शुक्रवार, 23 सितंबर 2022

मीत मेरे, प्रीत तेरे

बीतता जो एक लम्हा
युग-युगों सा लग रहा है।
भीड़ में खोया हुआ हूँ,
स्वप्न सा सब लग रहा है।।

मीत मेरे प्रीत तेरे,
बस जिलाये रख रहा है।
तूँ कहाँ ? किस ठौर में हो?
यह जिलाये रख रहा है।।

पूछता - खग, अलि, जन से,
खोजता हर कुंज वन में ।
मारीच मृग से भरे जग में,
सखा आशा साथ मग में ।।

जब तुम्हें हूँ याद करता,
एक बस फरियाद करता।
किस खता पर ? क्यों खफा हो ?
बता दो, फरियाद करता।।

प्रो० अवधेश कुमार "शैलज",पचम्बा, बेगूसराय।


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