गुरुवार, 26 अगस्त 2021

समलैंगिकता के ज्योतिषीय आधार (Astrological base of Homosexuality)

संसार के प्राणियों में से मुख्य रूप से मानव प्रजाति के पूर्व परिचित या अपरिचित नर-नारी के पारस्परिक दैहिक सम्बन्ध से अथवा कृत्रिम संसाधनों से उन दोनों के रज-वीर्य से उनका आपस में बनाया गया रक्त सम्बन्ध उन्हें पुत्र या पुत्री सन्तान के रूप में प्राप्त होता है और परिवार नामक संस्था का जन्म स्वत: हो जाता है तथा यह रिश्ता वास्तव में किसी भी परिस्थिति में समाप्त नहीं होता है साथ ही प्रकृति स्त्री के उस सन्तान को गर्भ रखने एवं प्रसवोपरांत उसके पालन पोषण हेतु उसके स्तनों में सर्वोत्तम आहार दुग्ध प्रदान करती है, परन्तु यदि वही माता अपने दिल से लगाकर उसे अपना दूध नहीं पिलाती है तो सन्तान को प्रताड़ित करने के दण्ड स्वरूप प्रायः स्तन कैंसर (जिसकी उत्पत्ति कफ/काम,पित्त/क्रोध तथा वात/लोभ की विकृति या अशुभ विचारों के कारण होती है) का कष्ट भोगने हेतु बाध्य भी करती है।

इस प्रकार संसार में मानव और/या मानवेतर प्राणियों का पारस्परिक प्रेम सम्बन्ध ही मूल सम्बन्ध है, जिसकी रक्षा हमारा मूल धर्म है। (डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज के निबन्ध "सम्बन्धों की पारस्परिक समझ....." से सभार ।)

किसी भी बाल, वृद्ध, युवा नर और/या नारी के बीच उनकी अपनी-अपनी मनोशारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति की सम्भावनाओं के आलोक में उनके द्वारा अपने-अपने उद्देश्य की पूर्ति हेतु किसी देश काल परिस्थिति में उनके मध्य दैहिक, दैविक, आध्यात्मिक, मानसिक या भौतिक स्तर पर उत्पन्न आकर्षण प्रायः पारस्परिक प्रेम के रूप में पारिभाषित होता है और यही प्रेम जब मानसिक और/या शारीरिक स्तर पर वासनात्मक स्वरूप धारण करता है तो किन्हीं दो पुरुषों या दो स्त्रियों के ऐसे आपसी या अन्योन्याश्रय सम्बन्ध को समलैंगिक (Homosexual) सम्बन्ध कहा जाता है। स्त्रियों के मामले में समलैंगिक संबंधों को लैस्बियन सम्बन्ध कहा जाता है और पुरुषों को गे नाम से भी पुकारा जाता है।

वास्तव में किसी भी प्राणी में दैहिक, दैविक और/या मानसिक तथा भौतिक स्तर पर आवश्यकतानुसार पारस्परिक आकर्षण, विकर्षण या तटस्थता की स्थिति पायी जाती है, जिसका मूल कारण प्राकृतिक प्रेम या आकर्षण है, जो वैयक्तिक भिन्नताओं के कारण एक जैसा दिखायी देता है।

वैयक्तिक भिन्नता (Individual Differences) के सम्बन्ध में उल्लेखनीय है कि "अपने वातावरण में समायोजनात्मक व्यवहार के क्रम में किसी प्राणी या प्राणी समूह द्वारा अपने और अपने वातावरण से सम्बन्धित व्यक्ति, प्राणी, वस्तु या परिस्थिति के सन्दर्भ में विकसित लिखित या अलिखित आचार संहिता के निर्धारण और / या अनुशीलन से सामाजिक-सांस्कृतिक परम्परा और / या पूर्व मान्यता आधारित धर्म; आनुवंशिक गुणों के कारण लिंग, वर्ण / रंग एवं अन्य जन्म-जात मनोशारीरिक गुणों तथा जन्म के पश्चात् प्राणी की अनुभूति, व्यवहार और समायोजन प्रक्रिया के क्रम में वर्ग, क्षेत्र एवं भाषा सम्बन्धी भेद उत्पन्न होता है, जो वैयक्तिक भिन्नता का कारक और अपेक्षाकृत स्थायी प्रकृति का होता है।"

यही कारण है कि मानवों में पशुओं की तरह न केवल "आहार, निद्रा, भय मैथुनश्च" आधारित ही सम्बन्ध ही नहीं रहे, बल्कि उनके वैयक्तिक भिन्नता से उत्पन्न विभिन्न सोच और आवश्यकता के आलोक में अनेक सम्बन्धों की अवधारणा बनी और उन्हें एक दूसरे के द्वारा या सामाजिक सांस्कृतिक स्तर पर स्वीकृति या अस्वीकृति के योग्य समझा गया और/या उनमें परिवर्तन की सम्भावनाओं की गुंजाइश रखी गई।

यही कारण है कि मानव में नर-नारियों के बीच पारिस्परिक गुणवत्ता की ग्रहणशीलता को ध्यान में रखते हुए उनमें परस्पर रक्त सम्बन्ध स्थापित करने की स्थिति पैदा हुई और/या उन्हें उनके परिवार, समाज या नियन्ता द्वारा ऐसा करने हेतु बाध्य किया गया और /या उन्हें ऐसा करने या ऐसे सन्दर्भों में निर्णय लेने की छूट दी गई फलस्वरूप नर के बीज अर्थात् वीर्य (Seman) एवं नारी के क्षेत्र अर्थात् अण्ड (Ovum) से सन्तानोत्पत्ति (नर और/या नारी) का जन्म संभव हुआ।

सन्तानोत्पत्ति हेतु नर-नारी के पारस्परिक मनोशारीरिक सम्बन्ध की अनिवार्यता टेस्ट ट्यूब बेबी के जन्म की अवधारणा एवं स्थिति के पूर्व के समय में तथा आज के समय में भी माना जाता है और यह स्थिति आवश्यकता, प्रयोग, आकर्षण, प्रेम और/या विवाह किसी भी स्थिति में संभव हो पाता है, परन्तु इन सम्बन्धों का स्थायीकरण हेतु विवाह की संकल्पना की गई है। अतः विवाह को एक संस्था के रूप में स्वीकार किया गया है जिससे परिवार एवं समाज के प्रादुर्भाव और/या विकास की सम्भावना को बल मिलता है या बढ़ती है।

 The Psychology of sex (यौन मनोविज्ञान) मूल लेखक :- हैवलॉक एलिस (1938), अनुवादक :- मन्मथ नाथ गुप्त (2008), राजपाल एण्ड सन्स (प्रकाशन) ने कहा कि " विवाह को कानून अथवा धर्म की स्वीकृति मिली हो या न मिली हो,फिर भी विवाह जीववैज्ञानिक अर्थ में कुछ हद तक सामाजिक अर्थ में एक स्थायी यौन संबंध है । " :-  

"समलैंगिकता के ज्योतिषीय आधार" की व्याख्या के सन्दर्भ में "समलैंगिकता और ज्योतिष" दोनों की सम्यक् परिभाषा की ओर हमारा ध्यान स्वाभाविक रूप से चला जाता है, क्योंकि यदि हमें किसी पद (Term) अर्थात् शब्द या शब्द-समूह की सम्यक् परिभाषा का बोध नहीं है तो हम उस पद अर्थात् शब्द या शब्द समूह के साथ न्याय नहीं कर पाते हैं, फलस्वरूप हमारा बोध अवास्तविक, अतार्किक, अवैज्ञानिक, पक्षपात और/या पूर्वाग्रह से किसी न किसी रूप से प्रभावित हो सकता है। अतः इस सन्दर्भ में पद (Term) की सम्यक् एवं सारगर्भित परिभाषा मेरी दृष्टि में अधोलिखित है:-

"The reprsentation of proper, enough & equal denotation and connotation of any term is the perfect marrow definition of that term."

अर्थात्

"किसी पद के उचित (सम्यक्), पर्याप्त तथा समतुल्य वस्तुवाचकता एवं गुणवाचकता का प्रस्तुतिकरण उस पद की सम्यक् ( वास्तविक और पूर्ण ) सारगर्भित परिभाषा है।"

इसी तरह ज्योतिष (Astrology) , समलैंगिकता (Homosexuality) तथा मनोविज्ञान (Psychology) एवं अन्य विषयों से सम्बंधित पदों (Terms) को परिभाषित करने का प्रयास किया है

मेरी दृष्टि में "Astrology is an ideal positive science of experience, behavior & adjustment process of an organism in their own environment in relation with various visible or non-visible stars, planets, elements & para-psychological effects or their inter-actions or power of the universe."
अर्थात्

"ज्योतिष विभिन्न दृश्यमान या गैर-दृश्यमान सितारों, ग्रहों, तत्वों और पैरा-मनोवैज्ञानिक प्रभावों या उनके अंतर-क्रियाओं या ब्रह्मांड की शक्ति के संबंध में अपने पर्यावरण में एक जीव की अनुभव, व्यवहार और समायोजन प्रक्रिया का एक आदर्श सकारात्मक विज्ञान है।"

इसी तरह समलैंगिकता के सम्बन्ध  दृष्टि में

समलैंगिकता किन्हीं दो पुरुषों ( गे ) या दो स्त्रियों ( लेसबियन ) के मध्य मनो-शारीरिक यौन सन्तुष्टि दायक सामयिक या स्थायी स्तर पर रोमांटिक या वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करने हेतु अपेक्षाकृत प्राकृतिक आकर्षण या सम्बन्ध है।

Homosexuality is a relatively natural affinity or relationship to a romantic or marital relationship at the occasional or permanent level of psychic sexual satisfaction between any two men (gay) or two women (Lesbian).

Or

समलैंगिकता किन्हीं दो पुरुषों ( गे ) या दो स्त्रियों ( लेसबियन ) के मध्य मनो-शारीरिक यौन सन्तुष्टि दायक सामयिक (कभी-कभी / कुछ समय के लिए) या स्थायी स्तर पर रोमांटिक या वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करने हेतु अपेक्षाकृत प्राकृतिक आकर्षण या सम्बन्ध है।

Homosexuality is a relatively natural affinity or relationship to occasional (sometimes / for some time) or romantic or marital relationship at a permanent level between psychological or sexual intercourse between two men (gay) or two women (Lesbian).


आचार्य कमल नन्दलाल के अनुसार " नेचर ने औरत-आदमी को एक-दूसरे का पूरक बनाया है। सनातन धर्म में इसे प्रकृति-पौरुष का मेल कहा गया है। इसी तरह दूसरे धर्मो में इन्हे आदम-हव्वा या एडम-ईव के नाम से संबोधित किया जाता है। दोनों स्वतंत्र पहचान के मालिक तो हैं ही लेकिन ये दोनों कुछ इस तरह से साथ जुड़े हुए हैं कि इन्हें संपूर्णता एक-दूसरे के साथ ही मिलती है। औरत आदमी का संबंध सामाजिक व पारिवारिक पहलू से भी बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि ये परिवार को आगे बढ़ाने के लिए जरूरी है। किसी भी व्यक्ति की यौन पसंद अर्थात एक दूसरे के प्रति काम इच्छा स्वाभाविक है परंतु जब कभी औरत की काम इच्छा दूसरी औरत के प्रति हो और आदमी की काम इच्छा दूसरे आदमी के प्रति हो तो यह स्थिति असमंजसकारी हो जाती है। ऐसे में अगर रिश्ते बन जाएं तो इसे समलैंगिकता कहा जाता है। पुरुष समलिंगी को "गे" व महिला समलिंगी को "लैस्बियन" कहते हैं। इस लेख के माध्यम से हम अपने पाठकों को ज्योतिष के माध्यम से बताते हैंं होमो सेक्सुअलिटी का एस्ट्रो कनैक्शन।

होमो सेक्सुअलिटी अर्थात समलैंगिकता एक मनोविकार है। वैज्ञानिक दृष्टि से समलैंगिकता के कारण आनुवंशिकी व जन्म से पूर्व गर्भ में हार्मोन की गड़बड़ी माने जाते हैं। समलैंगिकता केवल मनुष्यों में ही नहीं बल्कि कई जानवरों में भी पाई जाती है। साइकोलॉजीकली अगर स्त्री या पुरुषों को सही दिशा में प्रेम नहीं मिलता है तो वे प्रेम के गलत रास्ते खोज लेते हैं। एक मनोवैज्ञानिक सत्य यह है कि पुरुष या स्त्रियों को एक-दूसरे से प्रेम नहीं मिलता है तो वे संभोग को ही प्रेम समझ लेते हैं। 
 
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार होमो सेक्सुअलिटी प्रारब्ध व संचित कर्मो का फल ही है अर्थात समलैंगिकता पूर्व जन्म में किए गए कर्मों का फल हैं। जिनके पूर्वज या वे खुद पूर्व जन्म में यौन मतवालेपन में लिप्त रहे या ताकत का लाभ लेते हुए दास-दासियों से अप्राकृतिक यौनाचार करते रहे या कई पार्टनर रखने वाले हुए तो अगली पीढि़यों में ऐसे रुझान दिखते हैं। इस तरह इन लोगों के रिश्तेदार भावनात्मक, मानसिक और शारीरिक रूप से पीड़ित होते हुए यह कर्ज उतारते हैं।
 
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार होमो सेक्सुअलिटी का कारण कुंडली में शुक्र का नकारात्मक प्रभाव, सप्तम, अष्टम, द्वादश और पंचम भाव के स्वामी तथा सूर्य के अलावा बुध, शनि और केतु की स्थिति भी है। कुंडली का पंचवा भाव आदत, प्रकृति व रिश्तों का प्रतीक है अतः समलैंगिकता की शुरुआत इसी भाव से होती है। अष्टम और द्वादश भाव यह बताता है कि जातक की यौन आदतें कैसी होंगी। वैदिक ज्योतिष में सभी नौ ग्रहों को प्रवृति के हिसाब से तीन लिंगों में बांटकर देखा जाता है। इनमें सूर्य, बृहस्पति व मंगल को पुरुष माना जाता है। चंद्र, शुक्र व राहू को स्त्री ग्रह माना जाता है और बुध, शनि और केतु को तीसरा लिंग यानी नपुंसक माना जाता है। इसके पीछे तर्क यह है कि बुध को बाल गृह कहा जाता है और बच्चे संभोग के योग्य नहीं होते, इस तरह शनि प्रौड़ होने के नाते उन्हें संभोग व प्रजनन के विपरीत माना जाता है। केतु को संन्यासी ग्रह का दर्जा दिया जाता है अतः वह भोग से दूर मोक्ष प्रदान करते हैं। इन ग्रहों के बलवान और विपरीत प्रभाव कुंडली में इस तरह देखे गए हैं।
 
वैदिक ज्योतिष अनुसार समलैंगिक लोगों की कुंडली में बुध ग्रह की बड़ी भूमिका देखी जाती है। साथ ही उन पर शनि और केतु का भी प्रभाव होता है इसलिए यह देखा जाता है कि जो लोग विभिन्न कलाओं और विज्ञान में निपुण होते हैं और अपने क्षेत्र में अच्छी पकड़ रखते हैं, उनमें ऐसी प्रवृति पाई जाती है, इसके अलावा अकेले शनि से प्रभावित लोग दरिद्र अवस्था में रहते हैं और उनकी नपुंसकता के चलते समाज में दुत्कारे जाते हैं। अगर केतु अधिक प्रभावशाली होता है तो जातक को मानसिक रूप से सामान्य यौन जीवन से अलग कर देता है। अत्याधिक बुरे प्रभाव में जातक को पागल माना जाता है नहीं तो वह साधु या साध्वी बनकर जीवन गुजारता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार जब व्यक्ति की कुंडली में शुक्र ग्रह कन्या राशि का हो तथा शनि और मंगल सातवें घर में हों तो जातक में समलैंगिकता का रुझान देखने को मिल जाता है। इसके अलवा 27 नक्षत्रों में मृगशिरा, मूल व शतभिषा को समलैंगिकता से जोड़ कर देखा जाता है।
 
जैमिनी ज्योतिष सिद्धांतानुसार इन सभी ग्रहों की अवस्था में व्यक्ति समलैंगिक संबंधों में पड़ता है। कुंडली में शनि-शुक्र एक दूसरे से 2-12 हों। षष्ठेश बुध राहू संग युत होकर लग्न से संबंध बनाए या चंद्र सम राशि में व बुध विषम राशि में हो व दोनों पर मंगल की दृष्टि पड़े। लग्न सम राशि का हो व चंद्र विषम राशि के नवांश में हो व उस पर मंगल की दृष्टि पड़े। अगर लग्न व चंद्र दोनों विषम राशि में हो व सूर्य से दृष्ट हो। शुक्र व शनि दसवें या आठवें भाव में हों, एक साथ युत हों या नीच राशि में हों, या नीच राशि शनि छठे भाव में स्थित हो। कुंडली में शुक्र वक्री ग्रह की राशि में हो व लग्नेश स्वराशि में हो व सप्तम भाव में शुक्र होने पर। या चंद्र शनि की युति हो व मंगल चौथे या दसवें भाव में होने पर ऐसे योग बनते हैं। ज्योतिष की दृष्टि से समलैंगिकता का निवारण लग्नेश, पंचमेश सप्तमेश, अष्टमेश, द्वादशेश को ठीक करके या उपाय करके किया जा सकता है। इसमें लाल किताब के उपाय, रुद्राक्ष व जेमस्टोन व मंत्र अनुष्ठान की साहयता ली जाती है।
 
नोट: यह लेख परिकल्पित स्थिति को देखकर लिखा गया है। होमो सेक्सुअलिटी एक मनोविकार तथा साइकिक रोग है तथा इसका उपचार साइकेट्री, मानसशास्र व ज्योतिषशास्त्र के माध्यम से संभव है।  
 
आचार्य कमल नंदलाल
ईमेल: kamal.nandlal@gmail.com"

इस प्रकार आचार्य कमल नन्द लाल जी ने समलैंगिकता को यद्यपि प्राकृतिक बताया लेकिन उन्होंने पारिवारिक एवं सामाजिक-सांस्कृतिक तथा ऐसे ही अन्य क्षेत्रों में मानव के सम्यक् एवं सर्वांगीण विकास के दृष्टिकोण से नर-नारी के पारस्परिक रक्त सम्बन्ध या वैवाहिक सम्बन्ध को ही विशेष महत्वपूर्ण माना।

मैंने विगत ४० वर्षों में पाया कि संसार की समस्त घटनाओं के मूल में ज्योतिषीय प्रभाव का योगदान रहता ही है, चाहें वे प्राकृतिक हों, बनस्पति से सम्बंधित हों या किसी जीव विशेष से सम्बन्धित हों।

समलैंगिकता से सम्बंधित ज्योतिषीय योगो की प्रबलता अधिक रहने पर तथा वैसे सामाजिक-सांस्कृतिक आदर्श या परिस्थितियाँ जो उन समलैंगिक जोड़ों या भावी समलैंगिकता से प्रभावित जोड़ों हेतु आपसी सम्बन्ध बनाने के दृष्टिकोण से बाधक नहीं हों ऐसी परिस्थिति में समलैंगिक सम्बन्ध आपस में सामाजिक-सांस्कृतिक मान्यता भी प्राप्त कर लेती है और उन समलैंगिक नरों या नारियों को विवाहित जोड़ों के रूप में रहने या विवाह कर लेने की वैधानिक सामाजिक-सांस्कृतिक स्वीकृति भी प्राप्त हो जाती है।
समलैंगिक योग कारक स्थिति में पुरुष ग्रह सूर्य, मंगल और गुरु यदि सप्तमेश होकर

समलैंगिकता के सन्दर्भ में एक अन्य लेख में कहा गया है कि

"" क्या वाकई भारतीय संस्कृति में समलैंगिकता की जगह रही है. ये एक बड़ा सवाल है. वैसे ये बात सच है कि दुनियाभर में तमाम धर्मों और समाज में इसके बारे में विचार नकारात्मक ही रहे हैं. अगर भारतीय समाज के नजरिए की बात करें तो ये पुख्ता तौर पर निगेटिव रहा है. हालांकि इसके पीछे बहुत तार्किक और वैज्ञानिक आधार नहीं दिए गए.

दुनिया की ज्यादातर संस्कृतियों में रही है समलैंगिकता

इतिहास की बात करें तो दुनिया की ज्यादातर संस्कृतियों में समलैंगिकता मौजूद रही है. भारतीय संस्कृति में भी ये कुछ हद तक रही है. प्रसिद्ध मानवशास्त्री मार्गरेट मीड के अनुसार आदिम समाजों में समलैंगिकता प्रचलन में थी. रोमन सभ्यता में भी इसे बुरा नहीं माना गया, वहीं प्राचीन यूनान में तो इसे मान्यता ही मिली हुई थी. मानवीय सभ्यता के शुरुआती दौर में समलैंगिकता न कोई अप्राकृतिक काम था न ही कोई अपराध.

जो अप्राकृतिक दिखता है वो प्राकृतिक है

ऋग्वेद की एक ऋचा के अनुसार ‘विकृतिः एव प्रकृतिः’, यानी जो अप्राकृतिक दीखता है वह भी प्राकृतिक है. अक्सर समलैंगिकता की पैरवी करने वाली इस बात को सामने भी रखते हैं. उनके अनुसार ‘विकृतिः एव प्रकृतिः का मतलब ही है कि प्राचीन भारत समलैंगिकता के प्रति सहिष्णु रहा है.

है समलैंगिकता और किन्नरों का उल्लेख

रामायण, महाभारत से लेकर विशाखदत्त के मुद्राराक्षस, वात्स्यायन के कामसूत्र तक में समलैंगिकता और किन्नरों का उल्लेख है. हालांकि इन्हें सहज सम्मान की दृष्टि से तो नहीं देखा जाता था लेकिन कहीं इनके अतिशय अपमान का भी उल्लेख नहीं मिलता है.

क्या है बराहमिहिर के ग्रंथ वृहत जातक में

बारहवीं सदी में बराहमिहिर ने अपने ग्रंथ वृहत जातक में कहा था कि समलैंगिकता पैदाइशी होती है. इस आदत को बदला नहीं जा सकता है. आधुनिक वैज्ञानिक शोधों से भी यह बात साबित हो चुकी है कि समलैंगिकता अचानक पैदा हुई आदत या विकृति नहीं है, बल्कि यह पैदाइशी होती है.

वात्सायन ने कामसूत्र में किया है उल्लेख

गुप्त काल में वात्स्यायन ने जब कामसूत्र की रचना की तो उन्होंने साफ लिखा कि किस तरह से उनके मालिक, सेठ और ताकतवर लोग नौकरों, मालिश करने वाले नाइयों के साथ शारीरिक संबंध बना लेते थे. वैसे मध्य काल और उसके बाद भारत में तमाम राजवंशों में इससे जुड़े किस्से खूब प्रचलन में रहे हैं.

जब विष्णु मोहिनी बनकर शिव को रिझाते हैं

भारतीय संस्कृति में ही महादेव शिव का एक रूप अर्धनारीश्वर वाला भी है. मिथकीय आख्यान कहते हैं कि एक बार विष्णु मोहिनी स्त्री रूप धारण कर शिव को रिझाते हैं. इससे उन्हें पुत्र अयप्पा की प्राप्ति होती है. महाभारत में अर्जुन की मर्द से बृहन्नला बन जाते हैं. भगीरथ की दो रानियों के संबंध से उत्पन्न हुए पुत्र की कहानी भी पौराणिक कहानियों में सुनी कही जाती रही है.

राजा इल स्त्री बन गए और पुत्र को जन्म भी दिया

पुराणों में राजा इल के स्त्री रूप में ऋषि बुध के रीझने और उससे एक पुत्र प्राप्ति की कहानी भी है. पुराणों में बुध के विवाह के विषय में इसका रोचक तरीके से वर्णन किया गया है.

कथा के अनुसार राजा इल एक बार शिकार खेलने वन में गये. अनजाने में ही वह अम्बिका नामक वन में पहुंच गये. अम्बिका वन भगवान शिव द्वारा शापित था. एक बार शिव और पार्वती इस वन में विहार कर रहे थे. उसी समय ऋषियों का एक समूह वन में आ पहुंचा. इससे पार्वती शरमा गईं. शिव जी को ये अच्छा नहीं लगा और उन्होंने शाप दे दिया कि शिव परिवार के अलावा अम्बिका वन में जो भी प्रवेश करेगा वह स्त्री बन जाएगा.

शिव के शाप के स्त्री बने और बुध मोहित हो गए

भगवान शिव के शाप के कारण राज इल स्त्री बन गए. अपने बदले रूप को देखकर इल बहुत दुःखी हुए. वन से बाहर निकलने पर उनकी मुलाकात बुध से ई. ऋषि बुध राज इल के स्त्री रूप पर मोहित हो गए. इल ने अपना नाम ईला रख लिया. बुध से विवाह कर लिया. ईला और बुध से पुरूररवा का जन्म हुआ. पुराणों में बताया गया है कि पुरूरवा बड़े होकर राजा बने, इनकी राजधानी गंगा तट स्थित प्रयाग थी.

बेटे ने फिर वापस पुरुष रूप दिलाया

राजा पुरूररवा को एक दिन माता ईला ने दुःखी होकर अपने स्त्री बनने की कथा बतायी. इसके बाद पुरूरवा ने निश्चय किया कि वह अपनी माता को वास्तविक रूप में लाने की कोशिश करेंगे. इसके लिए पुरूरवा ने गौतमीगंगा यानी गोदावरी तट पर शिव की उपासना की. पुरूरवा की उपासना से प्रसन्न होकर शिव और पार्वती प्रकट हुए. वरदान मांगने के लिए कहा.

पुरूरवा ने शिव से कहा कि उनकी माता ईला पुनः राजा इल बन जाए. इस पर भगवान शिव ने वरदान दिया कि गौतमी गंगा में स्नान करने से ईला फिर इल बन जाएगी. ईला ने गौतमी गंगा में स्नान किया और पुनः राजा इल बन गयी.

वैदिक शास्त्रों में हुआ है समलैंगिकता का जिक्र

अमरा दास विल्हम की किताब तृतीय प्रकृति - पीपुल ऑफ थर्ड सेक्स कई सालों के गहन शोध के बाद लिखी गई. इसमें उन्होंने संस्कृत में लिखे उन ग्रंथों का गहन अध्ययन किया जो प्राचीन और मध्य भारत में लिखे गए. उन्होंने ये साबित किया कि समलैंगिकता की प्रवृत्ति भारतीय समाज में भी हमेशा से रही लेकिन उन्हें बहुत कम स्वीकार किया गया.

दूसरी सदी में लिखे गए भारतीय ग्रंथ "कामसूत्र" के "पुरुषायिता" अध्याय में किताब एक ऐसी समलैंगिक स्त्रियों का जिक्र करती है, जिन्हें स्वर्णिनिस कहा जाता था. ये महिलाएं अक्सर दूसरी स्त्रियों से शादी कर लेती थीं और बच्चा पालती थीं.

खजुराहों की दीवारों पर भी चित्रण 

अगर खजुराहों के मंदिरों की दीवारों पर बनी तमाम मुद्राओं की मूर्तियों को देखेंगे तो उसमें समलैंगिक पुरुषों और महिलाओं का चित्रण भी खूब हुआ. वो उसी भाव में नजर आते हैं. माना जाता है कि ये मंदिर 12वीं शताब्दी में बनाए गए थे."

अतः कहा जा सकता है कि समान लिंग वाले अर्थात् किन्हीं दो पुरुषों में या किन्हीं दो स्त्रियों के मध्य उत्पन्न हुई समलैंगिकता (Homosexuality) या किसी व्यक्ति विशेष द्वारा लैंगिक सम्बन्ध स्थापित करने हेतु नर/मादा साथी के अभाव में हस्तमैथुन (Masturbation) का आधार न केवल लैंगिक विकृति या परिस्थिति जन्य मानसिक सोच है, बल्कि यह उनके जन्म जात गुणधर्मों का प्रभाव भी है, जिसे सामाजिक-सांस्कृतिक आदर्शों के आलोक में प्रतिबंधित कर और/या जिनसे प्रभावित व्यक्तियों की मनोशारीरिक चिकित्सा कर विषमलैंगिक आदर्शों की सुरक्षा की जा सकती है।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार उर्फ अवधेश कुमार शैलज, 

( मनोविज्ञान, होमियोपैथ ), पचम्बा, बेगूसराय।

Research Scholar : Study of attitude towards family, sex and self-concept of P. G. students. ( L. N. M. University, Darbhanga )

शोध निर्देशक : Dr. S. C. Sharma ( Retired Prof. P. G. Department of psychology, G. D. College, Begusarai. )


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प्रो। अवधेश कुमार शैलाज, पचम्बा,
बेगूसराय।

अवधेश कुमार पर 3:16 बजे

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