रविवार, 15 नवंबर 2020

शैलज दोहावली : भाग-३ (दोहा संख्या ९७ से १४४ तक।)

शैलज भेंटें प्रेम जो, मत मन राखूँ गोय।
अनुपयोगी कूप जल, ज्यों विषाक्त ही होय।।९७।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज,
(कवि जी),
पचम्बा, बेगूसराय, बिहार, भारत।

शैलज हो गया सिरफिरा,
तन मन पड़ा बीमार।
सत्यासत्य उचितानुचित, 
बिन समझे करे वार।।९८।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज,
(कवि जी),
पचम्बा, बेगूसराय, बिहार, भारत।

शैलज डूबा स्वार्थ में,
करता अवसर उपयोग।
विद्या शील स्नेह रहित;
पथ-दर्शक कहते लोग।।९९।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज,
(कवि जी),
पचम्बा, बेगूसराय, बिहार, भारत।

शैलज कुछ एक वोट से, 
गया चुनाव में हार।
अपने हार पहन लिया, 
क्यों पूछे जन संसार ?।।१००।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज,
(कवि जी),
पचम्बा, बेगूसराय, बिहार, भारत।

शैलज दुनिया से सीख कर, 
करता हर व्यवहार।
निज प्रकृति अनुरूप ही, 
फल पाता कर्म अनुसार।।१०१।।

शैलज दुनिया को देखकर, 
मत करिये हर व्यवहार।
पग रखिये पथ को देखकर, 
उत्तम अनुभूत विचार।।१०२।।

शैलज दुनिया में जो मिला, 
सब कुछ है उपहार।
प्राणी धर्म विवेक बिन, 
है मानव जीवन बेकार।।१०३।।

शैलज दुनिया के लिए, 
करता रचनात्मक काज।
आवागमन प्रकृति पुरुष, 
समझे मनुज समाज।।१०४।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज,
(कवि जी),
पचम्बा, बेगूसराय, बिहार, भारत।

रवि ज्वाला लपटों का रूप लिये,
संक्रमण जनित ज्वर ताप प्रिये।
सूखी खाँसी हो श्वास विकल,
शैलज कोरोना उपचार प्रिये।।१०५।।

हों लवण दोष या लौह जनित,
करें होमियो बायो उपचार प्रिये।
जी लाल शुष्क, गुड़ गर्मी प्रेमी,
शैलज मैग फॉस आधार प्रिये।।१०६।।

है मजबूरी प्रिये, तन की दूरी;
पर, मन से हो तुम पास प्रिये।
तुलसी हरती हैं त्रिविध ताप;
आयुष है शैलज साथ प्रिये।।१०७।।

ग्रह नव रवि या कोई भी हों,
सब होंगे सदा सहाय प्रिये।
रवि पुष्प मदार हृदय राखे,
शैलज सौभाग्य विचार प्रिये।।१०८।।

कफ काम, पित्त है क्रोध मूल,
है वात लोभ के पास प्रिये।
ये रोग नरक दुख कारक हैं,
शैलज त्रिगुण विचार प्रिये।।१०९।।

क्षिति, जल, पावक, गगन संग,
पवन प्राण निवास प्रिये।
शैलज सुमिरि प्रकृति प्रभु,
करता जग में है वास प्रिये।।११०।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज,
(कवि, मनोवैज्ञानिक, ज्योतिषी, होमियोपैथ)
पचम्बा, बेगूसराय, बिहार, भारत।

कोरोना और चुनाव में,
शैलज नेता मेल।
आँख मिचौली खेल में,
जनता मूरख भेल।।१११।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज,
पचम्बा, बेगूसराय।

 कोरोना और चुनाव में,
आँख मिचौली खेल।
नेता पक्ष विपक्ष में,
शैलज अद्भुत मेल।।११२।।

सूरज सविता दिनपति,
दिनकर दीनानाथ।
भानु भास्कर जगत पति,
रवि रव नाथ अनाथ।।११३।।

स्रष्टा पालक संहर्त्ता,
ब्रह्मा विष्णु महेश।
शैलज छठ माँ पूजिये,
शक्ति सहित दिनेश।।११४।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज,
पचम्बा, बेगूसराय, बिहार, भारत।

शैलज देश विदेश में,
जीव अजायबघर एक।
मानव प्रकृति में ही मिला,
स्वारथ बहस विवेक।।११५।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज,
(कवि जी),
पचम्बा, बेगूसराय,बिहार, भारत।

शैलज सच को सच कहा,
रूठ गये सब लोग।
जब सच से पाला पड़ा,
कह रहे उसे संयोग।।११६।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज,
पचम्बा, बेगूसराय।

शैलज मीत सराहिये, सुमति सुकाज सहाय।
सोच हिताहित आपसी, हिय मन जेहिं समाय।।११७।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज,
पचम्बा, बेगूसराय।

शैलज नेता बन गया, सबकी चिन्ता छोड़।
चिन्ता में सिर तब फिरा, दिया सबों ने छोड़।।११८।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज,
पचम्बा, बेगूसराय।

 शैलज नारद रवि कृपा, निशिचर हुए उदास।
तारे संग सिमटी निशा, काम रति हुए दास।।११९।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय।

शशि रवि सहधर्मिणी, करत प्रकाश दिन रात।
शैलज राजाज्ञा शुभद, अवकाश अमावस रात।।१२०।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा,बेगूसराय।

 सचिव शशि अध्यक्ष रवि, उडुगण शेष समाज।
शैलज रवि शशि के बिना, तिमिर अमावस राज।।१२१।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा,बेगूसराय। 

 जलद श्याम घन मोर मन, चन्द्र चकोर स्नेह।
शैलज श्रम बिनु राज श्री, भक्ति बिना प्रभु नेह ? ।।१२२।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय।

 जलद श्याम घन मोर मन, चन्द्र चकोर स्नेह।
शैलज श्रम जग राज श्री, भक्ति भाव प्रभु नेह।।१२३।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय।

आतम ज्ञान से मन डरे,
सुमन विवेक प्रकाश।
शैलज रजनीचर डरे,
रजनीचर नभ वास।।१२४।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, 
पचम्बा, बेगूसराय।

शैलज मनोकाँक्षा प्रकृति विमुख,
रहित विवेक विचार।
जल द्रव गति मति क्षुद्र नर,
उठत गिरत हर बार।।१२५।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, 
पचम्बा, बेगूसराय।

शैलज स्वार्थी, वाक्पटु; 
भोगी, कुटिल, लवार।
धृत उपदेशक, हठी जन; 
कलिकाल महान्, गवांर।।१२६।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, 
पचम्बा, बेगूसराय।

शैलज बचपन पचपन का,
बारह सात उनीस।
भूले बिसरे गले मिले,
इस जग में सब बीस।।१२७।।

अनठावन की प्रकृति का,
सत्य न प्रेम से मेल।
एक एक कर सबसे मिले
शैलज समाज का खेल।।१२८।।

शैलज सच सच कहे,
सदा झूठ को झूठ।
प्रेमी जन सम्वाद सुन,
जाये दुनिया रूठ।।१२९।।

शैलज जगत अवतरण,
 कृष्ण निशा आकाश।।
रजनीचर भानु बिना,
कबहुँ कि करत प्रकाश ?।।१३०।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, 
पचम्बा, बेगूसराय।

 शैलज जब तक साँस है,
सुख दुःख अहम् त्रिताप।
पिया मिलन को चल पड़े,
जग बन्धन छूटे सन्ताप।।१३१।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, 
पचम्बा, बेगूसराय।


शैलज नर तन पायके, 
भूल गया कर्त्तार।
जग तिलस्म में भटक, 
भूला निज घर द्वार।।१३२।।

डॉ ० प्रो ० अवधेश कुमार शैलज, 
पचम्बा, बेगुसराय।

शैलज नर तन पायके, 
भूल गया कर्त्तार।
फँसा जगत तिलस्म में, 
भूला निज घर द्वार।।१३३।।

डॉ ० प्रो ० अवधेश कुमार शैलज, 
पचम्बा, बेगुसराय।

 
शैलज नर तन पायके, 
भूल गया कर्त्तार।
जग तिलस्म में भटक, 
भूला निज घर द्वार।।१३४।।

डॉ ० प्रो ० अवधेश कुमार शैलज, 
पचम्बा, बेगुसराय

 शैलज ईश्वर को भजे,
आत्मलीन मन लाय।
करे समर्पण स्वयं को, 
केवल एक उपाय।।१३५।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, 
पचम्बा,बेगूसराय।

 शैलज लोक परलोक हित,
प्रभु से करे गुहार।
जीव नारि नर सुगति सत्,
शान्ति प्रेम सुविचार।।१३६।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, 
पचम्बा, बेगूसराय।

शैलज सही लिबास बिनु, 
कैसा चरम विकास ?
करम धरम छूटा शरम, 
नीच मनुज के पास।।१३७।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, 
पचम्बा, बेगूसराय।

शैलज क्रूर कुटिल मति, 
मतलब के सब यार।
दया धर्म गुण रहित नर, 
सज्जन हेतु तुषार।।१३८।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, 
पचम्बा, बेगूसराय।

 शैलज क्रूर कुटिल मति, 
प्रकृति विरुद्ध उपचार।
दया धर्म गुण रहित नर, 
जग वन हेतु तुषार।।१३९।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, 
पचम्बा, बेगूसराय।

शैलज मनुज समाज गति; 
ज्ञान, विवेक, व्यवहार।
देश-काल-पात्र निर्भर मति, 
सच्चिदानंद मूलाधार।।१४०।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, 
पचम्बा, बेगूसराय।

शूल गुलाब, कीचड़ कमल, 
वन उपवन सौंदर्य सुवास।
शैलज समदर्शी सुमन मन, 
प्रमुदित, न करत उदास।।१४१।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज,
पचम्बा, बेगूसराय।

 शैलज जगत असार की,
चिन्ता करम हिसाब।
तू क्या राखे मूढ़ मन ?
प्रभु के पास किताब।।१४२।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, 
पचम्बा, बेगूसराय।

 त्रिविध ताप त्रिदोष कर, 
शैलज नीच विचार।
वेग त्रयोदश रोक कर, 
तन मन करत बीमार।।१४३।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज
(कवि जी),
पचम्बा, बेगूसराय, बिहार। 

 सुन्दर श्री पद ज्ञान गुण, 
व्यवहारिक नर-नारि।
रूप-कुरूप शैलज भजे,
लखि कुल शील विचार।।१४४।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज,
पचम्बा, बेगूसराय।
 





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