शुक्रवार, 23 सितंबर 2022

ब्रह्मरस पान :-

ब्रह्मरस पान

हृदय के भाव हैं निर्मल,
सरल, सुन्दर, सुलभ, कोमल।
हृदय में प्रेम बसता है,
मातृत्व, वात्सल्य भी अविरल।।
सहज सौहार्द सुचिन्तन,
करुणामय स्नेह का बन्धन।
दिव्यता, भोग, सात्विकता;
पर रज तम का नहीं दर्शन।।
मष्तिष्क में बास है मन का,
विचार के जाल बुनने को।
हृदय के दिव्य निर्णय को,
सही अंजाम देने को।।
हृदय की बांसुरी से,
कृष्ण के जब धुन निकलते हैं।
प्रकृति राधा प्रकट होती,
ब्रजांगनाओं के मन मचलते हैं।।
विषय की बासना मिटती,
देह का बोध जाता है।
ब्रह्मरस पान करके जीव,
प्रभु का ध्यान करता है।।
प्रबल आत्मिक समर्पण
योग का जब ध्यान धरता है।
शिव शक्ति का दर्शन,
श्रेष्ठ रति काम होता है।।
जो पूर्व में दक्षिण,
वही फिर वाम होता है।
स्वर तत्व का दर्शन,
ईडा, पिंगला, सुसुम्ना है।
देश औ काल बोधक,
साधना शक्ति द्योतक है।।

डॉ० प्रो० अवधेश कुमार शैलज, पचम्बा, बेगूसराय।

 


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