शुक्रवार, 23 सितंबर 2022

व्यक्तिवाद

व्यक्तिवाद है जीवन, लेकिन आश्रय वाद लगा रहता है ।
प्राणी क्या ? सृष्टि का कण-कण आपस में जुड़ा रहता है ।।
जहाँ जन्म लेते, रहते, बढ़ते, पढ़ते हैं अग जग को ।
करते हैं निज का विकास, औ राह दिखाते जग को ।।
तन-मन की निर्भरता जग के कण-कण से जुड़ी हुई है ।
जग के सारे सम्बन्धों-रिश्तों की बनती एक कड़ी है ।।
कारण-कार्य जगत् का नियम, एक अटल अविचल है ।
प्रकृति-समरुपता से जगती की माया टिकी हुई है ।।
आगम-निगम तर्क सम्यक् है, सुपथ सुराह बताता ।
ऊँच-नीच का भेद बता कर, मध्यम है हट जाता ।।
पूर्ण पूर्ण है, पूर्ण अधूरा, पूर्ण शून्य है पूरा ।
प्रकृति चाहती है नकार कर, पुरुष चाहता पूरा ।।
ऋण-धन का आवेश जगत् में विद्युत ऊर्जा लाता।
आकर्षण का बीज वपन कर, जग में है छा जाता ।।
( क्रमशः)


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