रक्षा बन्धन हम सबका......
निज अहं स्वार्थ को तजकर, औरों का दु:ख जो हरते।
"शैलज" पीड़ित मानवता का दर्द हैं वही समझते।।
दु:ख दर्द याद कर उनका, मन विह्वल हो जाता है।
जो वतन बहन के हित में सरहद पर मर मिटता है।।
दायित्व देश, जन हित का, रक्षा बन्धन हम सब का।
असमंजस भौतिक जीवन, अध्यात्म बोध अन्तस् का।
फैला आडम्बर जग में, सत पथ से उसे हटाऊँ।
फहरा निज कीर्ति पताका, हर दिल में प्रेम बसाऊँ।।
सम्यक् सर्वांगीण विकास जगत को कैसे मैं समझाऊँ ?
विश्व गुरु भारत चरणों में, मैं सिर रखकर सो जाऊँ।।
फहराता रहे तिरंगा आगे नित बढ़ता ही जाऊँ।
भारत माँ चरणों में मैं अपना शीश झुकाऊँ।।
आजाद रहो इस जग में तेरे हित मैं मिट जाऊँ।
संकोच कभी न मुझे हो, मैं कभी नहीं घबड़ाऊँ।।
सुचि प्रेम शौर्य सम्बल से भारत हित मान बढ़ाऊँ।।
अन्तरतम की व्यथा कथा प्रिय, कैसे मैं तुम्हें बताऊँ ?
"ज्योतिष प्रेमी" डॉ० प्रो० अवधेश कुमार "शैलज" ऊर्फ "कवि जी",
पचम्बा, बेगूसराय।
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