शुक्रवार, 23 सितंबर 2022

प्रियवर

प्रियवर, प्राणेश सभी के, तू प्रेम की राह बताते ।
सारे जग के प्राणी में, तू प्रेम की आग लगाते ।।
जिसकी लपटों में जलते, प्रेमी जन हैं अकुलाते ।
प्रिय के मधुर मिलन से, सब घाव तुरत भर जाते ।।
दिन रात याद आती है , प्रियवर , प्राणेश तुम्हारा ।
तुझसे ही है यह जीवन , तुझमें ही है जग सारा ।।
तुम सारे जग के प्रियवर, प्रिय हिय में तुम बसते हो ।
हम सब की प्रेम कथा को, दिन रात रचा करते हो ।।
हो प्रेम हमारा शाश्वत, कुल धर्म हमारा जागे ।
दो कूलों के मधुर मिलन से, तम-रज सतगुण से भागे ।।
अतिवाद विवाद तजें हम, उन्मुक्त गगन में विचरें ।
पक्षों के पक्ष न जाकर, सत् मध्यम पथ अपनावें ।।
प्रिय हो प्रियतम जग सारा, अप्रिय समूल नशावे ।
प्रिय के स्नेहिल चिन्तन से, सारी थकान मिट जावे ।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय।


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