सोमवार, 27 अप्रैल 2020

राज रिश्तों का.....

राज रिश्तों का अन्तस् को पता है,
और कुछ कहना नहीं, केवल बचा है।
श्री चरण का ध्यान धर कर अग्रसर जो,
हर चुनौती झेल वह आगे खड़ा है।।

राज रिश्तों का सरित सर कूप जल का,
एक अन्त: श्रोत अविरल भूमि तल का।
जलद निर्झर गिरि शिखर से श्रवित अविरल,
दोष हर प्रियतम! अहर्निश भूमि तल का।।

राज रिश्तों का पयोधि मृदु मधुर जल का,
अतल अथाह सैलाब सुन्दर कलश जल का।
मस्त पंकज क्रोड में अलि गोधूलि से,
सच्चिदानंद सुख मग्न, मादकता मदन का।।

राज रिश्तों का श्री अवधेश प्रभुवर,
पूछते है कुंज वन से, सरित सर से।
अग्नि अर्पिता वैदही, रावण ले गया क्या ?
पार कर रेखाग्नि अनुज खचित शर से ?

राज रिश्तों का जगत् व्यवहार मन का,
माया प्रकृति पुरूष का, संसार जन का।
आवाज आत्मा की, हृदय के धड़कनों का,
प्रेममय पीयूष वर्धन शुभ आशीष प्रभु का।।

राज रिश्तों का न "शैलज" को पता है,
भाव को लिपिबद्ध करने को चला है।
सौंदर्य श्री अनुपम नयन पथ से उतरकर,
कवि हृदय में क्या कहूँ ? आ बस गया है।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय।

    

Read my thoughts on YourQuote app at

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें