बुधवार, 22 अप्रैल 2020

अवध रामायणं

शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2020


अवध रामायणं

शनिवार, 2 नवंबर 2019

अवध रामायणं

भजाम्यहम् अवधेशं, प्रभु श्री रामं।
द्वादश कला युक्त श्री रामावतारं।।१।।
सतोगुणं रजोगुणं तमोगुणस्य मूलम्।
अनन्तं प्रणव ऊँ सर्वज्ञं समर्थं।।२।।
निराकारं आकारं , रंजनं निरंजनं।
निर्गुणं गुणं, सचराचरस्य मूलम्।।३।।
कर्त्ता त्रिलोकी देवासुर जनकं।
अव्यक्तं सुव्यक्तं, अबोधं सुबोधं।।४।।
प्रकृति पुरुषात्मकं कार्य कारणस्य मूलम्।
अर्धनारीश्वरं स्वयंभू अज विष्णु स्वरूपं।।५।।
ज्योति प्रकाशं, नित्यं,चैतन्य स्वरूपं।
तिमिर नाशकं, जीवनामृतं स्वरूपं।।६।।
ताड़नं जड़त्वं, मोहान्धकारं।
गगन थाल सज्जितं दीप स्वरूपं।।७।।
दीपावल्यां प्रभा पुञ्ज,अशं अशेषं।
भास्करस्य भास्करं, रामं रं स्वरूपं।।८।।
कौसिल्या, कैकेयी, सुमित्रा सुपुत्रं ।
अवधेश दशरथ रघुकुल प्रदीपं।।९।।
प्रसीदति अहैतुकी सज्जनानां भक्त्या।
सर्वस्य कारणं यस्य माया दुरत्यया।।१०।।
वरं श्राप भक्तस्य उद्धार हेतु।
अवतरति जगत धर्म कल्याण सेतु।।११।।
प्रभु राम लक्ष्मण भरत शत्रुघ्न समेतं।
प्राकट्यं वभूव संस्थापनार्थं सुधर्मं।।१२।।
सानुजं गुरु विश्वामित्रेण समेतं।
मिथिला सिमरिया धामं प्रवासं।।१३।।
शिव धनु दधीचि अस्थि विशालं,
जनकी हेतु भंगं अकुर्वत पिनाकंं।।१४।।
स्वयंवरं विवाहं जनकात्मजा समेतं।
सहोदर सवेदं निज शक्ति स्वरूपं।।१५।।
माण्डवी, श्रुतकीर्ति, उर्मिला समस्तं।
अनुशीलनं जनकस्य वशिष्ठ आदेशं।।१६।।
सृजनहार, पालन, समाहार कर्त्ता।
रामौ परशु आदौ देशकालस्वरूपं।।१७।।
नारद जय विजय देवादि भानु प्रतापस्य उद्धारं।
मनु शतरूपा प्रिय अवध भारत भूमि अवतारं।।१८।।
माता कुल कैकेयी सप्रजा दशरथ अवधेशं।
हर्षितं राज्याभिषेकं रमापति रामं जगदीशं।।१९।।
शारदा मायापति विचारं, मंथरा कैकयी सम्वादं।
देवार्थे रणे अवधेश रथ चक्र कीलांगुलि सहायं।।२०।।
लोक जननी जन्म भूमिश्च वियोगं।
जनकस्य निधनं श्री रामस्य वियोगं।।२१।।
प्रणार्थ प्राणेश तजनं, प्रणार्थ राज तजनं।
प्रणार्थ प्रणेश भजनं, प्रणार्थ प्राण तजनं।।२२।।
भरतस्य हेतु राज पद पादुका तजनं।
सुर नर जगत् हित लीला सुरचितम्।। २३।।
व्रती भरतस्य राज सुख तजनं, नन्दी निवासं।
सिंहासीनं श्री राम चरण पदुकादेशं सुपालनं।।२४।।
रक्षार्थ वचनं कुल शीलं समेतं।
गतं वन उदासं कुलाचारं कुलीनं।।२५।।
मर्यादा पुरुषोत्तमम् रघुकुल भूषणं।
जनकस्यादेशं पालकं, भव पालकं।।२६।।
पद् नख नि:सृता यस्य सुर सरि गंगा।
केवट आवाहयति भव केवट त्रिपथगा।।२७।।
चरण स्पर्श आतुर कुलिष कंटकादि।
शुचि सौम्य उदभिद् खग पशु नरादि।।२८।।          
पथ अवलोकति शबरी, जड़ अहिल्या।
उद्धारं कृतं शबरी, निर्मला अहिल्या।।२९।।
दर्शनं अत्रि ऋषि वर, सती संग सीता।
प्रभु मुग्ध रामानुज वैदेही विनीता।।३०।।
जड़ भील मुनि वर भव मोक्ष याचक।
विचरन्ति सर्वे असुर भय मुक्त सत्वर ।।३१।।
बधं ताड़कादि असुरगण समस्तं।
कुर्वीतं श्री रामं शास्त्रोचितं पुनीतं।। ३२।।
गिरि वन सरित सर तटे निवास करणं।
योगानुशरणं, नित्यानुष्ठानादि करणं।। ३३।।
कन्दमूल फलपयौषधि प्रसाद ग्रहणं।
जल-वायु सेवनं, आश्रम धर्म विवेचनं।। ३४।।
चित्रकूटादि सुदर्शनं, सर्व धाम सुसेवनं।
सुजन सम्मान करणं, कामान्ध मद मर्दनं।। ३५।।
सूर्पनखा सौंदर्य वर्धनं,लक्ष्मण रामाकर्षणम्।
नासा कर्ण छेदनं, खरदूषणादि उन्मूलनम्।।३६।।
दृश्यते ध्यान मुद्रा, कर युग, साष्टांगं।
यजयते ऋषि कुमारं षोडश सहस्त्रं।।३७।।
भवामि गोपांगना केशवस्य भविष्यं।
स्वीकारं कृतं वरं राम भक्तंं सस्नेहं।।३८।।
पावकं ऊँ रं राम शक्ति सीता निवासं।
वधं हेतु गतं राम मृगा स्वर्णिम मारीचं।।३९।।
मिथिलेश नंदिनी सीता वैदेही अम्बा।
रावणं कुलोद्धार हेतु गता द्वीप लंका।।४०।।
ब्राह्मणवेश रावणस्य कृतं सम्मानं।
दानं हेतु कृतं लक्ष्मण रेखाग्नि पारं।।४१।।
सहितं पंचवटी पर्णकुटी उदासं।
सानुज प्रभु सर्व लोकाधिवासं।।४२।।
वैदेही हरणं चराचर खग वन पशूनां।
पृच्छति सानुज सरित सर पर्वताणां।।४३।।
महेशवरस्य सुवन्दनं राजकुमारौ स्वरूपं।
चकितं उमा माया पति माया जगदीशं।।४४।।
वैदेही स्वरूपा जगन्माता स्वरूपं।
वन्दिता भवानी हरि हर रूपं अनेकं।।४५।।
स्त्री गुणमेकं निज सन्तति वात्सल्य सेतु।
स्वीकारं कृतं भवानी, भवेशं वृषकेतु।।४६।।
पतिव्रता भवानी, जगन्माता स्वरूपा।
उमा भवानी त्र्यम्बिके प्रजापति दुहिता।।४७।।
भवानी सुदर्शनं देवादि स्थानं भवेश रहितं।
उमा आहूति करणं, शिव शक्ति रौद्र दर्शितं।।४८।।
अष्टोत्तरशत शक्ति पीठ संस्थापनं।
भवं भवानी कृपा लोकहित कारकं।।४९।।
वरणं हरं मैना सुता शैलजा सुख कारकं।
पाणिग्रहणाख्यानमिदं सर्व मंगल कारकं।।५०।।
वैदेही पूज्या भवानी वैदेही वरदायिनी।
माता सर्व लोकस्य त्रिविध ताप हारिणी।।५१।।
मिथिलेश नन्दिनी जानकी जगन्माता अम्बा।
त्रिविध ताप नाशिनी वैदेही मां सीता जगदम्बा।।५२।।
सीता हित विकल विधि त्रिभुवन पति लक्ष्मी रमणं।
बालि बध, सुग्रीव सहायं, किष्किंधा पावन करणं।।५३।।
सीता सुधिदं सम्पाती मिलन, जटायु समर्पणं।
सुग्रीव सहायं, नल नील सेतु, सागर पथ प्रदानं।।५४।।
असुर विभीषण रहित सर्वे सशंका।
त्रिजटा नित करोति सेवा नि:शंका।।५५।।
शरणागत दीनार्त त्रिविध ताप हारं।
राजीव लोचनस्य रामेश्वरानुष्ठानं।।५६।।
जामबन्त अंगद वन्य बासिन: समस्तं।
समर्पित सशरीरं सुकाजं समीपं।।५७।।
लंकेश विभीषण अनुग्रहं श्री रामंं।
सहायं कपीशं भू आकाशं पातालं।।५८।।
पातालं गता: पद स्पर्शात् पर्वताणि।
छाया ग्रह दम्भ हननं समुद्र मध्याणि।।५९।।
द्विगुण विस्तारं, मुख कर्णे निकासं।
अहिन अम्बा सुरसा परीक्षा कृत पारं।।६०।।
मुष्टिका प्रहारं, सूचकं लंकोद्धारं।
स्वीकारोक्ति करण, लंकिनी मरणं।।६१।।
उल्लंघ्यं समुद्रं, लंका प्रवेशं।
हरि भक्त विभीषण सम्वादं।।६२।।
लंका सुदर्शनं, अशोक शोक हरणं।
मुद्रिका रं दर्शनं, वैदेही शोक हरणं।।६३।।
वने फल भक्षणं, निज प्रकृति रक्षणं।
राक्षस दल दलनं, रावणस्य मद मर्दनं।६४।।
राज धर्मानुसरणं, ब्रह्म पाश सम्मानं।
पुच्छ विस्तरणं, घृत, तैल वस्त्र हरणं।।६५।।
हरि माया करणं, कपि पुच्छ दहनं।
निज रक्षणं, स्वर्णपुरी लंका दहनं।।६६।।
अंगद पदारोपणं, असुर सामर्थ्य दोहनं।
विभीषण पद दलनं, मंदोदरी नीति हननं।।६७।।
कुम्भकर्ण मेघनादादि संहरणं।
अहिरावणादि विनाश करणं।।६८।।
देवादि ग्रह कष्ट हरणं, रावणोद्धार करणं।
विद्वत् सम्मान करणं, राज धर्मानुशरणं।।६९।।
अष्ट सिद्धि, नव निधि निधानं।
बुद्धि, बल, ब्रह्मचर्य, ज्ञान धामं।।७०।।
अश्वत्थामा बलि व्यासो हनुमानश्च विभीषण:।
कृपाचार्य परशुरामश्च मारकण्डेयम् चिरजीविन:।।७१।।
अष्टमेतान संस्मरे नित्यं आयु  आरोग्य विवर्धनम्।
बल, बुद्धि, धन, विद्या, अध्यात्म ज्योति प्रदायकम्।।७२।।
शंकर पवन सुतं, अंजना केसरी नन्दनं।
रावण मद मर्दनं, जानकी शोक भंजनं ।।७३।।
श्री राम भक्तं, चिरायु, भानु सुग्रासं।
हृदये वसति रामं लोकाभिरामं।।७४।।
एको अहं पूर्णं , वेद सौरं प्रमाणं।
रघुनाथस्य वचनं, भरतस्य ध्यानं।।७५।।
जलज वनपशु खग गोकुल नराणां।
सरयू प्रसन्ना, भूपति, दिव्यांगनानां।।७६।।
आलोकितं पथ नगर ग्राम कुंज वन सर्वं।
प्रज्वलितं सस्नेहं दीपं कुटी भवनंं समस्त्तं।।७७।।
गुरू चरण पादुका राज प्रजा प्रतीकं।
दर्शनोत्सुकं सीता राम पदं अनुपम।।७८।।
नैयायिक समदर्शी प्रभु श्री चरणं।
भव भय हरणं, सुख समृद्धि करणं।।७९।।
आचारादर्श धर्म गुण शील धनं।
सूर्य वंशी सत्पथ रत निरतं ।।८०।।
जनहित दारा सुत सत्ता तजनं।
लीला कुर्वन्ति लक्ष्मी रमणं।।८१।।
शुचि सत्य सनातन पथ गमनं।
शिव राम कृपा दुर्लभ सुलभं।।८२।।
दीपावल्याख्यानं तमान्तस् हरणं।
राक्षसत्वं दलनं, रक्षक गुण भरणं।।८३।।
आदौ महाकाव्यं वाल्मीकि रचितं।
क्रौंचस्य वियोगाहत कृतं राम चरितं।।८४।।
चरितं सुरचितं निज भाषानुरूपं।
निज भावानुरूपं रावणं राम काव्यं।।८५।।
संस्कृत सुगूढ़ं, अवधी सुलब्धं।
दनुज व्यूह त्रसितं कृते तदर्थेकं।।८६।।
सत्यं शिवं सुन्दरं श्री राम चरितं।
भारद्वाज कथनं, गोस्वामी रचितं।।८७।।
कथा सज्जनानां अवतार हेतु।
आगमनस्य रघुकुल साकेत धामं।।८८।।
वैष्णवी तपस्या, अवतार कल्कि,
गाथा सुदिव्यं जग कल्याण हेतु।।८९।।
एकासनवर्धनं गुण शीलंं समेतं,
हर्षितं दर्शितं अवध पुष्पक विमानं।।९०।।
रजकस्यारोपं वैदेही वने प्रवासं।
ऋषि सुता चरितं, वाल्मीकि शरणं।।९१।।
अश्वमेध यज्ञस्य हय विजय करणं।
सीता सुत लव कुश संग्राम करणं।।९२।।
श्री राम राज्यं समत्वं योग वर्धनं।
प्रजा सुपालनं त्रिविध ताप हरणं।।९३।।
सुता हेतु धरित्री हृदय विदीर्णं।
सीतया धरा अर्पणं निज शरीरं।।९४।।
सीता वसुधा, प्रभु सरयू शरणं।
शेषावतार सहर्ष सत् पथ गमनं।।९५।।
अवधेश गतं साकेत शुभम्।
सप्रजा साकेत अवध सहितं।।९६।।
शुचि कथा उमाशंकर पावन।
कैलाश कपोत युगल सहितं।।९७।।
खग काक भुषुण्डि शिव श्राप हरं।
गुरु कृपा श्री राम भव पाप हरं।।९८।।
रामायण अवध अवधेश कृतं।
मन मोद धाम शुभदं सुखदं।।९९।।
भारत बिहार जम्बूद्वीपं।
नया गाँव नामेति पचम्बा अंगं।।१००।।
ब्राह्मण भारद्वाज गोत्र कुलं।
जातक शैलजा राजेन्द्र सुतं।।१०२।।
आख्यान रचित शैलज अनुपम।
निज ज्ञान विवेक सहित अल्पम्।।१०३।।
सप्रेम रामायणमिदं पठनं।
आतप त्रयताप हरं सुखदं।।१०४।।

(क्रमशः)
(प्रस्तुत काव्यं सम्प्रति संशोधनाधीनं अस्ति।)
डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय।



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