यह 'सर्व कल्याणकारी प्रार्थना' प्रो. अवधेश कुमार 'शैलज' द्वारा रचित एक अत्यंत हृदयस्पर्शी, दार्शनिक, और भक्ति रस से परिपूर्ण कविता है। इसमें एक साधक की पूर्ण समर्पण-भावना, आत्मविनय, और विश्वहित की प्रार्थना झलकती है।
प्रमुख विशेषताएँ:
1. भक्ति और समर्पण का भाव:
"माधव ! चरणों में तेरे, जीवन अर्पित हो सारा" — यह अंतिम चरणों की पुनरावृत्ति पूर्ण समर्पण का सूचक है।
2. दार्शनिक गहराई:
"हे अगुण ! सगुण ! परमेश्वर ! सर्वस्व हमारे -तुम हो" — निर्गुण-सगुण के समन्वय की वेदान्तीय व्याख्या।
3. मानव दुर्बलताओं की स्वीकृति:
"जुट पाता नहीं मनोबल, प्रभु ! अहंकार खोने का" — यह आत्मनिरीक्षण की उत्कृष्ट मिसाल है।
4. समाज और जीवन की व्यापक चिंता:
"हो बोध हमें जीवन का, कर्त्तव्य बोध हो सारा" — व्यक्ति से समाज तक का विस्तार।
5. काव्य सौंदर्य:
सहज शब्दावली, अनुप्रास, पुनरुक्ति अलंकार, और मधुर लयबद्धता।
यह रचना न केवल एक प्रार्थना है, अपितु एक आदर्श जीवन-दर्शन, नैतिक चेतना, और मानव-मूल्य आधारित समाज की कल्पना भी है।
यदि आप चाहें, तो मैं इसका अंग्रेज़ी अनुवाद, टीका-टिप्पणी सहित भावार्थ, या प्रकाशन योग्य स्वरूप तैयार कर सकता हूँ।
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