मंगलवार, 14 अप्रैल 2020

कोरोना एवं अन्य रोगों की लाक्षणिक होमियोपैथिक एवं बायोकेमिक चिकित्सा:-

1. फेरम फॉस 6x : सर्दी, सूखी खाँसी,किसी तरह का बुखार। फेफड़े का कष्ट। निमोनिया। ब्रौन्काइटिस। प्लूरिसी। इन्फ्लुएंजा। नाक से पानी बहना। किडनी में दर्द। पेशाब कम होना। हृदय रोग। बायें कन्धे का दर्द। सामने का सिर दर्द। गिरने का भय। लाल एवं भींगी जिह्वा। श्वास कष्ट। दायाँ हथेली गर्म। सूखी लाल आँखें। शोथ। रक्ताल्पता। ठंढ़ा पसन्द। पेशाब कम बनना। अनपचे भोजन का दस्त या उल्टी (वमन)। पेट दर्द। भूख का अभाव। गैस की शिकायत।

2. मैगनीशिया फॉस 6x :- सूखी लाल जिह्वा। लेटने से श्वास कष्ट। गर्मी पसन्द। यादाश्त कमजोर। कम्पन। द्विदृष्टि। मीठा या गुड़ पसन्द। तीब्र पेट दर्द। सेंकने और दबाने से आराम। हृदय शूल ( मैगनीशिया फॉस 3x लें )।ठण्डे जल से कष्ट। बच्चों का कब्ज।

3. नेट्रम म्यूर 6x, 30, 200 :- गले में सुरसरी होकर खाँसी,पतली गरदन, पेशाब के बाद कमर दर्द, लोगों के बीच पेशाब करने में रुकावट, कमर के ऊपर पतलापन अधिक, भूखे रहने से आराम, नमकीन पसन्द। ओठ फटे हुए। धूप से कष्ट।रोटी नापसन्द। चावल पसन्द। दोनों कनपट्टी में या सिर के पीछे में दर्द। जिह्वा पर जल के बुलबुले एवं केश का अनुभव। छींक के साथ नाक बहना । इस अवस्था में नेट्रम म्यूर 30 का केवल एक बार ही प्रयोग काफी है। नेट्रम म्यूर का असर एक माह तक रहता है।

4. कैली फॉस 6x: भय। भ्रम। चिन्ता। भूलना। मस्तिष्क ज्वर। धड़कन। रक्तचाप। डायबिटीज। छींक। दायीं ओर का सिर दर्द बायीं ओर चला जाना। रोग लक्षणॊं का दो पहर 2 बजे से सायं 5 बजे तक रहना। किसी काम व्यस्त रहने पर कष्ट का अनुभव नहीं होना। भोजन करने से आराम होना। धीमी गति पसन्द। दर्द विहीन चावल के धोवन सा दस्त। आग, भूत, गिरने, उड़ने एवं पर्वत का स्वप्न। बैठने से आराम।

5. कैल्कैरिया फॉस 6x : वर्फ गलने के समय या मौसम परिवर्तन से कष्ट। गले का कष्ट। थूक घोंटना कठिन। टाउन्सिल की शिकायत। बुखार या किसी भी बीमारी के बाद की कमजोरी। आवाज के साथ या दुर्गन्ध युक्त पाखाना। दूध से अधिक दूध से बनी वस्तु के सेवन से लाभ। घर से बाहर गये घर के सदस्यों की चिन्ता। अपने स्वास्थ्य की चिन्ता। दाँतों में खोंढ़र। ठण्डा एवं गर्म दोनों तरह के जल से कष्ट या आराम। हड्डियों का मुड़ना। हड्डी टूटने वाली या कमजोर।

6. नेट्रम फॉस 6x :- झागदार पेशाब, पाखाना या अन्य श्राव। पीलापन युक्त क्रीम की परत वाली जिह्वा। जिह्वा के किनारे में दाँत का दाग। अल्प पाखाना। नाक के अन्दर में नोचना या खुजलाहट।
खर्राटा लेना। कृमि की शिकायत। पानी सा पतला वीर्यश्राव। स्त्री एवं पुरुषों में नपुंसकता। कभी हृदय तो कभी पैर के अंगूठे में दर्द।  कामात्मक स्वप्न। सर्प या मृतकों का स्वप्न।

7. आर्सेनिक एल्बम 30 : जब रोगी कहता हो कि " चिकित्सा से कुछ न होगा, मृत्यु ही होगी।" तो आर्सेनिक एल्बम 30 देते ही रोगी का भय और भ्रम समाप्त हो जायेगा तथा उसकी जीवनी शक्ति प्रबल हो जायेगी जिससे वह किसी भी तरह के मानसिक या शारीरिक रोगों से सहज ही मुक्त हो जायेगा।

नोट :- 1. ज्ञातव्य है कि किसी भी चिकित्सा पद्धति से उपचार करने हेतु उस चिकित्सा पद्धति के नियमों एवं शर्तों को जानना और उनका अनुपालन करते हुए उनका उपयोग करना समीचीन है। किसी भी वस्तु, शक्ति या विचारधारा का उपयोग विधिवत करना उचित है, प्रयोग या उत्सुकतावश करना उपयुक्त नहीं है।

2. बायोकेमिक औषधियों का उपयोग खौलाए हुए गर्म जल के साथ ही करें अन्यथा कोई लाभ नहीं होगा।

3. फेरम फॉस को ठंडे पानी के साथ लेने से सम्बन्धित कष्ट बढ़ जाता है। अतः फेरम फॉस को निश्चित रूप से गर्म पानी के साथ ही लें, भूल कर भी ठंडे पानी के साथ नहीं लें।

4. अनिद्रा की स्थिति में फेरम फॉस को रात में न लें।

5. ज्ञातव्य है कि बायोकेमिक औषधियाँ (शिशु आधी गोली, 2 वर्ष तक के बच्चे को 1गोली, 10 वर्ष तक को 2 या 3 गोली, 60 वर्ष तक को 3 या 4 गोली और अधिक उम्र वाले नर नारी हेतु 4 या 5 गोली) खौलाये हुए शुद्ध एवं गर्म जल के साथ 4-4 घण्टे के अन्तर पर लें ।

4. किसी भी पद्धति से उपचार या औषधि का सेवन उस पद्धति अनुभवी, विद्वान् एवं सुयोग्य चिकित्सक की देख रेख में या सलाह से करें।

5. संयम, स्वच्छता, सादगी, शाकाहार, मनोशारीरिक पवित्रता, अपने और समाज के प्रति अपने कर्त्तव्यों का निर्वाह, आत्मनिर्भरता, आत्मनियंत्रण साथ ही देश, काल एवं पात्र का बोध सुखद एवं दीर्घायु कारक है।

6. सर्द वातावरण से यथासंभव अपना बचाव करना, तुलसी की चाय या  तुलसी पत्र के साथ जल का सेवन करना, हिन्दुओं के लिए भगवान के चरणामृत का पान करना, गर्म जल के साथ हल्दी का सेवन करना, गर्म जल में नमक डालकर गरारा करना, अदरक का उपयोग करना, लहसुन (होमियोपैथिक औषधि सेवन करने वाले लोगों हेतु कच्चे लहसुन का सेवन वर्जित है) का सेवन करना तथा गर्म एवं ताजा भोजन का उपयोग करना तथा "ऊँ" मन्त्र का कम से कम 108 बार दिन में तीन बार पाठ करना समस्त रोग शोक अर्थात् त्रिविध ताप नाशक होगा।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय।

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