या बोली है, जिसका मूल रूप "खड़ी बोली" है, जिसका प्रकृतिक स्वरूप प्राकृत भाषा और/या बोली है एवं जिसका संस्कारयुत मूल रूप "देव भाषा" "संस्कृत" है। बच्चा जन्म के समय "ऐं" उच्चारण करते  हुए इस धरा पर अवतरित होता है, जिसे संस्कृत में "सरस्वती बीज" कहा जाता है।
"दुर्गा सप्तशती" में "सिद्ध कुञ्जिका स्तोत्र" में भगवान् शिव कहते हैं " ऐंकारी सृष्टि रूपायै..." अर्थात् माँ दुर्गा ऐंकारी हैं /माँ दुर्गा सृष्टि करनेवाली हैं।" अतः वे सभी लोग जो इस संसार में जन्म लेने के समय बोलते हैं या रोते हैं या दु:ख में रोते हैं या दु:ख का अभिनय करते हैं, उन समस्त स्थितियों में रोने की उनकी भाषा "ऐं" ही होती है, जो हिन्दी भाषा परिवार से सम्बन्धित संस्कारयुत देव भाषा संस्कृत भाषा की बोली होती है। वास्तव में हिन्दी भाषा परिवार की सभी बोलियाँ, खड़ी बोली, प्राकृत एवं संस्कृत में परस्पर अभिन्न सम्बन्ध है।
अतः हमें अपनी सनातन संस्कृति, बोली एवं भाषा पर गर्व करना चाहिए और विश्व के सभी भाषा एवं संस्कृति का आदर करना चाहिए, क्योंकि हम सभी एक ही परमात्मा की संतान हैं, भले ही हमारा रहन-सहन, मनोशारीरिक स्थिति, भाषा-लिपि एवं रीति-रिवाज अलग-अलग रहा हो।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय।
 
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शुक्रवार, 17 सितंबर 2021

ऊँ विश्वकर्मणे नमः।।

ऊँ विश्वकर्मणे नमः।।

आदि अभियंता विश्वकर्मा नमस्तुभ्यं अंगिरसी-वास्तुदेव सुतं ब्रह्मा पौत्रं वास्तु शिल्प विशारदम्। 
भानु कन्या संक्रमण गोचर विश्वकर्मा जातं सुरासुर जड़ जीव पूज्यं जगत कल्याण सृष्टि कारकं।।५३।।

ऊँ विश्वकर्मणे नमः।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय।

शुक्रवार, 3 सितंबर 2021

प्रार्थना

श्री गणेशाय नमः।

सर्व धर्म प्रार्थना

ऊँ कारेश्वरं नमस्तुभ्यं सर्व कल्याणकारकम्।
"अम्ब अक्क अल्ला ह्रंरच:" पाणिनि सुदर्शितम्।।
निर्गुणंं सगुणं सनातनस्य, अवतरणं धर्म दर्शनं।
पश्चिमाभिमुख संस्थिते रहमान अव्यक्त रुपिणं।।
क्रिश्चनस्य गॉड ईसा बाईबिल सुवर्णितम्।
वेद पुराण सुग्रंथ कथितं दयालु समदर्शिनः।।
पूर्णं, सर्वज्ञं, सर्वव्यापी, समर्थं, सर्वधर्म प्रवर्तकम् ।
व्यक्ताव्यक्तं जगदाधारं सृजन मोक्ष प्रदायकम्।।
सच्चिदानन्दं त्रिकालज्ञं त्रिविध ताप विमोचनं।
प्रकृति पुरूषात्मकं स्वयंभू प्रभु भक्त वत्सलं।।
अर्द्ध नारीश्वरं शक्ति, विधि, हरि, हर सुपूजितं।
आयुर्विद्यायशबल नियन्ता, भोग योग वर प्रदायकं।
अन्तर्यामी शैलज स्वामी, कीर्त्ति आरोग्य सुखदायकं।।

गुरुवार, 2 सितंबर 2021

सर्व धर्म प्रार्थना

श्री गणेशाय नमः।

सर्व धर्म प्रार्थना

ऊँकारेश्वरं नमस्तुभ्यं सर्व कल्याणकारकम्।
"अम्ब अक्क अल्ला ह्रंरच:" पाणिनि सुदर्शितम्।।
निर्गुणंं सगुणं सनातनस्य, अवतरणं धर्म दर्शनं।
पश्चिमाभिमुख संस्थिते रहमान अव्यक्त रुपिणं।।
क्रिश्चनस्य गॉड ईसा बाईबिल सुवर्णितम्।
वेद पुराण सुग्रंथ कथितं दयालु समदर्शिनः।।
पूर्णं, सर्वज्ञं, सर्वव्यापी, समर्थं, सर्वधर्म प्रवर्तकम् ।
व्यक्ताव्यक्तं जगदाधारं सृजन मोक्ष प्रदायकम्।।
सच्चिदानन्दं त्रिकालज्ञं त्रिविध ताप विमोचनं।
प्रकृति पुरूषात्मकं स्वयंभू प्रभु भक्त वत्सलं।।
अर्द्ध नारीश्वरं शक्ति, विधि, हरि, हर सुपूजितं।

आयुर्विद्यायशबल नियन्ता, भोग योग वर प्रदायकं।

अन्तर्यामी शैलज स्वामी, कीर्त्ति आरोग्य सुखदायकं।।


गुरुवार, 26 अगस्त 2021

समलैंगिकता के ज्योतिषीय आधार (Astrological base of Homosexuality)

संसार के प्राणियों में से मुख्य रूप से मानव प्रजाति के पूर्व परिचित या अपरिचित नर-नारी के पारस्परिक दैहिक सम्बन्ध से अथवा कृत्रिम संसाधनों से उन दोनों के रज-वीर्य से उनका आपस में बनाया गया रक्त सम्बन्ध उन्हें पुत्र या पुत्री सन्तान के रूप में प्राप्त होता है और परिवार नामक संस्था का जन्म स्वत: हो जाता है तथा यह रिश्ता वास्तव में किसी भी परिस्थिति में समाप्त नहीं होता है साथ ही प्रकृति स्त्री के उस सन्तान को गर्भ रखने एवं प्रसवोपरांत उसके पालन पोषण हेतु उसके स्तनों में सर्वोत्तम आहार दुग्ध प्रदान करती है, परन्तु यदि वही माता अपने दिल से लगाकर उसे अपना दूध नहीं पिलाती है तो सन्तान को प्रताड़ित करने के दण्ड स्वरूप प्रायः स्तन कैंसर (जिसकी उत्पत्ति कफ/काम,पित्त/क्रोध तथा वात/लोभ की विकृति या अशुभ विचारों के कारण होती है) का कष्ट भोगने हेतु बाध्य भी करती है।

इस प्रकार संसार में मानव और/या मानवेतर प्राणियों का पारस्परिक प्रेम सम्बन्ध ही मूल सम्बन्ध है, जिसकी रक्षा हमारा मूल धर्म है। (डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज के निबन्ध "सम्बन्धों की पारस्परिक समझ....." से सभार ।)

किसी भी बाल, वृद्ध, युवा नर और/या नारी के बीच उनकी अपनी-अपनी मनोशारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति की सम्भावनाओं के आलोक में उनके द्वारा अपने-अपने उद्देश्य की पूर्ति हेतु किसी देश काल परिस्थिति में उनके मध्य दैहिक, दैविक, आध्यात्मिक, मानसिक या भौतिक स्तर पर उत्पन्न आकर्षण प्रायः पारस्परिक प्रेम के रूप में पारिभाषित होता है और यही प्रेम जब मानसिक और/या शारीरिक स्तर पर वासनात्मक स्वरूप धारण करता है तो किन्हीं दो पुरुषों या दो स्त्रियों के ऐसे आपसी या अन्योन्याश्रय सम्बन्ध को समलैंगिक (Homosexual) सम्बन्ध कहा जाता है। स्त्रियों के मामले में समलैंगिक संबंधों को लैस्बियन सम्बन्ध कहा जाता है और पुरुषों को गे नाम से भी पुकारा जाता है।

वास्तव में किसी भी प्राणी में दैहिक, दैविक और/या मानसिक तथा भौतिक स्तर पर आवश्यकतानुसार पारस्परिक आकर्षण, विकर्षण या तटस्थता की स्थिति पायी जाती है, जिसका मूल कारण प्राकृतिक प्रेम या आकर्षण है, जो वैयक्तिक भिन्नताओं के कारण एक जैसा दिखायी देता है।

वैयक्तिक भिन्नता (Individual Differences) के सम्बन्ध में उल्लेखनीय है कि "अपने वातावरण में समायोजनात्मक व्यवहार के क्रम में किसी प्राणी या प्राणी समूह द्वारा अपने और अपने वातावरण से सम्बन्धित व्यक्ति, प्राणी, वस्तु या परिस्थिति के सन्दर्भ में विकसित लिखित या अलिखित आचार संहिता के निर्धारण और / या अनुशीलन से सामाजिक-सांस्कृतिक परम्परा और / या पूर्व मान्यता आधारित धर्म; आनुवंशिक गुणों के कारण लिंग, वर्ण / रंग एवं अन्य जन्म-जात मनोशारीरिक गुणों तथा जन्म के पश्चात् प्राणी की अनुभूति, व्यवहार और समायोजन प्रक्रिया के क्रम में वर्ग, क्षेत्र एवं भाषा सम्बन्धी भेद उत्पन्न होता है, जो वैयक्तिक भिन्नता का कारक और अपेक्षाकृत स्थायी प्रकृति का होता है।"

यही कारण है कि मानवों में पशुओं की तरह न केवल "आहार, निद्रा, भय मैथुनश्च" आधारित ही सम्बन्ध ही नहीं रहे, बल्कि उनके वैयक्तिक भिन्नता से उत्पन्न विभिन्न सोच और आवश्यकता के आलोक में अनेक सम्बन्धों की अवधारणा बनी और उन्हें एक दूसरे के द्वारा या सामाजिक सांस्कृतिक स्तर पर स्वीकृति या अस्वीकृति के योग्य समझा गया और/या उनमें परिवर्तन की सम्भावनाओं की गुंजाइश रखी गई।

यही कारण है कि मानव में नर-नारियों के बीच पारिस्परिक गुणवत्ता की ग्रहणशीलता को ध्यान में रखते हुए उनमें परस्पर रक्त सम्बन्ध स्थापित करने की स्थिति पैदा हुई और/या उन्हें उनके परिवार, समाज या नियन्ता द्वारा ऐसा करने हेतु बाध्य किया गया और /या उन्हें ऐसा करने या ऐसे सन्दर्भों में निर्णय लेने की छूट दी गई फलस्वरूप नर के बीज अर्थात् वीर्य (Seman) एवं नारी के क्षेत्र अर्थात् अण्ड (Ovum) से सन्तानोत्पत्ति (नर और/या नारी) का जन्म संभव हुआ।

सन्तानोत्पत्ति हेतु नर-नारी के पारस्परिक मनोशारीरिक सम्बन्ध की अनिवार्यता टेस्ट ट्यूब बेबी के जन्म की अवधारणा एवं स्थिति के पूर्व के समय में तथा आज के समय में भी माना जाता है और यह स्थिति आवश्यकता, प्रयोग, आकर्षण, प्रेम और/या विवाह किसी भी स्थिति में संभव हो पाता है, परन्तु इन सम्बन्धों का स्थायीकरण हेतु विवाह की संकल्पना की गई है। अतः विवाह को एक संस्था के रूप में स्वीकार किया गया है जिससे परिवार एवं समाज के प्रादुर्भाव और/या विकास की सम्भावना को बल मिलता है या बढ़ती है।

 The Psychology of sex (यौन मनोविज्ञान) मूल लेखक :- हैवलॉक एलिस (1938), अनुवादक :- मन्मथ नाथ गुप्त (2008), राजपाल एण्ड सन्स (प्रकाशन) ने कहा कि " विवाह को कानून अथवा धर्म की स्वीकृति मिली हो या न मिली हो,फिर भी विवाह जीववैज्ञानिक अर्थ में कुछ हद तक सामाजिक अर्थ में एक स्थायी यौन संबंध है । " :-  

"समलैंगिकता के ज्योतिषीय आधार" की व्याख्या के सन्दर्भ में "समलैंगिकता और ज्योतिष" दोनों की सम्यक् परिभाषा की ओर हमारा ध्यान स्वाभाविक रूप से चला जाता है, क्योंकि यदि हमें किसी पद (Term) अर्थात् शब्द या शब्द-समूह की सम्यक् परिभाषा का बोध नहीं है तो हम उस पद अर्थात् शब्द या शब्द समूह के साथ न्याय नहीं कर पाते हैं, फलस्वरूप हमारा बोध अवास्तविक, अतार्किक, अवैज्ञानिक, पक्षपात और/या पूर्वाग्रह से किसी न किसी रूप से प्रभावित हो सकता है। अतः इस सन्दर्भ में पद (Term) की सम्यक् एवं सारगर्भित परिभाषा मेरी दृष्टि में अधोलिखित है:-

"The reprsentation of proper, enough & equal denotation and connotation of any term is the perfect marrow definition of that term."

अर्थात्

"किसी पद के उचित (सम्यक्), पर्याप्त तथा समतुल्य वस्तुवाचकता एवं गुणवाचकता का प्रस्तुतिकरण उस पद की सम्यक् ( वास्तविक और पूर्ण ) सारगर्भित परिभाषा है।"

इसी तरह ज्योतिष (Astrology) , समलैंगिकता (Homosexuality) तथा मनोविज्ञान (Psychology) एवं अन्य विषयों से सम्बंधित पदों (Terms) को परिभाषित करने का प्रयास किया है

मेरी दृष्टि में "Astrology is an ideal positive science of experience, behavior & adjustment process of an organism in their own environment in relation with various visible or non-visible stars, planets, elements & para-psychological effects or their inter-actions or power of the universe."
अर्थात्

"ज्योतिष विभिन्न दृश्यमान या गैर-दृश्यमान सितारों, ग्रहों, तत्वों और पैरा-मनोवैज्ञानिक प्रभावों या उनके अंतर-क्रियाओं या ब्रह्मांड की शक्ति के संबंध में अपने पर्यावरण में एक जीव की अनुभव, व्यवहार और समायोजन प्रक्रिया का एक आदर्श सकारात्मक विज्ञान है।"

इसी तरह समलैंगिकता के सम्बन्ध  दृष्टि में

समलैंगिकता किन्हीं दो पुरुषों ( गे ) या दो स्त्रियों ( लेसबियन ) के मध्य मनो-शारीरिक यौन सन्तुष्टि दायक सामयिक या स्थायी स्तर पर रोमांटिक या वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करने हेतु अपेक्षाकृत प्राकृतिक आकर्षण या सम्बन्ध है।

Homosexuality is a relatively natural affinity or relationship to a romantic or marital relationship at the occasional or permanent level of psychic sexual satisfaction between any two men (gay) or two women (Lesbian).

Or

समलैंगिकता किन्हीं दो पुरुषों ( गे ) या दो स्त्रियों ( लेसबियन ) के मध्य मनो-शारीरिक यौन सन्तुष्टि दायक सामयिक (कभी-कभी / कुछ समय के लिए) या स्थायी स्तर पर रोमांटिक या वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करने हेतु अपेक्षाकृत प्राकृतिक आकर्षण या सम्बन्ध है।

Homosexuality is a relatively natural affinity or relationship to occasional (sometimes / for some time) or romantic or marital relationship at a permanent level between psychological or sexual intercourse between two men (gay) or two women (Lesbian).


आचार्य कमल नन्दलाल के अनुसार " नेचर ने औरत-आदमी को एक-दूसरे का पूरक बनाया है। सनातन धर्म में इसे प्रकृति-पौरुष का मेल कहा गया है। इसी तरह दूसरे धर्मो में इन्हे आदम-हव्वा या एडम-ईव के नाम से संबोधित किया जाता है। दोनों स्वतंत्र पहचान के मालिक तो हैं ही लेकिन ये दोनों कुछ इस तरह से साथ जुड़े हुए हैं कि इन्हें संपूर्णता एक-दूसरे के साथ ही मिलती है। औरत आदमी का संबंध सामाजिक व पारिवारिक पहलू से भी बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि ये परिवार को आगे बढ़ाने के लिए जरूरी है। किसी भी व्यक्ति की यौन पसंद अर्थात एक दूसरे के प्रति काम इच्छा स्वाभाविक है परंतु जब कभी औरत की काम इच्छा दूसरी औरत के प्रति हो और आदमी की काम इच्छा दूसरे आदमी के प्रति हो तो यह स्थिति असमंजसकारी हो जाती है। ऐसे में अगर रिश्ते बन जाएं तो इसे समलैंगिकता कहा जाता है। पुरुष समलिंगी को "गे" व महिला समलिंगी को "लैस्बियन" कहते हैं। इस लेख के माध्यम से हम अपने पाठकों को ज्योतिष के माध्यम से बताते हैंं होमो सेक्सुअलिटी का एस्ट्रो कनैक्शन।

होमो सेक्सुअलिटी अर्थात समलैंगिकता एक मनोविकार है। वैज्ञानिक दृष्टि से समलैंगिकता के कारण आनुवंशिकी व जन्म से पूर्व गर्भ में हार्मोन की गड़बड़ी माने जाते हैं। समलैंगिकता केवल मनुष्यों में ही नहीं बल्कि कई जानवरों में भी पाई जाती है। साइकोलॉजीकली अगर स्त्री या पुरुषों को सही दिशा में प्रेम नहीं मिलता है तो वे प्रेम के गलत रास्ते खोज लेते हैं। एक मनोवैज्ञानिक सत्य यह है कि पुरुष या स्त्रियों को एक-दूसरे से प्रेम नहीं मिलता है तो वे संभोग को ही प्रेम समझ लेते हैं। 
 
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार होमो सेक्सुअलिटी प्रारब्ध व संचित कर्मो का फल ही है अर्थात समलैंगिकता पूर्व जन्म में किए गए कर्मों का फल हैं। जिनके पूर्वज या वे खुद पूर्व जन्म में यौन मतवालेपन में लिप्त रहे या ताकत का लाभ लेते हुए दास-दासियों से अप्राकृतिक यौनाचार करते रहे या कई पार्टनर रखने वाले हुए तो अगली पीढि़यों में ऐसे रुझान दिखते हैं। इस तरह इन लोगों के रिश्तेदार भावनात्मक, मानसिक और शारीरिक रूप से पीड़ित होते हुए यह कर्ज उतारते हैं।
 
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार होमो सेक्सुअलिटी का कारण कुंडली में शुक्र का नकारात्मक प्रभाव, सप्तम, अष्टम, द्वादश और पंचम भाव के स्वामी तथा सूर्य के अलावा बुध, शनि और केतु की स्थिति भी है। कुंडली का पंचवा भाव आदत, प्रकृति व रिश्तों का प्रतीक है अतः समलैंगिकता की शुरुआत इसी भाव से होती है। अष्टम और द्वादश भाव यह बताता है कि जातक की यौन आदतें कैसी होंगी। वैदिक ज्योतिष में सभी नौ ग्रहों को प्रवृति के हिसाब से तीन लिंगों में बांटकर देखा जाता है। इनमें सूर्य, बृहस्पति व मंगल को पुरुष माना जाता है। चंद्र, शुक्र व राहू को स्त्री ग्रह माना जाता है और बुध, शनि और केतु को तीसरा लिंग यानी नपुंसक माना जाता है। इसके पीछे तर्क यह है कि बुध को बाल गृह कहा जाता है और बच्चे संभोग के योग्य नहीं होते, इस तरह शनि प्रौड़ होने के नाते उन्हें संभोग व प्रजनन के विपरीत माना जाता है। केतु को संन्यासी ग्रह का दर्जा दिया जाता है अतः वह भोग से दूर मोक्ष प्रदान करते हैं। इन ग्रहों के बलवान और विपरीत प्रभाव कुंडली में इस तरह देखे गए हैं।
 
वैदिक ज्योतिष अनुसार समलैंगिक लोगों की कुंडली में बुध ग्रह की बड़ी भूमिका देखी जाती है। साथ ही उन पर शनि और केतु का भी प्रभाव होता है इसलिए यह देखा जाता है कि जो लोग विभिन्न कलाओं और विज्ञान में निपुण होते हैं और अपने क्षेत्र में अच्छी पकड़ रखते हैं, उनमें ऐसी प्रवृति पाई जाती है, इसके अलावा अकेले शनि से प्रभावित लोग दरिद्र अवस्था में रहते हैं और उनकी नपुंसकता के चलते समाज में दुत्कारे जाते हैं। अगर केतु अधिक प्रभावशाली होता है तो जातक को मानसिक रूप से सामान्य यौन जीवन से अलग कर देता है। अत्याधिक बुरे प्रभाव में जातक को पागल माना जाता है नहीं तो वह साधु या साध्वी बनकर जीवन गुजारता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार जब व्यक्ति की कुंडली में शुक्र ग्रह कन्या राशि का हो तथा शनि और मंगल सातवें घर में हों तो जातक में समलैंगिकता का रुझान देखने को मिल जाता है। इसके अलवा 27 नक्षत्रों में मृगशिरा, मूल व शतभिषा को समलैंगिकता से जोड़ कर देखा जाता है।
 
जैमिनी ज्योतिष सिद्धांतानुसार इन सभी ग्रहों की अवस्था में व्यक्ति समलैंगिक संबंधों में पड़ता है। कुंडली में शनि-शुक्र एक दूसरे से 2-12 हों। षष्ठेश बुध राहू संग युत होकर लग्न से संबंध बनाए या चंद्र सम राशि में व बुध विषम राशि में हो व दोनों पर मंगल की दृष्टि पड़े। लग्न सम राशि का हो व चंद्र विषम राशि के नवांश में हो व उस पर मंगल की दृष्टि पड़े। अगर लग्न व चंद्र दोनों विषम राशि में हो व सूर्य से दृष्ट हो। शुक्र व शनि दसवें या आठवें भाव में हों, एक साथ युत हों या नीच राशि में हों, या नीच राशि शनि छठे भाव में स्थित हो। कुंडली में शुक्र वक्री ग्रह की राशि में हो व लग्नेश स्वराशि में हो व सप्तम भाव में शुक्र होने पर। या चंद्र शनि की युति हो व मंगल चौथे या दसवें भाव में होने पर ऐसे योग बनते हैं। ज्योतिष की दृष्टि से समलैंगिकता का निवारण लग्नेश, पंचमेश सप्तमेश, अष्टमेश, द्वादशेश को ठीक करके या उपाय करके किया जा सकता है। इसमें लाल किताब के उपाय, रुद्राक्ष व जेमस्टोन व मंत्र अनुष्ठान की साहयता ली जाती है।
 
नोट: यह लेख परिकल्पित स्थिति को देखकर लिखा गया है। होमो सेक्सुअलिटी एक मनोविकार तथा साइकिक रोग है तथा इसका उपचार साइकेट्री, मानसशास्र व ज्योतिषशास्त्र के माध्यम से संभव है।  
 
आचार्य कमल नंदलाल
ईमेल: kamal.nandlal@gmail.com"

इस प्रकार आचार्य कमल नन्द लाल जी ने समलैंगिकता को यद्यपि प्राकृतिक बताया लेकिन उन्होंने पारिवारिक एवं सामाजिक-सांस्कृतिक तथा ऐसे ही अन्य क्षेत्रों में मानव के सम्यक् एवं सर्वांगीण विकास के दृष्टिकोण से नर-नारी के पारस्परिक रक्त सम्बन्ध या वैवाहिक सम्बन्ध को ही विशेष महत्वपूर्ण माना।

मैंने विगत ४० वर्षों में पाया कि संसार की समस्त घटनाओं के मूल में ज्योतिषीय प्रभाव का योगदान रहता ही है, चाहें वे प्राकृतिक हों, बनस्पति से सम्बंधित हों या किसी जीव विशेष से सम्बन्धित हों।

समलैंगिकता से सम्बंधित ज्योतिषीय योगो की प्रबलता अधिक रहने पर तथा वैसे सामाजिक-सांस्कृतिक आदर्श या परिस्थितियाँ जो उन समलैंगिक जोड़ों या भावी समलैंगिकता से प्रभावित जोड़ों हेतु आपसी सम्बन्ध बनाने के दृष्टिकोण से बाधक नहीं हों ऐसी परिस्थिति में समलैंगिक सम्बन्ध आपस में सामाजिक-सांस्कृतिक मान्यता भी प्राप्त कर लेती है और उन समलैंगिक नरों या नारियों को विवाहित जोड़ों के रूप में रहने या विवाह कर लेने की वैधानिक सामाजिक-सांस्कृतिक स्वीकृति भी प्राप्त हो जाती है।
समलैंगिक योग कारक स्थिति में पुरुष ग्रह सूर्य, मंगल और गुरु यदि सप्तमेश होकर

समलैंगिकता के सन्दर्भ में एक अन्य लेख में कहा गया है कि

"" क्या वाकई भारतीय संस्कृति में समलैंगिकता की जगह रही है. ये एक बड़ा सवाल है. वैसे ये बात सच है कि दुनियाभर में तमाम धर्मों और समाज में इसके बारे में विचार नकारात्मक ही रहे हैं. अगर भारतीय समाज के नजरिए की बात करें तो ये पुख्ता तौर पर निगेटिव रहा है. हालांकि इसके पीछे बहुत तार्किक और वैज्ञानिक आधार नहीं दिए गए.

दुनिया की ज्यादातर संस्कृतियों में रही है समलैंगिकता

इतिहास की बात करें तो दुनिया की ज्यादातर संस्कृतियों में समलैंगिकता मौजूद रही है. भारतीय संस्कृति में भी ये कुछ हद तक रही है. प्रसिद्ध मानवशास्त्री मार्गरेट मीड के अनुसार आदिम समाजों में समलैंगिकता प्रचलन में थी. रोमन सभ्यता में भी इसे बुरा नहीं माना गया, वहीं प्राचीन यूनान में तो इसे मान्यता ही मिली हुई थी. मानवीय सभ्यता के शुरुआती दौर में समलैंगिकता न कोई अप्राकृतिक काम था न ही कोई अपराध.

जो अप्राकृतिक दिखता है वो प्राकृतिक है

ऋग्वेद की एक ऋचा के अनुसार ‘विकृतिः एव प्रकृतिः’, यानी जो अप्राकृतिक दीखता है वह भी प्राकृतिक है. अक्सर समलैंगिकता की पैरवी करने वाली इस बात को सामने भी रखते हैं. उनके अनुसार ‘विकृतिः एव प्रकृतिः का मतलब ही है कि प्राचीन भारत समलैंगिकता के प्रति सहिष्णु रहा है.

है समलैंगिकता और किन्नरों का उल्लेख

रामायण, महाभारत से लेकर विशाखदत्त के मुद्राराक्षस, वात्स्यायन के कामसूत्र तक में समलैंगिकता और किन्नरों का उल्लेख है. हालांकि इन्हें सहज सम्मान की दृष्टि से तो नहीं देखा जाता था लेकिन कहीं इनके अतिशय अपमान का भी उल्लेख नहीं मिलता है.

क्या है बराहमिहिर के ग्रंथ वृहत जातक में

बारहवीं सदी में बराहमिहिर ने अपने ग्रंथ वृहत जातक में कहा था कि समलैंगिकता पैदाइशी होती है. इस आदत को बदला नहीं जा सकता है. आधुनिक वैज्ञानिक शोधों से भी यह बात साबित हो चुकी है कि समलैंगिकता अचानक पैदा हुई आदत या विकृति नहीं है, बल्कि यह पैदाइशी होती है.

वात्सायन ने कामसूत्र में किया है उल्लेख

गुप्त काल में वात्स्यायन ने जब कामसूत्र की रचना की तो उन्होंने साफ लिखा कि किस तरह से उनके मालिक, सेठ और ताकतवर लोग नौकरों, मालिश करने वाले नाइयों के साथ शारीरिक संबंध बना लेते थे. वैसे मध्य काल और उसके बाद भारत में तमाम राजवंशों में इससे जुड़े किस्से खूब प्रचलन में रहे हैं.

जब विष्णु मोहिनी बनकर शिव को रिझाते हैं

भारतीय संस्कृति में ही महादेव शिव का एक रूप अर्धनारीश्वर वाला भी है. मिथकीय आख्यान कहते हैं कि एक बार विष्णु मोहिनी स्त्री रूप धारण कर शिव को रिझाते हैं. इससे उन्हें पुत्र अयप्पा की प्राप्ति होती है. महाभारत में अर्जुन की मर्द से बृहन्नला बन जाते हैं. भगीरथ की दो रानियों के संबंध से उत्पन्न हुए पुत्र की कहानी भी पौराणिक कहानियों में सुनी कही जाती रही है.

राजा इल स्त्री बन गए और पुत्र को जन्म भी दिया

पुराणों में राजा इल के स्त्री रूप में ऋषि बुध के रीझने और उससे एक पुत्र प्राप्ति की कहानी भी है. पुराणों में बुध के विवाह के विषय में इसका रोचक तरीके से वर्णन किया गया है.

कथा के अनुसार राजा इल एक बार शिकार खेलने वन में गये. अनजाने में ही वह अम्बिका नामक वन में पहुंच गये. अम्बिका वन भगवान शिव द्वारा शापित था. एक बार शिव और पार्वती इस वन में विहार कर रहे थे. उसी समय ऋषियों का एक समूह वन में आ पहुंचा. इससे पार्वती शरमा गईं. शिव जी को ये अच्छा नहीं लगा और उन्होंने शाप दे दिया कि शिव परिवार के अलावा अम्बिका वन में जो भी प्रवेश करेगा वह स्त्री बन जाएगा.

शिव के शाप के स्त्री बने और बुध मोहित हो गए

भगवान शिव के शाप के कारण राज इल स्त्री बन गए. अपने बदले रूप को देखकर इल बहुत दुःखी हुए. वन से बाहर निकलने पर उनकी मुलाकात बुध से ई. ऋषि बुध राज इल के स्त्री रूप पर मोहित हो गए. इल ने अपना नाम ईला रख लिया. बुध से विवाह कर लिया. ईला और बुध से पुरूररवा का जन्म हुआ. पुराणों में बताया गया है कि पुरूरवा बड़े होकर राजा बने, इनकी राजधानी गंगा तट स्थित प्रयाग थी.

बेटे ने फिर वापस पुरुष रूप दिलाया

राजा पुरूररवा को एक दिन माता ईला ने दुःखी होकर अपने स्त्री बनने की कथा बतायी. इसके बाद पुरूरवा ने निश्चय किया कि वह अपनी माता को वास्तविक रूप में लाने की कोशिश करेंगे. इसके लिए पुरूरवा ने गौतमीगंगा यानी गोदावरी तट पर शिव की उपासना की. पुरूरवा की उपासना से प्रसन्न होकर शिव और पार्वती प्रकट हुए. वरदान मांगने के लिए कहा.

पुरूरवा ने शिव से कहा कि उनकी माता ईला पुनः राजा इल बन जाए. इस पर भगवान शिव ने वरदान दिया कि गौतमी गंगा में स्नान करने से ईला फिर इल बन जाएगी. ईला ने गौतमी गंगा में स्नान किया और पुनः राजा इल बन गयी.

वैदिक शास्त्रों में हुआ है समलैंगिकता का जिक्र

अमरा दास विल्हम की किताब तृतीय प्रकृति - पीपुल ऑफ थर्ड सेक्स कई सालों के गहन शोध के बाद लिखी गई. इसमें उन्होंने संस्कृत में लिखे उन ग्रंथों का गहन अध्ययन किया जो प्राचीन और मध्य भारत में लिखे गए. उन्होंने ये साबित किया कि समलैंगिकता की प्रवृत्ति भारतीय समाज में भी हमेशा से रही लेकिन उन्हें बहुत कम स्वीकार किया गया.

दूसरी सदी में लिखे गए भारतीय ग्रंथ "कामसूत्र" के "पुरुषायिता" अध्याय में किताब एक ऐसी समलैंगिक स्त्रियों का जिक्र करती है, जिन्हें स्वर्णिनिस कहा जाता था. ये महिलाएं अक्सर दूसरी स्त्रियों से शादी कर लेती थीं और बच्चा पालती थीं.

खजुराहों की दीवारों पर भी चित्रण 

अगर खजुराहों के मंदिरों की दीवारों पर बनी तमाम मुद्राओं की मूर्तियों को देखेंगे तो उसमें समलैंगिक पुरुषों और महिलाओं का चित्रण भी खूब हुआ. वो उसी भाव में नजर आते हैं. माना जाता है कि ये मंदिर 12वीं शताब्दी में बनाए गए थे."

अतः कहा जा सकता है कि समान लिंग वाले अर्थात् किन्हीं दो पुरुषों में या किन्हीं दो स्त्रियों के मध्य उत्पन्न हुई समलैंगिकता (Homosexuality) या किसी व्यक्ति विशेष द्वारा लैंगिक सम्बन्ध स्थापित करने हेतु नर/मादा साथी के अभाव में हस्तमैथुन (Masturbation) का आधार न केवल लैंगिक विकृति या परिस्थिति जन्य मानसिक सोच है, बल्कि यह उनके जन्म जात गुणधर्मों का प्रभाव भी है, जिसे सामाजिक-सांस्कृतिक आदर्शों के आलोक में प्रतिबंधित कर और/या जिनसे प्रभावित व्यक्तियों की मनोशारीरिक चिकित्सा कर विषमलैंगिक आदर्शों की सुरक्षा की जा सकती है।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार उर्फ अवधेश कुमार शैलज, 

( मनोविज्ञान, होमियोपैथ ), पचम्बा, बेगूसराय।

Research Scholar : Study of attitude towards family, sex and self-concept of P. G. students. ( L. N. M. University, Darbhanga )

शोध निर्देशक : Dr. S. C. Sharma ( Retired Prof. P. G. Department of psychology, G. D. College, Begusarai. )


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प्रो। अवधेश कुमार शैलाज, पचम्बा,
बेगूसराय।

अवधेश कुमार पर 3:16 बजे

रविवार, 22 अगस्त 2021

आकाशगमन

योग के माध्यम से अणिमादि अष्ट सिद्धियों एवं नव निधियों की प्राप्ति होती है। ऐसा होना असम्भव एवं काल्पनिक नहीं है, बल्कि आध्यात्मिक एवं योग पथ के अनुशीलन से शत प्रतिशत संभव है, परन्तु इसके लिए श्रीमद्भगवद्गीता में वर्णित भगवान श्री कृष्ण की वाणी "युक्ताहारविहारस्य, युक्त कर्म सुचेष्ठषु।
युक्त स्वप्नाववोधस्य, योगो भवति दु:खहा।।" का अनुशीलन अनिवार्य है।वर्षों पूर्व जब मैंने योग मार्ग का अनुशरण किया था, उस समय आकाश गमन की प्रक्रिया एवं स्थिति खुद मेरे द्वारा भी अनुभूत है। आयुर्वेद में जड़ीबूटी एवं रसायन के उपयोग से तथा प्राचीन ग्रन्थों के अनुसार विभिन्न प्रयोगों एवं सिद्धियों द्वारा भी ऐसा कर पाना सम्भव है, परन्तु इन क्रियाकलापों को प्रायः कौतुक के दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि अत्यावश्यक परिस्थिति में और सदुपयोग को ध्यान में रखकर उपयोग में लाया जाता है।

गुरुवार, 19 अगस्त 2021

शैलज दोहावली भाग ५ (दोहा संख्या १९३ से २४० तक) सम्प्रति प्रकाशन की प्रक्रिया में है। आज का दोहा संख्या.........वाँ है।)

पद मद अहं सौन्दर्य बल,
निज देह ज्ञान बल यार।
कोटि जतन संग जात नहीं,
शैलज राज श्री सुख सार।......।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, 
पचम्बा, बेगूसराय।



रविवार, 8 अगस्त 2021

होमियो एवं बायोकेमिक चिकित्सा के अनुभव : डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय।

होमियो एवं बायोकेमिक चिकित्सा के अनुभव : डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय।

आयुर्वेद सम्मत आर्ष वचन है कि "शरीरमाद्यं खलु धर्म साधनम्" अर्थात् धर्म की सिद्धि हेतु शरीर आदि साधन है। शरीर मन एवं आत्मा का आपसी सम्बन्ध प्राणी के जीवन में दृष्टि गोचर होता है, क्योंकि मन ही मनुष्यों के बन्धन एवं मोक्ष का कारक है (मन एव मनुष्याणां बन्धनं मोक्ष कारकं।।)। स्मरणीय है कि शरीर और मन के परस्पर सुसम्बन्ध से और दोनों की स्वस्थ्य अवस्था से उस प्राणी का कल्याण होता है तथा उनके सभी समस्याओं का भगवत् कृपा से सहज समाधान भी होता है। अतः संसार के सभी मानव हेतु इस तथ्य से अवगत होना एवं यथासंभव इन्हें आत्मसात करना परम कल्याणकारी है।
(क्रमशः)

गुरुवार, 5 अगस्त 2021

प्रयोगात्मक मनोविज्ञान

प्रयोगात्मक मनोविज्ञान: मनोविज्ञान के पारिभाषित क्षेत्र के सैद्धान्तिक पक्षों या किसी समस्या के सन्दर्भ में तुलनात्मक, वैज्ञानिक एवं प्रयोगात्मक अध्ययन के आधार पर पूर्व-निर्णय के सम्बन्ध में निर्णायक पक्ष रखना प्रयोगात्मक मनोविज्ञान है।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय।

Experimental Psychology: The theoretical aspects of the defined field of psychology or in the context of a problem, on the basis of comparative, scientific and experimental study, taking a decisive side in relation to the pre-decision is experimental psychology.

Dr. Prof. Awadhesh Kumar Shailaj, 
Pachamba, Begusarai.
 
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रविवार, 11 जुलाई 2021

प्रार्थना

' सर्व कल्याणकारी प्रार्थना '
......................................…..................
प्रियतम! स्वामी ! सुन्दरतम्! माधव ! हे सखा!  हमारे !
मिलती है , शान्ति -👌जगत में,केवल प्रभु ! तेरे सहारे ।।
तुम अमल धवल ज्योति हो, ज्योतित करते हो- जग को । 
स्रष्टा! पालक! संहर्ता ! तुम एक नियन्ता -जग के ।।
कैसे मैं तुझे पुकारूँ , जड़ हूँ, न ज्ञान -मुझको है ।
प्रभु एक सहारा -तुम हो,रखनी प्रभु लाज -तुझे है ।।
सर्वग्य! सम्प्रभु! माधव! तुम तो -त्रिकाल दर्शी हो ।
अन्तर्यामी! जगदीश्वर! तम-हर! भास्कर भास्कर हो ।।
मायापति! जन सुख दायक! तुम व्याप्त -चराचर में हो ।
हे अगुण! सगुण ! परमेश्वर! सर्वस्व हमारे -तुम हो ।।
आनन्दकन्द! करूणाकर! शशि-सूर्य नेत्र हैं -तेरे ।
तुम बसो अहर्निश प्रतिपल,प्रभु ! अभ्यन्तर में -मेरे ।।
तेरी ही दया कृपा से ,अन्न धन सर्वस्व मिला है ।
तेरी ममता इच्छा से ,यह जीवन कमल खिला है ।
उपहास किया कर ते हैं ,जग के प्राणी सब -मेरे ।
स्वीकार उन्हें करता हूँ , प्रेरणा मान सब -तेरे ।।
कर्त्तव्य किया न कभी मैं,प्रभु ! प्रबल पाप धोने का ।
जुट पाता नहीं मनोबल,प्रभु ! अहंकार खोने का ।।
बस, तिरस्कार पाता हूँ , यह पुरस्कार है- जग का ।
है बोध न मुझको कुछ भी, जगती का और नियति का ।।
यह जीवन चले शतायु, मंगलमय हो जग सारा ।
माधव ! चरणों में तेरे, जीवन अर्पित हो सारा ।।
हे हरि ! दयानिधि! दिनकर! सब जग के तुम्हीं -सहारे ।
हम सब को प्रेम सिखाओ, हे प्रेमी परम हमारे ।।
हो बोध हमें जीवन का, कर्त्तव्य बोध हो सारा ।
अनुकरण योग्य प्रति पल हो, जीवन आदर्श हमारा ।।
ईर्ष्या ,माया,मत्सर का लव लेश नहीं हो हममें ।
धन, बल, विकास, काया का -सुन्दर विकास हो हममें ।।
सौहार्द, प्रेम भावों का प्रभु ! उत्स हृदय में फूटे ।
उत्तम् विचार राशि को,जगती जी भर कर लूटे ।।
सार्थक हो जग में जीवन, सार्थक हो प्रेम हमारा ।
माधव ! चरणों में तेरे, जीवन अर्पित हो सारा ।।
:- प्रो० अवधेश कुमार 'शैलज', पचम्बा, बेगूसराय ।
(प्राचार्य सह विभागाध्यक्ष मनोविज्ञान, एम.जे.जे.कालेज,एम.,बनवारीपुर,बेगूसराय।
(कालेज कोड : ८४०१४)

 
 

प्रार्थना

' सर्व कल्याणकारी प्रार्थना '
......................................…..................
प्रियतम! स्वामी ! सुन्दरतम्! माधव ! हे सखा !  हमारे !
मिलती है , शान्ति -👌जगत में, केवल प्रभु ! तेरे सहारे ।।१।।
तुम अमल धवल ज्योति हो, ज्योतित करते हो- जग को । 
स्रष्टा ! पालक ! संहर्ता ! तुम एक नियन्ता -जग के ।।२।।
कैसे मैं तुझे पुकारूँ , जड़ हूँ, न ज्ञान -मुझको है ।
प्रभु एक सहारा -तुम हो, रखनी प्रभु लाज -तुझे है ।।३।।
सर्वग्य! सम्प्रभु! माधव! तुम तो -त्रिकाल दर्शी हो ।
अन्तर्यामी ! जगदीश्वर ! तम-हर ! भास्कर भास्कर हो ।।४।।
मायापति ! जन सुख दायक ! तुम व्याप्त-चराचर में हो ।
हे अगुण ! सगुण ! परमेश्वर ! सर्वस्व हमारे -तुम हो ।।५।।
आनन्दकन्द ! करूणाकर ! शशि-सूर्य नेत्र हैं -तेरे ।
तुम बसो अहर्निश प्रतिपल, प्रभु ! अभ्यन्तर में -मेरे ।।६।।
तेरी ही दया कृपा से, अन्न धन सर्वस्व मिला है ।
तेरी ममता इच्छा से, यह जीवन कमल खिला है ।।७।।
उपहास किया करते हैं, जग के प्राणी सब -मेरे ।
स्वीकार उन्हें करता हूँ, प्रेरणा मान सब -तेरे ।।८।।
कर्त्तव्य किया न कभी मैं, प्रभु ! प्रबल पाप धोने का ।
जुट पाता नहीं मनोबल, प्रभु ! अहंकार खोने का ।।९।।
बस, तिरस्कार पाता हूँ, यह पुरस्कार है- जग का ।
है बोध न मुझको कुछ भी, जगती का और नियति का ।।१०।।
यह जीवन चले शतायु, मंगलमय हो जग सारा ।
माधव ! चरणों में तेरे, जीवन अर्पित हो सारा ।।११।।
हे हरि ! दयानिधि ! दिनकर ! सब जग के तुम्हीं -सहारे ।
हम सब को प्रेम सिखाओ, हे प्रेमी परम हमारे ।।१२।।
हो बोध हमें जीवन का, कर्त्तव्य बोध हो सारा ।
अनुकरण योग्य प्रति पल हो, जीवन आदर्श हमारा ।।१३।।
ईर्ष्या, माया, मत्सर का लव लेश नहीं हो हममें ।
धन, बल, विकास, काया का -सुन्दर विकास हो हममें ।।१४।।
सौहार्द, प्रेम भावों का प्रभु ! उत्स हृदय में फूटे ।
उत्तम् विचार राशि को, जगती जी भर कर लूटे ।।१५।।
सार्थक हो जग में जीवन, सार्थक हो प्रेम हमारा ।
माधव ! चरणों में तेरे, जीवन अर्पित हो सारा ।।१६।।


:- प्रो० अवधेश कुमार 'शैलज', पचम्बा, बेगूसराय ।
(सेवा निवृत्त प्राचार्य सह विभागाध्यक्ष मनोविज्ञान, एम.जे.जे.कालेज,एम.,बनवारीपुर,बेगूसराय।
(कालेज कोड : ८४०१४)

रविवार, 9 मई 2021

A feeling of Mother

A very Happy Mother's Day to all the mothers out there. Write and dedicate #letters to your mother and make her feel special on this day. :) #DearMother #HappyMothersDay #MothersDay #YourQuoteAndMine
Collaborating with YourQuote Baba

Your views of life.
Taught me always.
The problem of life.
Poured own feelings,
In my mental container.
Educate about struggle 
Of internal affairs.
Demonstrate always
To safe own life.
How to adjust with
Family, husband or wife?
Always guide me 
How to face and hide ?
Care for children,
Monetary misguide.
Views, news Father's.
Family, society style.
But left me always
In the struggle of life.
Mother your teachings &
Nature's style.

Dr. Prof. Awadhesh Kumar Shailesh,
Pachamba, Begusarai.

शनिवार, 24 अप्रैल 2021

राष्ट्र कवि ! फिर जागो।

राष्ट्र कवि ! फिर जागो ।
("राष्ट्र कवि ! फिर जागो ।" का अद्यतन संशोधित संस्करण)

राष्ट्र कवि ! फिर जागो ।
जागो, कविवर जागो।
जन-जन में राष्ट्रीय चेतना,
कविवर पुनः जगाओ।।

भारत भारती विकल हो रही,
खुद की रक्षा में विफल हो रही,
कविवर ! बोलो क्यों देर हो रही ?
हिन्दी साहित्य अधीर हो रही,
जागो दिनकर ! जागो कविवर!
राष्ट्रीय चेतना को पुनः जगाओ।
राष्ट्र कवि ! फिर जागो।
रूठो मत, कविवर ! आँखें खोलो।

राष्ट्र कवि! फिर जागो।
राष्ट्र कवि! फिर जागो।
जागो, कवि वर जागो।
जागो, कवि वर जागो।

राष्ट्र कवि ! दिनकर !
कैसे मैं श्रद्धा सुमन चढ़ाऊँ ?
अश्रुपूरित आँखों से कैसे
आज तुझे हर्षाऊँ ?

भारतेंदु ने सच ही कहा, 
जो आज समझ में आई ।
भाषा संस्कृति है रुग्ण त्रस्त,
विपदा दुनिया में छाई ।।

भारतेन्दु को जब भारत की
आवाज समझ में आई ।
भारत हित में भारतेन्दु ने,
भारत से गुहार लगाई।।

"आवहुँ सब मिलि रोवहुँ भारत भाई ।
हा ! हा ! भारत दुर्दशा देखि न जाई।। "
"आवहुुँ सब मिलि रोवहुँ भारत भाई ।
हा ! हा ! भारत दुर्दशा देखि न जाई।। "

युग द्रष्टा भारतेंदु नहीं थे
केवल कविता प्रेमी ।
हिन्दी-हिन्दुस्थान भारत के
थे अन्तरतम से सेवी ।।

सत्ता है मदमस्त, स्वार्थ में
लीन विपक्षी गण हैं।
दोषी निर्दोषी दोनों मानो
एक भाव जैसे हैं।

राजनीति व्याध साहित्यिक
छल बल से भरे हुए हैं ।
स्वार्थी, अपराधी, आराजक
तत्वों से हम घिरे हुए हैं ।।

अवसरवादी और शरणागत 
माथे पर चढ़े हुए हैं ।
मानवता है त्रसित हो रही,
आतंकित समस्त धरती है ।।

धर्म-कर्म हो रहे तिरोहित,
दुष्ट भाव फैला है ।
देश द्रोहियों का भारत में
महाजाल फैला है ।।

विश्व गुरु भारत की कुटिया,
लूट रहे जग वाले ।
पोथी-पतरा सभी ले गए,
जो बचा जला वे डाले ।।

तप, कर्म, संकल्प, साधना,
ईश बल बचा हुआ है ।
गीता का उपदेश कृष्ण का,
अब भी गूँज रहा है ।।

अर्धनारीश्वर रुप हमारा,
इसे तोड़ते जो हैं ।
प्रकृति-पुरुष की दिव्य शक्ति
को नहीं जानते वे है ?

एक सनातन धर्म हमारा,
सब जीवों की सेवा है ।
दया धर्म का मूल हमारा,
क्षणभर मेरा तेरा है ।।

हम अगुण सगुण को भजते,
सबको अपना ही समझते हैं ।
वे दया धर्म से पतित, हमें
कायर काफिर तक कहते हैं ।।

हम शान्ति, न्याय, आदर्श, अहिंसा,
सत् पथ पर चलते हैं ।
वे ज्योति बुझा कर हमें कुमार्ग
पथ पर चलने को कहते हैं ।।

तोड़ रहे सांस्कृतिक एकता,
आपस में हमें लड़ाकर ।
पूर्वाग्रह ग्रसित प्रतिशोध की
ज्वाला को भड़का कर ।।

जाति-धर्म की राजनीति
हरदम करते रहते हैं ।
ऊँच-नीच का पाठ पढ़ा कर
ये हमको ठगते हैं ।।

भटक रहे जो खुद भ्रमित हो,
औरों को राह दिखाते हैं ।
नद निर्झर की धारा को वे
शिखरों की ओर बहाते हैं ।।

आर्ष ज्ञान से भटका कर
पाश्चात्य जगत ले जाते हैं ।
आधुनिक विज्ञान ज्ञान से,
वे हमको भरमाते हैं ।।

" सोने की चिड़ियाँ " का
अद्भुत रुप नहीं देखा है ।
वरदा भारत भारती माँ से
वेकार उलझ बैठा है ।।

रण चण्डी को बुला रहा है,
रोज निमन्त्रण देकर ।
भगवा धारी प्रकट हुई हैं,
आज तिरंगा लेकर ।।

राष्ट्रकवि ! इनके वन्दन का,
समय पुनः आया है ।
जागें बन मुचुकुन्द कविवर,
राक्षसी प्रवृत्ति छाया हैं ।।

भस्म करें निज ज्ञान नेत्र से,
अन्तर के असुर दलों को ।
अमृत का उपहार सुरों को,
दें फिर मोहिनी बन के ।।

काल कूट तू ही पी सकते,
औरों में शौर्य कहाँ है ?
रहते शांत, असीम धैर्य की
शक्ति यहाँ कहाँ है ?

कविवर ! उठो,जगो हे दिनकर !
तम को दूर भगाओ ।
श्रम जीवी, बुद्धि जीवी को,
सत् पथ राह दिखाओ ।।

बाट जोहती खड़ी भारती
कब से हिन्द जन मन में ।
देर हो रही रणचंडी के,
पावन अभिनन्दन में ।।

" हिन्द उन्नायक " खोज रही हैं,
कब से भारत माता ।
रचनात्मकता का वरण करो,
अवसर न हरदम आता ।।

अपने और पराये अर्जुन,
इन्हें अभी पहचानो ।
अन्तस्थल के विराट को,
दिव्य-दृष्टि से जानो ।।

माता रही पुकार राष्ट्रकवि !
जागो और जगाओ ।
भूषण, गुप्त, सुभद्रा, प्रसाद को
फिर से आज जगाओ ।।

विखरे अपने अंगों को
आज पुनः अपनाओ ।
सत्तर वर्षों की निद्रा से,
वीरों को पुनः जगाओ ।।

भारत की सभ्यता-संस्कृतिक,
संकट में पड़ी हुई है ।
रक्त बीज, जय चन्द, शकुनि से
धरती भरी हुई है ।।

अर्जुन को ही नहीं युधिष्ठिर को
भी रण में लड़ना होगा ।
पाने को अधिकार विवेक से
कर्त्तव्य पूर्ण करना होगा ।।

रण में जो आड़े आयेंगें,
उनको हम सबक सिखायेंगे ।
हम विदुर और चाणक्य सूत्र से
सारे जग को हम जीतेगे ।।

"शैलज" मिथिला की सीमा पर
" दिनकर " की सिमरिया नगरी है ।
हिन्दी साहित्य भाषा शैली की
अवशेष अशेष यह गगरी है ।।

इस पुण्य भूमि को नमस्कार
जिसने तुम-सा सुत जन्म दिया ।
भारत माता की सेवा में निष्ठा से
जीवन भर अपना कर्म किया ।।

देव- दनुज हेतु जहाँ अमृत प्रकटे,
प्राकृत संस्कृत वेद वचन प्रभु से निकले ।
रुप मोहिनी, हरि, राम, विष्णु आये,
सुरसरि हित अवतरित हुए प्रभु रुक पाये ।।

कविवर जागो ! हे राष्ट्र कवि !
दिनकर ! तू आँखें खोलो ।
गोपद 'रेणु' लो, "मैला आँचल" ।
शुचि गंगा जल से धोलो।।

प्रगतिशील रचनात्मक पथ पर,
चलने का व्रत ले लो ।
जीव जगत मानव के हित में,
दृढता से संकट को झेलो।।

आधुनिक प्राचीन मतों में
अन्तर है, पुनः विचारो।
किसी मोहवश लेकिन,
सच को न कभी दुत्कारो।।

जन्म लिया जिस नारी से,
माँ कहलाती है जग में।
मातृभूमि को माँ कहने में, 
क्या दुविधा अन्तस् में।

ममतामयी माँ भारत माता,
निज माँ सा आँचल में खेलो।
पूर्वाग्रह सब त्याग सुपथ संग,
चलने का व्रत कवि ले लो।।

हे राष्ट्रकवि ! दिनकर ! कवि वर !
जन गण मन बोल रहा है ।
भारत माता का दिल संतति संग,
दिनकर रट बोल रहा है।।

हे राष्ट्र कवि! दिनकर !
कैसे मैं श्रद्धा सुमन चढ़ाऊँ ?
अश्रुपूरित नेत्रों से कैसे,
कवि ! मैं आज तुझे हर्षाऊँ ?

राष्ट्र धर्म हो नहीं कलंकित
ऐसा राष्ट्र बनाऊँ ।
सत्य सनातन धर्म कर्म का,
जग को पाठ पढ़ाऊँ ।।

भारत माता की सेवा में
जीवन शेष बिताऊँ ।
जनता की सच्ची सेवा कर
जन सेवक कहलाऊँ ।।

मांग रहा बलिदान राष्ट्र जब
कभी नहीं घबराऊँ ।
ज्ञान- विज्ञान, कला , अध्यात्म
का जग को पाठ पढ़ाऊँ ।।

अहंकार में भटके जन को
कैसे राह दिखाऊँ ?
पीड़ित मन से कैसे कविवर,
आज तुझे हर्षाऊँ ?

राष्ट्रराष्ट्र कवि ! हृदय की पीड़ा,
कैसे तुम्हें बताऊँ ?
राष्ट्र कवि ! दिनकर !
कैसे मैं श्रद्धा सुमन चढाऊँ ?

प्रो० अवधेश कुमार " शैलज "‛
पचम्बा, बेगूसराय ।
मॊवाईल न०ः ८२१०९३८३८९

सोमवार, 12 अप्रैल 2021

माँ दुर्गा की प्रार्थना


अपनी बोली अर्थात् अंगिका क्षेत्र बेगूसराय की भाषा में माँ दुर्गा की वन्दना / प्रार्थना करने का मैंने आज प्रथम बार प्रयास किया है और मिथिला क्षेत्र होने के कारण इस प्रार्थना में मिथिला की भाषा शैली का भी समावेश हो गया है। अतः विद्वत् जन कृपया अन्यथा भाव न लेकर उत्साहवर्धन करेंगे तथा सम्यक् मार्ग दर्शन करेंगे। शुभमस्तु।।

माँ दुर्गा की प्रार्थना (संशोधित)

हे दुर्गा दुर्गति नाशिनी मैया !
कण-कण में तू वासिनी मैया!
किये हमरा भटकावै छे ?
किये न दै छे सुन्दर मति माँ,
किये न ज्ञान बढ़ावै छे ?
हे दुर्गा दुर्मति नाशिनी माँ !
हमरा किये रुलावै छे ?
करम-धरम हम बूझै नै छौं ,
हमरा किये नै सिखावै छे ?
माई-बाप के कैसन बेटा ?
लोग से बात सुनाबै छे ?
होवे छे अपमान तोहर जब,
जीवन ई व्यर्थ सुनाबै छौं ।
हे दुर्गा दुर्भाग्य नाशिनी !
माँ! ममता किये न दिखावै छे ?
कर्म सुकर्म के समझ नै हमरा,
पूजा पाठ न आवै छै ।
जनम देले, भेजले धरती पर।
की करुँ ? सदा पछतावै छौं ।
कुछ न चलैय हमरा ई जग में,
सत् पथ में संकट पावै छौं ।
कोई न साथी संगी जग में,
सबके स्वारथ में पावै छौं ।
गलत करम के राही छै सब,
हमरो हरदम भटकावै छै।
जौं नै चलैय छौं ओकर राह पर,
हमरा रोज सतावै छै।
हे दुर्गा ! हे शिवे! त्र्यम्बिके!
जग जननी! तू कहलवै छे।
सृष्टि पालनहार जगत के,
तू ही में जगत समावै छै।
कर्म , आयुु, सौभाग्य,  ज्ञानदा।
जोग जुगुति नैय जानय छौं ।
अन्तर्यामिनी! सिद्धि दात्री!
दिल के बात बतावै छौं ।
अवगुण अहंकार दुर्गुण के
पार न हम सब पावै छौं ।
कृपा करू हे माँ अघ नाशिनी!
शैलज पुत्र पुकारै छौं ।
क्षमा करू हे अम्मा अम्बे !
निज मातृभाषा में बाजै छौं ।

सब सन्तान तोरे छै मैया,
किये न उनका समझावै छे ?
जौं ई बात गलत छै मैया।
किये वेद पुराण पढ़ावै छे ।

त्रिविध ताप नाशिनी मैया,

सत्पथ तू दर्शावै छे।

ब्रह्मा, विष्णु, शिव, सेवक, सबके,

मैया तू लाज बचावै छे ।

हे दुर्गा दुर्गति नाशिनी!
शरणागत दर्द सुनाबै छौं ।
चरण शरण दियौ हे मईया,
सब जग में तोहें पावै छौं ।
तू दुर्भाग्य नसावै छी माँ!
तू सौभाग्य जगावै छी माँ!
हे दुर्गा दुर्गति नाशिनी माँ!
......
हे दुर्गा दुर्गति नाशिनी माँ!
क्षमा करू सब भूल चूक माँ!
वरदायिनी! शब्द न पावै छौं ।
"ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै।"
कोशिश कर जाप सुनाबै छौं।
करके स्मरण सिद्ध कुञ्जिका
निज अन्तर्भाव बतावै छौं।
हे दुर्गा दुर्गति नाशिनी माँ!
जे बुझावै छै से गावै छौं।
हे दुर्गा............।

अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय।


बुधवार, 7 अप्रैल 2021

शैलज घायल हो गया.....

शैलज घायल हो गया, चुभ गया दिल में तीर।
मुरझाया आनन कमल, बदल गया तकदीर।।

मौसम बदला, हवा चली, बुझ गया एक चिराग।
नीतिवान् गाते सदा, परिवर्त्तन राग विराग।।

बंद झोपड़ी में पड़ा, कब से राज कुमार।
आज उजागर हो गया, उसका सब व्यापार।।

जनता बैठी द्वार पर, करती आर्त्त पुकार।
नेता सेवक मदमस्त हैं, लगा राज दरबार।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज,
(कवि जी),
पचम्बा, बेगूसराय।

गुरुवार, 18 फ़रवरी 2021

सरस्वती वंदना

सरस्वती वंदना:

ऐंकारी सृष्टि कारिणी, शारदा ज्ञान बुद्धि प्रदायिनी।
वीणा पाणि, हंस वाहिनी, नीर क्षीर गुण न्याय कारिणी।

वीणावादिनी, विद्या दात्री, सर्व सौभाग्य प्रदायिनी।
सरस्वती शुभदा सौम्या, जगदीश्वरी वरदायिनी।

ऊँकारेश्वरी त्र्यम्बिके माता, त्रिविध ताप विनाशिनी।
श्वेत पद्मासना, श्वेत वसना, आरोग्य आयु सुखदायिनी।

ऋद्घिसिद्घिप्रदा, निधिदा, नित्या, यन्त्र मन्त्र तन्त्रेश्वरी।
ज्योतिप्रदा, धनदा, यशदा, सुरेश्वरी, जगदीश्वरी।

जड़ शैलज बोधदा, प्रज्ञा, अज्ञान,अधम, तम नाशिनी।
स्रष्टा, पालक, समाहर्ता, भुक्ति मुक्ति बोध प्रदायिनी।

सर्वं त्वेष त्वदीयं माँ, नमस्तुभ्यं भारती।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय।


सोमवार, 4 जनवरी 2021

हम किसान छी

हम किसान छी राजनीति के, सूखा कहीं बाढ़ भो भेल।
की करूँ खेती, की करूँ मेल ? बाबा पप्पू कहाँ चलि गेल ?

खाद बीज सब महँगा भेल, बिजली पानी डीजल गेल।
नेता अफसर भेंट भो गेल, बाबा पप्पू कहाँ चलि गेल ?

राहु केतु के चक्कर भेल, की कहुँ नींद हमर उड़ि गेल।
मजदूरी कत महँगा भेल ? बाबा पप्पू कहाँ चलि गेल ?

बाढ़ल मजदूरी महँगाई भेल, मजदूर अवसरवादी भेल।
विधि विपरीत प्रकृति भेल, बाबा पप्पू कहाँ चलि गेल ?

नारद जलद मन मयूर न भावे, सुजन समाज मूक भो गेल।
सोच फिकर से देह गलि गेल, बाबा पप्पू कहाँ चलि गेल ?

श्रमिक किसान भिखारी भेल, जमाखोर व्यापारी भेल।
शैलज नेतागण खेले खेल, बाबा पप्पू कहाँ चलि गेल ?

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय।