शुक्रवार, 23 सितंबर 2022

पगडंडी

पगडंडी

दो "आनन्द" जहाँ मिलते हों, " पाठक " आनन्दित होते हों।
"राम" "रमण" करते हों जहाँ,"नारायण"अवतरित होते हों।।
नमस्कार ऐसे भविष्य के " अग्नि-पथ " के राही को।
अपने पथ की चिनगारी जो देते हैं " पगडंडी " को।।
ये " प्रगतिशील " हैं, लेखक हैं, ये रचनाकार कहाते हैं।
द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद विशारद, साहित्यकार कहाते हैं।।
ये पूँजीवाद के प्रबल विरोधी, वास्तव में सुखवादी हैं।
ये हृदयहीन ,बुद्धिवादी, आध्यात्म समझ न पाते हैं।।
रोटी सा इनका गोल विश्व, रोटी सा इनका सहज विश्व।
रोटी सा इनका सरल विश्व,रोटी पाकर सन्तुष्ट विश्व।।
रोटी तक सिमट सदा रहते,रोटी पर ये बिक जाते हैं।
भौतिक सुख पीछे पागल, सत्ता लोलुप हो जाते हैं।।
सन्मार्ग में बढ़ते जब भी, आदर्श छोड़ ये जाते हैं।
है इदं अहम् ही परम अहम्, इसमें ही सुख ये पाते हैं।।
नमस्कार ऐसे भविष्य के " अग्नि पथ " के राही को।
अपने पथ की चिनगारी जो देते हों "पगडंडी" को।।

प्रो० अवधेश कुमार "शैलज",पचम्बा, बेगूसराय।


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