शुक्रवार, 23 सितंबर 2022

नव बसन्त:-

मोर,चकोर,मधुकर किलोल कर
मनमोहन श्याम रिझावे ।
काम रति संग प्रियतम ! हे अलि!
अहर्निश मधुमय रास रचावे ।।

मन्द समीर सुगंध उड़ेलत,
अति अनुराग दिखावे ।
तजि संकोच वेल-विटप
संग,नारी-नर अनुरागे ।।

घहड़त - चमकत घटा गगन में,
बरसत-छलकत पानी ।
वृद्ध वयस सकोच अति पावत
करत बाल समूह नादानी ।।

विसरे सुधि जलधि निर्झर नद,
जलद चाल मतवाली ।
झूमत- पादप, विटप व तरुगण,
पत्र,कुसुम औ डाली ।।

विविध पुष्पमय धरती सारी,
महक रही है क्यारी ।
विटप वेल मदन रस पाकर
सब संकोच विसारी ।।

काम अनंग मदन कुसुमायुध
रति पर डोरे डाले।
सुमिरि सुरेश, महेश, कृपानिधि
किये जगत् मतवाले ।।

धवलेरावत आरुढ़ शचीपति,
वज्र चरण ले आये ।
सुर नर मुनि गण सकल चराचर,
प्रभु पद शीश नवाये ।।

'शैलज' पद सरोज पखारन
नीरद जलद पुकारे ।
भूमि व्याप्त जल अति सकोच वश,
सुगम सुराह उचारे ।।

प्रो० अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय ।


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