शुक्रवार, 23 सितंबर 2022

रक्षा बन्धन हम सबका......

रक्षा बन्धन हम सबका......

निज अहं स्वार्थ को तजकर,औरों का दु:ख जो हरते।
"शैलज" पीड़ित मानवता का दर्द हैं वही समझते।।
दु:ख दर्द याद कर उनका, मन विह्वल हो जाता है।
जो वतन बहन के हित में सरहद पर मर मिटता है।।
दायित्व देश, जन हित का, रक्षा बन्धन हम सब का।
असमंजस भौतिक जीवन, अध्यात्म बोध अन्तस् का।
फैला आडम्बर जग में, सत पथ से उसे हटाऊँ।
फहरा निज कीर्ति पताका, हर दिल में प्रेम बसाऊँ।।
सम्यक् सर्वांगीण विकास का पाठ जगत को कैसे मैं समझाऊँ ?
विश्व गुरु भारत के चरणों में मैं अपना सिर रखकर सो जाऊँ।।
फहरा कर या ओढ़ तिरंगा आगे बढ़ता ही जाऊँ।
भारत माँ के चरणों में केवल अपना शीश झुकाऊँ।।
तुम आजाद रहो इस जग में तेरे हित मैं मिट जाऊँ।
कभी नहीं संकोच मुझे हो,कभी नहीं घबड़ाऊँ।।
शौर्य प्रेम के बल पर जग को गीता का पाठ सुनाऊँ।।
अन्तरतम की व्यथा कथा प्रिय, कैसे मैं तुम्हें बताऊँ ?

"ज्योतिष प्रेमी" डॉ० प्रो० अवधेश कुमार "शैलज" ऊर्फ "कवि जी",
पचम्बा, बेगूसराय।
  


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