शुक्रवार, 23 सितंबर 2022

भिक्षुक :-

गुरुवार, 2 फ़रवरी 2017

'भिक्षुक' :-

बस, आज अभी की बात,
पकड़िया के नीचे
बैठा था-नर-कंकाल एक
-दुपहरिया की जलती छाया में।
मत कहो इन्हें -भिक्षुक।
ये वेचारे हैं- निर्ममता के मारे हैं।
फँसा दिया है, इनको -समाजवालों ने।
झूठी-अफवाही जालों में।
लूट ली सारी जमीन ।
अब,पग रखने को जगह नहीं है।
ये हैं समाजवाले- दलाल, शोषक औ मक्कार ।अपने को कहते- समाजवादी ।
ले लिया- जगह, न काम दिया,
न पारिश्रमिक औ न आराम दिया।
सब लिया औ बदले में क्या दिया- सुने.......बेबसी, अमित व्यथा औ ....................अन्ततः
-दो मुट्ठी दाने, दो गज वस्त्र हेतु-
-सदा के लिए भिक्षुक बना दिया........।

:- प्रो०अवधेश कुमार 'शैलज', पचम्बा, बेगूसराय।


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