शनिवार, 9 अक्तूबर 2021

अप्पन दही सबके मीठे लगै छै

लोक प्रचलित कहावत है "अप्पन दही सबके मीठे लगै छै " लेकिन वास्तव में हिन्दी मेरे समझ से संसार में बोली जाने वाली और/या उपयोग / प्रयोग में लायी जाने वाली संभवतः प्रथम भाषा और /या बोली है, जिसका मूल रूप "खड़ी बोली" है, जिसका प्रकृतिक स्वरूप प्राकृत भाषा और/या बोली है एवं जिसका संस्कारयुत मूल रूप "देव भाषा" "संस्कृत" है। बच्चा जन्म के समय "ऐं" उच्चारण करते  हुए इस धरा पर अवतरित होता है, जिसे संस्कृत में "सरस्वती बीज" कहा जाता है।
"दुर्गा सप्तशती" में "सिद्ध कुञ्जिका स्तोत्र" में भगवान् शिव कहते हैं " ऐंकारी सृष्टि रूपायै..." अर्थात् माँ दुर्गा ऐंकारी हैं /माँ दुर्गा सृष्टि करनेवाली हैं।" अतः वे सभी लोग जो इस संसार में जन्म लेने के समय बोलते हैं या रोते हैं या दु:ख में रोते हैं या दु:ख का अभिनय करते हैं, उन समस्त स्थितियों में रोने की उनकी भाषा "ऐं" ही होती है, जो हिन्दी भाषा परिवार से सम्बन्धित संस्कारयुत देव भाषा संस्कृत भाषा की बोली होती है। वास्तव में हिन्दी भाषा परिवार की सभी बोलियाँ, खड़ी बोली, प्राकृत एवं संस्कृत में परस्पर अभिन्न सम्बन्ध है।
अतः हमें अपनी सनातन संस्कृति, बोली एवं भाषा पर गर्व करना चाहिए और विश्व के सभी भाषा एवं संस्कृति का आदर करना चाहिए, क्योंकि हम सभी एक ही परमात्मा की संतान हैं, भले ही हमारा रहन-सहन, मनोशारीरिक स्थिति, भाषा-लिपि एवं रीति-रिवाज अलग-अलग रहा हो।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय।
 
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