शुक्रवार, 27 दिसंबर 2019

केशव ने समझाया

अभिनन्दन करने को प्रकृति उषा संग में आई।
धूप, दीप,नैवेद्य,आरती से हुई रव की अगुआई।।
कुसुमाकर अनंग रति संग मलय ने रास रचाई।
जाड़ा, गर्मी, वर्षा, बसन्त ने मंगल गान सुनाई।।
रजनीचर छिप गए, सभी ने नकली रूप बनाई।
हरित धरा को शवनम ने मोती माणिक पहनाई।।
नील गगन में निशा अंक में जुगनू तारक अठखेली।
सचिव चाँद रानी सूरज मन स्व अनुगामी अलवेली।।
दिवा रात्रि का मिलन महोत्सव असुरों को नहीं भाया।
भगवा रंग में रंगा अरुण रथ सुर पर आरोप लगाया।।
राहु केतु द्वारा, अमृत हित जिसको था उसकाया।।
सूर्य चन्द्र को ग्रहण लगाकर रंग में भंग कराया।।
घनश्याम घटा का रूप बना, भरमाया और डराया।
मन मयूर तब भी शैलज का अपना रंग दिखाया।।
शत्रु दलन करने को रक्षक, सत्ता ने मूड बनाया।
प्रजावर्ग हित भक्षक को उसका औकात बताया।।
फैला सद्यः प्रकाश जगत में,अज्ञान तिमिर सब भागा।
तेज पुञ्ज दिनकर का लख कर राष्ट्रवाद् शुभ जागा।।
टुकड़े-टुकड़े बादल छँट गये सभी उपद्रव कारी।
रवि का अनुशासन आदेश हुआ जगत में जारी।।
प्रकृति नटी ने भा-रत जग में अदभुत रास रचाया।
हरित धरा, चक्र सुदर्शन, भगवा नभ में फहराया।।
मध्यम मार्ग, वाहेगुरु,आयत अव्यक्त का, प्रेयर गौड को भाया।
सचराचर व्याप्त सगुणागुण प्रभु को संस्कृत वेद ध्वनि भाया।।
गीता, वेद,पुराण, कुरान, वाईविल, कण-कण में निज को दर्शाया।
"कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन:" केशव ने समझाया।।

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